Friday, May 31, 2024

नज़्म:- मेरी अभिलाषा

ये जो डर सा लगा रहता है 

खुद को खो देने का,

ये जो मैं हूं 

वो कौन है ?

जो मैं हूं ! 

मैं एक शायर हूं ।

एक लेखक हूं ।

एक गायक हूं मगर 

मैं रह सकता हूं सदा 

जो मैं हूं 

कौन कहता है मुझे ?

कि लिखने के लिए 

मखमल की मेज़ चाहिए, 

फूलों की सेज चाहिए और 

खाने को नानवेज चाहिए, 

नहीं ! मैं हर स्थिति में 

वही हूं जो मैं हूं 

मैं एक शायर ! हूं 

लेखक ! हूं, गायक ! हूं।

ये सांसारिक भोग की वस्तुएं

जरूरत तो हैं मेरी मगर

अभिलाषा नहीं मेरी

मेरी अभिलाषा है कि

मैं जीवन भर शायर रहूं

लेखक रहूं, गायक रहूं ।  

देशभक्ति गीत :- आजादी खुशियों का त्योहार तुम मना लो मेरे यार

 आजादी खुशियों का त्योहार तुम मना लो मेरे यार 

जितने गील सकवे हैं धर्म और जात के तुम भूला दो मेरे यार

इक दुश्मन से लड़ लिया अब खुद से लड़ना है 

जाति धर्म के बंधन में अब तो हमें ना पड़ना है

हमारा केवल भारतीयता हो इक पहचान तुम जान लो मेरे यार

आजादी खुशियों का त्योहार तुम साथ मिलकर मना लो मेरे यार 


मंजूर हमें अब हरगिज नहीं ×२ हम बंटे जाति धर्म के नाम पर

जो बांटे हमें अब उसकी ख़ैर नहीं चाटे हों उसके गाल पर

नहीं चाहिए हमें अब जाति और धर्म के गौरव का सम्मान समझा दो उन्हें यार

हम गौरवान्वित हैं पाकर भारतीयता का पहचान तुम सबको बता दो मेरे यार 

आजादी खुशियों का त्योहार तुम साथ मिलकर मना लो मेरे यार 

जितने गील सकवे हैं धर्म-जात के तुम भूला दो मेरे यार


हमारी एकता है अनेकता से×२ तो फिर क्यों खड़ा करना है देश को एक धर्म का दे पहचान 

हमारा धर्म है सत्य सनातन जिसका प्रकृति है आधार

अब माने भला ना कोई कैसे जो जले कोई तो पहले खुद वो जलता है

आग भी भला कभी किसी को सीतल जल सा लगता है 

अगर लगता है जिन्हें उनके बातों का ना है कोई आधार तुम मान लो मेरे यार

बांटे तुम्हें ऐसे मूर्ख तो कभी आपस में बंटना नहीं तुम जान लो मेरे यार 

जाने दो छोड़ो सुनना ऐसे मूर्खों की बात तुम हाथ मिला लो मेरे यार

आजादी खुशियों का त्योहार तुम साथ मिलकर मना लो मेरे यार

जितने गील सकवे हैं धर्म-जात के 

तुम भूला दो मेरे यार



कविता:- सुंदरता और सौंदर्य में फर्क होता है

  मैं कहूं तुम्हारी आंखें कोई झील जैसी हैं 

 मैं कहूं तुम्हारे होंठ गुलाबी फूल जैसी हैं

 मैं कहूं तुम्हारे दांत कोरल मूंगें जैसी हैं 

 और इसे तुम अपनी सुन्दरता समझो तो 

 मुझे लगता है ये तुम्हारी कोई भूल जैसी है

 क्योंकि सुंदरता और सौंदर्य में फर्क होता है 


तुम्हारी आंखों को झील कहें तो

झील का पानी सूख भी सकता है 

तुम्हारे होंठ को गुलाबी फूल कहें तो

