जब से जीता चुनाव उन्होंने बलवान हुए वो नेता जी,
छप्पन इंच का सीना हुआ पहलवान हुए वो नेता जीडूबाने वाले जलयान के कप्तान हुए वो नेता जी
Hii guys, Welcome to our blog Poetic Baatein you will read here a lot of poems, stories and many thoughts which I have written here and in future whom I shall write.
जब से जीता चुनाव उन्होंने बलवान हुए वो नेता जी,
छप्पन इंच का सीना हुआ पहलवान हुए वो नेता जीकविता:- सफलता का श्रेय
सफलता के दो कदम पीछे ही मेरे अपनों ने साथ छोड़ दिया है
जो बढ़ाया था हाथ उसने मेरी सफलताओं को देखकर मोड़ लिया है
जिन पर विश्वास था मुझे सबसे ज्यादा
उन्होंने मुझे मेरे हालात पर छोड़ दिया है
मैं सफल हो न जाऊं कहीं
उन्होंने मुझसे मुंह मोड़ लिया है
उनको लगता है उनके साथ छोड़ने से मैं टूट कर बिखर जाऊंगा
मूर्ख हैं वो लोग जो सोचते हैं कि जहां वो हैं मैं भी वहीं ठहर जाऊंगा इंसानियत का कोई मतलब ही नहीं है इस दुनियाँ में
वो मुकर जाते हैं किसी की सफलता को देखकर
जो मांगते हैं उनके सफलता की दुआ अपनी झोलियां में
मैंने सोचा था सफलता की सीढ़ी पर चढ़कर
अपनी सफलता का श्रेय किसको दूंगा ?
जब अपनों ने मेरा साथ दिया है तो
निःसंदेह सफलताओं का श्रेय में उनको दूंगा
पर जब अपनों ने मेरा साथ छोड़ा
तो मेरा दिल टूटा तो सही
पर मैंने अपने दिल के टुकड़ों को बिखरने नहीं दिया
इसलिए मैंने अपनी सफलता का श्रेय मुझे दिया है
क्योंकि हर परिस्थिति में मैंने अपने सपनों का साथ दिया है
मैंने मेहनत डटकर किया है ।
About its creation:-
अपने हमेशा अपने ही होते हैं पर जो चापलूसी से अपनापन सिद्ध करना चाहते हैं उनका कोई भरोसा नहीं कि वह कब अपना रंग दिखा दे उनका अपनापन वहीं पर क्यों थम जाता है मदद ? मदद हर कोई किसी की करना चाहता है पर संभवतः मदद तो वो होनी चाहिए कि हमारी मदद से कोई शिखर पर पहुंच जाए और हमारे मन में अभिमान का एक अंश न आए , यह ना आए कि हमने उसकी मदद की है तो उसको हमारा एहसान मानना चाहिए और मूर्खता पूर्ण यह कहते हुए कि क्या वह हमसे बड़ा हो जाएगा तो हमारी इज्जत करेगा ? जहां पर अपनों का सफल होना उनसे देखा नहीं जाता है शायद वह हमसे इतना प्यार करते हैं कि उनसे हमारा दूर जाना अच्छा नहीं लगता है पर क्या प्यार का यही मतलब है कि आप अपने साथी के रास्तों में कांटा बिछाकर उसे रोकें , उनके रास्तों का रोड़ा बनकर उसे रोके यह तो मूर्खता है ना यदि आप सच में उनसे प्यार करते हैं तो उनका अनुसरण कीजिए उनके जैसा कड़ी मेहनत कीजिए ताकि आप उनके साथ चल सके किसी के सफलता के समय हमें उसका साथ नहीं छोड़ना चाहिए यह हमारे प्यार की परीक्षा की घड़ी होती है किसी ने कहा है यदि वह आपसे सच में प्यार करता