Friday, May 31, 2024

काव्य:- तुम रहने दो, रहने दो

 काव्य:- तुम रहने दो, रहने दो 


हमीं गलत, 

हरबार सही तुम 

रहने दो, रहने दो


मेरा मौन भी गलत

बोलने पर बड़बोलापन भी 

तुम रहने दो, रहने दो 


हमीं कहें हरबार तुम्हें 

तुम्हें कभी कुछ कहना नहीं, ना सही 

तुम रहने दो, रहने दो 


हमीं ने किया इजहार तुम्हें

तुम्हें लगता मेरा ही झूठा प्यार सही 

तुम रहने दो, रहने दो 


हमीं ने किया तुम्हें प्यार

प्यार नहीं करना तुम्हें ना सही 

तुम रहने दो रहने दो

No comments:

Post a Comment

नज़्म:- मेरी अभिलाषा

ये जो डर सा लगा रहता है  खुद को खो देने का, ये जो मैं हूं  वो कौन है ? जो मैं हूं !  मैं एक शायर हूं । एक लेखक हूं । एक गायक हूं मगर  मैं रह...