गुलाबी फूल मूर्झा कर टूट भी सकता है 

तुम्हारे दांत को कोरल मूंगा कहें तो 

एक समय के बाद मूंगों के चमक छूट भी सकता है


झीलों का सूखना पून: पानी से भर जाना

गुलाबों का मूर्झाना तनों पर नये फूल आना

मूंगों का समय के साथ बनना क्षय हो जाना 

ये सौंदर्य में वृद्धि और उनकी कमी को दर्शाता है 

व्यक्ति सौंदर्यवान होने से सुंदर नहीं हो जाता है 

क्योंकि सुंदरता और सौंदर्य में भी फर्क होता है


 व्यक्ति का दोष है अहंकारी होना 

 और अहंकार त्याग कर ही व्यक्ति सुंदर हो पाता है

 व्यक्ति का दोष है दूराचारी होना 

 व्यक्ति अपने आचरण में सुधार करके ही सुन्दर हो पाता है

 स्त्री का दोष है शालीन, सीतल और चरित्रवान न होना

 और यह सब होकर ही एक स्त्री सुंदर कहलाती है ।


                                          - कवि शुभम कुमार 


 

मुक्त छंद:- सब आजाद होना चाहते हैं मगर

 सब आजाद होना चाहते हैं मगर 

कटि पतंगों की तरह 

जो गिरेंगे तो तय है जायेंगें नालों में ही 

या फिर किसी पेड़ में घुसने कि कोशिश करेंगे 

ताकि शाखों पर बैठ सकें पंछियों की तरह 

मगर उनकी ये कोशिश 

पत्तों को केवल जख्मी करेंगें खुद में लगे मंझों से 


उफ्फ ! ये पंछियों की तरह 

लोगों के उड़ जाने की ख्वाहिश 

क्यों नहीं सीखते हैं उड़ना ये पंछियों की तरह 

पंछियां उड़ती भी हैं तो साथ अपनों को लेकर

मगर इंसान उड़ना भी चाहता है तो अपनों के बिना

ये ख्वाहिश भी अपनों को देखकर ही उठते हैं

क्योंकि उन्हें पता है क़ैद करता भी है कोई 

तो अपना ही यहां

लोग क्यों नहीं देते हैं उड़ने की आजादी

लोग उड़ते क्यों नहीं हैं साथ 

अपनों के, यहां ?

कविता:- अगर तुम्हें मेरी अर्धांगिनी होना हो

 तुम मेरी प्रियसी हो 

तुम्हें मैं पत्नी बनाकर

अपने प्रियसी को खोना नहीं चाहता हूं


तुम्हें चुनना होगा

तुम्हें मेरे साथ होना है

या फिर मेरा होना है


मेरा होने के लिए 

तुम्हारा मेरे साथ होना जरूरी नहीं 

तुम जहां रहोगी मेरे दिल में रहोगी 


मगर मेरे साथ किसको होना है

ये फैसला मेरा नहीं है मेरे मां पिताजी का है


तुम्हें मेरे साथ होना है तो बस मैं इतना कर सकता हूं

तुम्हारा प्रस्ताव मैं उनके सामने रख सकता हूं ।

तुम्हें खुदको उनके सामने सिद्ध करना होगा

उनकी कसौटीयों पर तुम्हें खरा उतरना होगा


तब जाकर बनोगी तुम मेरी अर्धांगिनी

नहीं तो मैं कभी नहीं जाउंगा उनके खिलाफ

ये बात मैं तुम्हें कर देता हूं साफ 

चाहे हो ना सके हमारे साथ इंसाफ

मैं अपने मां बाप के आशिर्वाद की जगह 


कभी नहीं लूंगा उनका श्राप ।

कविता:- क्यों तुम हमसे छुप छुप कर प्यार करती हो ?

