मुश्किलें मेरे लिए भी उतनी ही हैं
जितनी तुम्हारे लिए
मगर क्या मुश्किलों से घबराकर
रिश्ते तोड़ लिये जाते हैं ?
मैंने सुना था मुश्किलों के वक्त
रिश्ते ढाल बन जाते हैं
तुम्हें लगता है कि
तुम्हारी लड़ाई में मेरा क्या काम,
मेरी लड़ाई में तुम्हारा क्या काम
मुझे लगता है
भले लड़ाई तुम्हारे अकेले की हो
भले लड़ाई मेरे अकेले की हो मगर
साथ कोई अपना खड़ा हो तो
हमारा हौसला बढ़ जाता है
माना मैं तुम्हारे लिए लड़ नहीं सकता
माना तुम मेरे लिए लड़ नहीं सकती
मगर हम एक-दूसरे के मुश्किलों में
साथ खड़े तो रह सकते हैं ना ?
एक दूसरे की ढाल बनकर ?
फिर ऐसे रिश्तों को तोड़ देने का
तुम्हारा क्या औचित्य है ?
खुशियों में साथ रहने का
मुश्किलों में छोड़ देने का
तुम्हारा क्या औचित्य है ?
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