है तो सफलता की कितनी ऊंचाइयों को छू ले आपको जरूर याद रखेगा पर यदि आप किसी के सफलता के समय मुंह मोड़ लेंगे तो आपके अंदर का इंसान आपको कभी माफ नहीं कर पाएगा आप चाहे जितनी भी किसी की मदद कर ले आपका किया वह हर मदद हमेशा आपको क्षुद्र ही लगेगा जब आप किसी के सफलता के रास्ते का रोड़ा बनेंगे इस कविता की उत्पत्ति का कारण मेरे आसपास के लोग हैं जो दिलासा तो देते हैं कि वह मेरी मदद करेंगे पर वह समय आते ही मुकर जाते हैं । हर सफलता की एक कहानी होती है चाहे वो जैसी हो आप भी लिखिए उस कहानी को ।
Thought:-
यदि आपको किसी की मदद करनी है तो आपको उन्हें ढूंढने की जरूरत नहीं है अपनी जिंदगी में सिर्फ उनकी मदद कर दीजिए जो खुद चलकर आपके दर पर आते हैं ।
कविता:- वक्त कम है
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
उठ खङा हो
रोक ना तु बढते हुए कदमों को यारों
बढ चला है थमने ना देना-देना ना थमने साँसों को प्यारों
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
देख तु तेरे पास ही कोई भुखा शेर खङा है
भूख तु भी बढा ले यारों रोटी का यहाँ बैर बड़ा है
मांगना मत छीन ले
हो गर तुम्हारे पास दे गमगीन को
तेरे पास कलम उन्हे बना समसीर ले
जो आज तु लङ जायेगा
तुम्हारी पीढियाँ तुम्हारा गुण गायेगा
जो आज तु सो जायेगा
तुम्हारी पीढियाँ रोटी के इक निबाले को रो जायेगा
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
वक्त कम है फिर भी तु लङ सकता है
मैदान में चाहे हो जो कोई
तु खुद को बस जीत ले
हर जंग तु भी जीत सकता है
देर ना कर सोचने में सोचने में तु देर ना कर
कर तु जो करना है तुमको बार बार मुड़कर देखा ना कर
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
About its creation:-
कविता लिखने के लिए किसी विशेष ज्ञान की आवश्यकता नहीं कविता हमारे व्यवहार से उत्पन्न होता है हमारे स्वभाव से आता है। भारत के महान कवि रविंद्रनाथ टैगोर जी का मानना था कि हमारी शिक्षा खुले आसमान के नीचे होनी चाहिए प्रकृति के बीचो-बीच होनी चाहिए न कि दीवारों से घिरे छोटे से कमरे में उनके कहने का पर्याय यही था कि हमें ज्ञान न केवल पुस्तक से सीखना चाहिए वरन प्रकृति से भी ।
मैंने जब से कविता लिखना प्रारंभ किया है मैंने स्कूली शिक्षा, कमरे में बंद शिक्षा और किताबी ज्ञान से बचने की कोशिश की है मगर ना चाहते हुए भी मुझे दुर्भाग्यपूर्ण उन्हें पढ़ना ही पड़ता है घर के लोग मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हैं उनका कहना है कि तुम्हें पहले सरकारी नौकरी करनी पड़ेगी इसके बाद ही तुम अपने मन का कोई काम कर सकते हो तुम ना तो अभी संगीत सीख सकते हो न ही कविता पाठ कर सकते हो और न ही लिख सकते हो!