 तुम कहती हो मैं डरपोक हूं 

हां हूं ! मैं डरपोक 

मैं डरता हूं कि तुम्हारे प्यार में कहीं

मैं भूला ना बैठूं इस दुनियां को

जिस दुनियां में पिता का सर पर हाथ मिला

मिली मां के आंचल की छाया 

जिस दुनियां में बड़े भाई का विश्वास मिला

मिली बहन के स्नेह की धारा

कैसे भूला दूं मैं इस दुनियां को

तुम्हारे प्यार से पहले मैं इनके प्यार में हारा


तुम्हारा मेरा प्यार कहीं

रह जाये ना बनकर स्वार्थ हमारा 

इसी स्वार्थ के चक्कर में

मैं भूल ना बैठूं दुनियां सारा

इसलिए मैं तुम्हारे प्यार में

इस दुनियां को खोने से डरता हूं 

जिस दुनियां में मुझे अपमान से पहले मान मिला 

उन मानों को खोने से डरता हूं 

मुझे डर लगता है

मैं अपने सम्मानों के खोने से डरता हूं 


कौन समझता है भला 

तेरे मेरे इस रिश्ते को ?

तुम भी तो मुझसे कहती हो 

मुझे तुमसे मिलने में डर लगता है

ये डर क्या है भला तुम्हारा ?

तुम्हारी भी इक दुनियां है 

और उसे तुम खोने से डरती हो 

ये डर क्या है भला तुम्हारा ? 

तुम अपनों के विश्वासों को तोड़ने से डरती हो 

ये डर क्या है भला तुम्हारा ?

तुम खुदके अपमानित होने से डरती हो 

ये डर क्या है भला तुम्हारा ? 

क्यों

 तुम हमसे छुप छुप कर प्यार करती हो ?

इकरार करो या इंकार करो

 इकरार करो या इंकार करो

अब बस बात यहीं तुम स्वीकार करो, 

हम तुम्हें पसंद करते हैं तुम करती हो कि नहीं?

हम तुमपे मरते हैं तुम हमपे मरती हो कि नहीं?


मेरा एक ही उशूल है कि

किसी को दिल में रखा जाये,

अगर दिल में कोई रह ना सके तो 

उसे बाईज्जत ज़हन से निकाल दिया जाये


किसी को रखना भी हो कहीं तो जहन में 

किसी को क्या रखा जाये, 

जब रखने के लिए किसी के पास

दिल जैसा मंदिर हो तो उसे वहां रखा जाये 


ज़हन में शैतान भी रहता है,

भगवान भी, मगर दिल मंदिर है 

और मेरा मानना है मंदिर में 

केवल भगवान को रखा जाये 


भगवान होने के लिए

किसी को भगवान होना होता है

एक विचार के शिवा 

सबको खोना होता है


तुम केवल मेरा विचार करो तो 

दर्जा मुझसे मेरे भगवान का पा लो

वर्ना परेशान करो मुझे और करके 

तुम दर्जा शैतान का पा लो 

या फिर हटो मन से,जहन से

विचारों का हवा आने दो,  

किसी को मेरा विचार करने दो

किसी को मेरा, किसी का

 मुझे भगवान बनने दो ।।          

काव्य:- तुम रहने दो, रहने दो

 काव्य:- तुम रहने दो, रहने दो 


हमीं गलत, 

हरबार सही तुम 

रहने दो, रहने दो


मेरा मौन भी गलत

बोलने पर बड़बोलापन भी 

तुम रहने दो, रहने दो 


हमीं कहें हरबार तुम्हें 

तुम्हें कभी कुछ कहना नहीं, ना सही 

तुम रहने दो, रहने दो 


हमीं ने किया इजहार तुम्हें

तुम्हें लगता मेरा ही झूठा प्यार सही 

तुम रहने दो, रहने दो 


हमीं ने किया तुम्हें प्यार

प्यार नहीं करना तुम्हें ना सही 

तुम रहने दो रहने दो

कविता:- क्यों न हम एक-दूसरे की ढाल बनें ?

मुश्किलें मेरे लिए भी उतनी ही हैं 

जितनी तुम्हारे लिए 

मगर क्या मुश्किलों से घबराकर

रिश्ते तोड़ लिये जाते हैं ?

