तुम कहती हो मैं डरपोक हूं
हां हूं ! मैं डरपोक
मैं डरता हूं कि तुम्हारे प्यार में कहीं
मैं भूला ना बैठूं इस दुनियां को
जिस दुनियां में पिता का सर पर हाथ मिला
मिली मां के आंचल की छाया
जिस दुनियां में बड़े भाई का विश्वास मिला
मिली बहन के स्नेह की धारा
कैसे भूला दूं मैं इस दुनियां को
तुम्हारे प्यार से पहले मैं इनके प्यार में हारा
तुम्हारा मेरा प्यार कहीं
रह जाये ना बनकर स्वार्थ हमारा
इसी स्वार्थ के चक्कर में
मैं भूल ना बैठूं दुनियां सारा
इसलिए मैं तुम्हारे प्यार में
इस दुनियां को खोने से डरता हूं
जिस दुनियां में मुझे अपमान से पहले मान मिला
उन मानों को खोने से डरता हूं
मुझे डर लगता है
मैं अपने सम्मानों के खोने से डरता हूं
कौन समझता है भला
तेरे मेरे इस रिश्ते को ?
तुम भी तो मुझसे कहती हो
मुझे तुमसे मिलने में डर लगता है
ये डर क्या है भला तुम्हारा ?
तुम्हारी भी इक दुनियां है
और उसे तुम खोने से डरती हो
ये डर क्या है भला तुम्हारा ?
तुम अपनों के विश्वासों को तोड़ने से डरती हो
ये डर क्या है भला तुम्हारा ?
तुम खुदके अपमानित होने से डरती हो
ये डर क्या है भला तुम्हारा ?
क्यों
तुम हमसे छुप छुप कर प्यार करती हो ?
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