मुझे भेज दिया एसएससी और रेलवे की तैयारी करने के लिए मगर मेरा कवित्व कहां पीछा छोड़ने वाला था कोचिंग गया तो अथाह भीड़ को देखकर सोचा और खुद को समझाने लगा “वक्त कम है” और भागने का कोई औचित्य नहीं है तो पढना प्रारम्भ कर दिया पढते हुए मैंने अपने सहपाठीयों के उत्साह वर्धन के लिए इस कविता की रचना की ताकि उनके सफलता में मेरी कविता सहयोगी बन सके ।
कविता:- मन एक मंदिर
मन वो मंदिर तेरी काया का
जिसमें पलता है दानों पर देव तेरा
मन गाए तो समझो दानव गाए
तुम गाओ तो गाओ देव सदा
मन की ना गाओ गीत कभी
मन वो हो जो गाए गीत तेरा
मन छलिया है मन पापी है
मानो तो देवों सा मन सर्वव्यापी है
तुम मना लो मन को तो तुम्हें देव मिले
क्योंकि दानव और देव दोनों ही तेरे अंतर व्यापी है
ना मंदिर में आग लगा लेना
ना राक्षस को गले लगा लेना
जो देव तुम्हारे अंदर है तुम
तुम उसको न कभी भूला देना
About its creation:-
आप अपने इधर उधर देखिए कि कैसे प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और शोषण हो रहा है यहां मौजूद हर प्राणी परेशान है उसका कारण खोजने की कोशिश करेंगे तो चारों तरफ उंगली घूमने के बाद वह आपकी तरफ इशारा करेगा, इंसान ही इन कारणों का जड़ है धरती में अपार क्षमता है कि वह अपने यहां बसने वाले हर प्राणी के बिना कुछ किए भोजन और पानी का प्रबंध कर सकता है मगर इंसान को इससे भी ज्यादा कुछ चाहिए अपने तृष्णा की भूख और प्यास बुझाने के लिए भोजन और पानी है काफी नहीं है । अगर इंसान को गुस्सा आए तो वह किसी को मारकर अपने गुस्से को शांत करना चाहता है, अगर उसे भूख लगे तो वह किसी का खाना छीन लेना चाहता है अगर उसे किसी से ईर्ष्या हो जाए तो वह पूरे संसार पर विजय पा लेना चाहता है इसी क्रोध, इसी भूख और इसी ईर्ष्या की इच्छा पूर्ति के लिए एक इंसान दूसरे इंसान से प्रतिस्पर्धा में के होङ में लगा है । आखिर ये क्रोध ये असीमित भूख और ईर्ष्या आता कहां से है इंसान के मन से ! अगर इंसान चाहे तो इंसान के मन में इससे इतर विचार भी आ सकते हैं जो हर किसी के लिए हितकर और कल्याणकारी हो सकता है इंसान क्रोध की जगह करुणा का भाव ला सकता है, असीमित भूख की जगह संयम ला सकता है और ईर्ष्या की जगह दूसरों से प्रेरित होने का भाव मन में ला सकता है मगर इंसान मन की बुरी प्रवृत्तियों में फंस कर अपना ही सर्वनाश करने पर तुल जाता है अगर वह मन को समझाएं और मनाए तो वह एक अच्छा इंसान बन सकता है मन की इन्ही प्रवृत्तियों को देखकर मैंने यह कविता लिखा है।
कविता:- अचेतन मन में हूँ
अचेतन मन में हूँ !
मुझे कोई चेतन मन में लाओ यारों,
जिसे सुनने के लिए मन तरस गया
कोई कहानी उसकी सुनाओ यारों
वो रेत सी फिसली थी कि
मैं भी ढेर हो गया हूँ वहीं,
वो हवाओं के संग चली गई
मैं गैर हो गया हूँ कहीं
मैं मिट्टी हूँ !
कोई मूर्ति बनाओ यारों,
वो भी मेरे दर पर पूजन करे
मेरी कोई कीर्ति ऐसी बनाओ यारों
वो छू ले अगर जो मुझमें जान आ जाए
मूर्ति क्या पत्थर में भी प्राण आ जाए
मुझे कोई मेरी जान से मिलाओ यारों
अचेतन मन में हूँ , मुझे कोई ...... ।
About its creation:-
ये कैसा शोर-शराबा है मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है लोगों को कहो ना मुझे मेरे टूटे दिल के साथ रहने दे मैं उस स्थिति में नहीं हूँ कि अभी मैं किसी को कुछ बता सकता हूँ । अगर किसी को कुछ करना ही है तो उन्हें कहो मुझे मेरा महबूब लाकर दे दे अगर नहीं लाकर दे सकता है तो मुझे मेरे महबूब के यादों के संग जीने दो । अगर इसके अलावा मुझसे कुछ पूछोगे तो मैं नहीं बता सकूंगा सिवाय महबूब के बातों के अगर किसी को मुझसे मेरे महबूब के बारे में सुनना है तो मैं बस उसी को गा रहा हूँ, आकर कोई सुन ले यह ऐसा गीत है कि मानो कभी खत्म नहीं होगा क्योंकि जो गा रहा हूँ वो लिख भी रहा हूँ अपनी तनहाई में उसकी बातें करना मुझे अच्छा लगता है इससे मैं अकेला महसूस नहीं करता हूँ । सभी को कह दो मुझे किसी की जरूरत नहीं है अगर इसके लिए मुझे कोई स्वार्थी कहता है तो उसे कह लेने दो, अज्ञानी कहता है तो कह लेने दो । मुझे किसी को कुछ साबित नहीं करना है अब साबित भी करेगा कोई तो वह मेरे शब्द , मेरे भाव होंगे भले उन्हें समझ में मेरे यहां से जाने के बाद आएगा उन्हें यह भी कह दो अभी मुझे समझने के लिए अपना सर ना फोड़े उनके लिए मैं कुछ यह भी नहीं पर समझ से उनके परे हूँ मैं !तुम मूर्ख हो क्या? , तुम पागल हो क्या?, तुम सनकी हो क्या? , तुम्हारा ध्यान कहाँ है? , मेरे सवालों का जवाब दो तुम्हें पता नहीं मैं तुमसे क्या पूछ रहा हूँ ? और तुम्हें कुछ समझ में नहीं आता? अगर इतना आपको कोई कुछ कहे तो आप क्या कहेंगे?