मैंने सुना था मुश्किलों के वक्त

रिश्ते ढाल बन जाते हैं 


तुम्हें लगता है कि 

तुम्हारी लड़ाई में मेरा क्या काम,

मेरी लड़ाई में तुम्हारा क्या काम 

मुझे लगता है

भले लड़ाई तुम्हारे अकेले की हो

भले लड़ाई मेरे अकेले की हो मगर 

साथ कोई अपना खड़ा हो तो

हमारा हौसला बढ़ जाता है 


माना मैं तुम्हारे लिए लड़ नहीं सकता

माना तुम मेरे लिए लड़ नहीं सकती

मगर हम एक-दूसरे के मुश्किलों में

साथ खड़े तो रह सकते हैं ना ?

एक दूसरे की ढाल बनकर ?


फिर ऐसे रिश्तों को तोड़ देने का 

तुम्हारा क्या औचित्य है ?

खुशियों में साथ रहने का 

मुश्किलों में छोड़ देने का 


तुम्हारा क्या औचित्य है‌ ? 

Last request

 कविता :- 

       जाने से पहले मेरे सवालों का जबाव देती जाओ



सवाल ये नहीं कि मुझे कोई और मिल जायेगी

सवाल ये भी नहीं कि मैं उसे तुम जितना चाहूंगा

सवाल ये है कि वो तुम जितना मुझे चाहेगी कि नहीं ?

जितना तुम मुझे समझ पाई वो कोई 

मुझे समझ पायेगी कि नहीं 


मेरी हर बातों का जबाव वो दे पायेगी कि नहीं

जब मैं उसके सवालों का जबाव न दे पाऊं

वो मुस्कुरा कर हर बात मुझे प्यार से समझायेगी कि नहीं 

मेरी मुश्किलों में वो मुझे गले लगायेगी कि नहीं


सवाल ये है कि जब मुझे भूख लगे तो

वो अपने हाथों से तुम्हारी तरह खाना खिलायेगी कि नहीं 

जब मेरा प्यास से गला सूखने लगे वो हड़बड़ा कर पानी पिलायेगी कि नहीं ? 


क्या तुम्हें लगता है वो कोई तुमसे 

अच्छा मुझसे प्यार निभायेगी

क्या वो तुम जितना मुझे प्यार दे पायेगी? 

अगर नहीं तो प्लीज़ मुझे छोड़कर मत जाओ

मैं तुम्हारे प्यार के बिना अधूरा हूं और 

तुम्हारे प्यार के बिना मैं कभी पूरा नहीं हो सकता

तुम ही मुझे पूरा कर सकती हो कोई और नहीं 

तुम सुन रही हो ? 

चेहरे दिल का आईना हैं

 कविता:- चेहरे दिल का आईना हैं।


मैं दिल से कहता हूं

तुम दिल की बड़ी खुबसूरत हो

चेहरे की सुंदरता मैंने कभी देखी नहीं किसी की

जो एक सी रहती हो ना मेरी, ना तेरी


क्या तुमने कभी गौर किया है?

चेहरे ढलते हैं सूरज जैसे

जब सूरज उगता है, चेहरे उगते हैं

क्योंकि सुबह दिल की उमंगें सबके चेहरे पर दिखते हैं


कहते हैं चेहरे दिल का आईना हैं

जो दिल कहता है वही चेहरे कहते हैं

फिर कैसे कह सकता है कोई

चेहरे अच्छे हैं चेहरा बूरा है ?


क्या तुमने आईनों के अलग रंग, अलग रूप देखें हैं

देखें होंगें मगर क्या ये रूप दिखाने के अलावा भी कुछ करते हैं, नहीं ना ।

तो फिर चेहरों के अलग रंग अलग रूप देखकर

क्यों तुम्हें ये चेहरे अच्छे, बूरे लगते हैं


अगर लगते हैं तो ये हर चेहरे के पिछे छुपे

दिल की अच्छाई है, दिल की बुराई है

चेहरे और नहीं हैं कुछ भी

तुम्हा

रे दिल की परछाई हैं × २ 

नज़्म:- मेरी अभिलाषा

ये जो डर सा लगा रहता है  खुद को खो देने का, ये जो मैं हूं  वो कौन है ? जो मैं हूं !  मैं एक शायर हूं । एक लेखक हूं । एक गायक हूं मगर  मैं रह...