-हाँ मुझे कुछ समझ में नहीं आता और मुझे समझाने की कोशिश भी मत करें क्योंकि अंततः मैं अपने दिल की सुनूँगा और यह मेरे दिल की हिदायत है कि अगर मैंने अपने दिल के अलावा किसी और से बात करने की कोशिश की तो मेरा दिल मुझसे बात नहीं करेगा यही हालत इस प्रकार की कविता लिखने वाले कवि की होती है जब वह इस प्रकार की कविता लिखने लगता है तो वह हमेशा हर किसी के सवाल पर किंकर्तव्यविमूढ़ रहता है पर उसे एक आवाज हमेशा सुनाई देती है वह है उसके अपने दिल की ।
Thought:-
कभी-कभी आपका सफर आपको लोगों के बीच अज्ञानी व मूर्ख बना सकता है पर आप चिंता ना करें आप लोगों से बेहतर होंगे ।
कविता:- माँ सावित्री तेरा अभिनंदन है
एक जंग पर चलता हूँ माँ मेरा साथ देना
डगमगाए ना मेरे पैर मुझे विश्वास देना
इस आस पर विश्वास हो ना छल कपट मेरे साथ हो
हम चले भी उनके साथ में जो दोस्त हमारे साथ हो
हो अगर कभी बुराइयां मेरे सामने
माँ डगमगाए पैरो को आना थामने
माँ तेरा हाथ छूटे ना कभी मेरे हाथ से
तेरे चरणों की धूल लगाऊं मैं अपने हाथ से
विद्या की देवी माँ सावित्री तेरा वंदन है
तू आना हर साल माँ मैया तेरा अभिनंदन है ।।
About its creation:-
यह किसी कहानी की उत्पत्ति नहीं है और ना ही ये कोई कहानी है इसे मैंने अपनी माँ की भक्ति में लिखा है जो अविश्वसनीय है । मैं सच कहता हूँ हम में से ऐसे कितने ही व्यक्ति हैं जो श्रद्धा से कभी माता की पूजा शायद ही करते होंगे एक भक्ति काल का समय था जब हर वक्त लोगों के जुवान पर भगवान का नाम होता था लोग सुबह शाम कुछ समय के लिए भक्ति में लीन हो जाते थे । उस युग के लोगों का पूरा माहौल भक्तिमय था जिससे उस युग के कवि अपनी कविता में भक्ति के छाप छोड़ देते थे आज का समय वह नहीं रह गया मेरा मानना है कि किसी काल्पनिक शक्तियों की सहायता से लिखने वाले कवियों से अच्छा वो कवि होते हैं जो उस चीज को खुद महसूस करते हैं और जो उस माहौल में नहीं रहते हैं उस माहौल की कल्पना करते हुए लिखने की कोशिश करते हैं उनके लिए कविता के भाव का चुनाव दुष्कर होता है ।
Thought:-
यदि आप किसी चीज को लिखना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको उसमें जीना सीखना होगा ।
कविता:- स्वतंत्रता के इस युग में कविता
स्वतंत्रता के इस युग में लिखी हर कविता एक कहानी कहती है
सच में ! एक कहानी कहती है ? या फिर वह कहानी ही रहती है
लोगों का कवियों से विश्वास उठ रहा है
लगता है कवियों का अस्तित्व लूट रहा है
एक सच्चा कवि यह कैसे मान ले ?
जो आगे कोई लिख रहा है वह कविता करता है
जबकि ना उनकी कविता कोई कहानी कहती है
और ना वह कविता कोई कहानी ही रहती है
किसी की चापलूसी को वह सच्ची प्रशंसा मान बैठे
तो इसमें उन सच्चे कवियों का क्या दोष है,
उनके साथ ही उन कवियों की कविताएं भी
उस अलमारी में दब जाती है ना जिनके शब्दों में जोश है
लोग छूना नहीं चाहते हैं
स्वतंत्रता के इस युग में लिखें कविताओं के किताबों को,
कुछ ऐब तो हमारे देश के पाठकों में भी हैं
जो नहीं देना चाहते हैं गड़बड़ाने नोटों के हिसाबों को
About its creation:-
जब ‘अज्ञेय’ ने अपने स्वतंत्रातमक और प्रयोगवादी कविता का चलन प्रारंभ किया था तब कुछेक ने उनकी आलोचना प्रारंभ की पर उन्होंने आलोचनाओं की परवाह नहीं की उन्होंने स्वतंत्र काव्य को लिखना जारी रखा जिसने जनमानस के भीतर स्वतंत्र काव्य लिखने के रुचि को जागृत किया इससे पहले लोगों को एक कवि बनने के लिए काफी कसरत करना पड़ता था वो कसरत अब लोगों को नहीं करना पङ रहा है स्वतंत्रता के इस युग में कोई भी कवि बन सकता है पर आपको पूछेगा कौन यह आपको खुद से पूछना है ऐसा नहीं है कि स्वतंत्रता के इस युग के काव्य पढ़ने अथवा सुनने लायक नहीं है कहीं-कहीं आप इसे पढ़ेंगे तो देखेंगे कि पहले के किसी युग की लिखी कविता से भी ज्यादा प्रभावी है पर आज की युवा पीढ़ी इसे नहीं समझना नहीं चाहती है कुछ पंक्ति केदारनाथ सिंह की ही ले लीजिए-
“अगर धीरे चलो
वह तुम्हें छू लेगी
दौड़ो तो छूट जायेगी नदी”
इस पर आज का युवा कहेगा कि इसको क्या पढना इसमें तो कोई रस
ही नहीं पर इसके अंदर छुपे भावों को वो नहीं समझेंगे कि आखिर नदी के माध्यम से केदारनाथ जी उन्हें क्या समझाने की कोशिश कर रहे हैं ।
इस युग की कविता दिमाग से ज्यादा दिल से लिखी जाती है इसलिए कभी-कभी आपको लगेगा कि यह तो कुछ भी नहीं है मगर उस कुछ भी नहीं मैं बहुत कुछ छुपा होगा जो कविताएं तुकांत शब्दों से सजाकर लिखी होती है वह सुनने में ज्यादा अच्छा लगती है पर जिनमें कोई तुकान्त शब्दों का प्रभाव नहीं होता जो केवल अपनी बात रखने के लिए लिखी जाती है वह सुनने में उतना अच्छा नहीं लगता मगर वह पढ़ने में अच्छा लगता है मैंने एक कवि सम्मेलन में एक कवयित्री को अपनी बात रखते देखा था जिनकी स्थिति ऐसी कविताओं की रचना करके भी निराशाजनक थी आप भी अपनी बात रख सकते हैं पर किसी कागज पर , सुनाकर लोगों के सामने अपना मजाक मत बनाइए क्योंकि जब हम काव्य पाठ करते हैं तो उसमें स्पष्टता और प्रवाह का होना आवश्यक है जो कविताओं में तुकांत शब्दों के प्रयोग से ही संभव हो सकता है कुछ चीजें पढने के लिए होतीं हैं और कुछ सुनने के लिए ।
Thought:-
तुकांत शब्द से सजी कविता सुनने में अच्छे लगते हैं और केवल भावनाओं को रखने वाली कविताएं पढ़ने में अच्छी लगती हैं ।
कविता:- कमियों से लड़ने का नाम जिंदगी है
कमियां किसके अंदर नहीं है
कमियों के नाम जिंदगी है
जो कमियां से नहीं लड़ता
उसका बदनाम जिंदगी है
कमियां हमें कमजोर करने पर लगी रहे
हमें जरूरत है उसे पछाड़ते रहने की
कमियों को जिंदगी से दूर करने की
और अपनी जिंदगी को संवारते रहने की
कला सबके अंदर होती है
कमियों को दूर करने की
कोई खड़ा तो हो और कोशिश तो करें
उन कमियों को दूर करने की
कमियां लाख हो तुम्हारी जीवन में
उसे जिंदगी में ज्यादा नहीं महत्व देना है
कमियों को अपनी जिंदगी में नहीं स्वामित्व देना है
कैसे जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा
कमियों के नाम हो जाता है,
कमियों को अपने ऊपर हावी होने देने वाला
कोई इंसान बदनाम हो जाता है।।
About its creation:-
यह सच है की कमियों और कमजोरियां सबके अंदर है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि उसे दूर करने की कला भी सबके पास है पर जब हमारा कमियों और कमजोरियों के सामने हौसला टूटता है तो वह हमारे अंदर घर बना लेता है हम उसे अपने मन मस्तिष्क में स्थान दे देते हैं जो हमारी सबसे बड़ी गलती है यदि हमारे अंदर कोई कमी है तो हमें उसका डटकर सामना करना चाहिए और तब तक हार नहीं मानना चाहिए जब तक की उस कमी का समाधान न मिल जाए हमारा जीवन अनमोल है ऐसे में यदि हम कमियों को अपने जेहन में, अपने जीवन में स्थान देते हैं तो समझ लीजिए कि आधी जिंदगी हम उन्हीं कमियों से परेशान रहेंगे इसलिए यदि हमें जीवन में खुश रहना है तो हमें हर उस चीज से परहेज करना चाहिए जो आगे चलकर हमारी कमजोरियों का कारण बन जाए । हमने देखा है कि जब हमारे अंदर कोई कमजोरी या कमी पनपती है तो हम लोगों से मिलने से घबराते हैं उनसे बात करने से घबराते हैं ऐसा इसलिए है क्योंकि हम उन कमियों को लोगों से छिपाना चाहते हैं जो कि गलत बात है ऐसे में तो हम उन कमियों के दूष चकर से कभी बाहर ही नहीं निकल पायेंगें हमें अपनी कमियों को लोगों के समक्ष नजर अंदाज़ करना सीखना होगा और उससे लड़ना होगा और जो इस लड़ाई में हमारा साथ दे सकता है उसका साथ लेना होगा तभी हम अपनी कमियों को दूर कर पायेंगे ।
Thought:-
अपनी कमियों को लोगों के सामने नजर अंदाज करना सीखिए
नहीं तो आपका विश्वास खुद पर से उठ जाएगा ।
कविता:- आंखों की काली छाई से
आंखों की काली छाई से
पेड़ की मिली परछाई से
मैं अपना जीवन काट लेता
कभी होता दुख मेरे सर कोई
तो पेड़ों से ही अपना दुख बांट लेता
लगती भूख मुझे कभी तो पेड़ों से ही कुछ फल मांग लेता
उसका कर्ज चुकाने के लिए उससे कुछ मोहलत मांग लेता
मुझे जरूरत नहीं थी किसी के छत पर खटने की
पर मैंने तेरी जरूरत को समझा
मेरे होते हुए तुम्हें जरूरत नहीं हुई ना
बेटे ! भटकने की जो मैंने तेरे प्रति
अपनी मुहब्बत को समझा
मेरी जिंदगी उस दौर में थी जिस दौर में जो गुजरा जवाना
मेरा लक्ष्य बस एक तू ही था और तुम्हारी जिंदगी बनाना
न चाहता था रुके तेरा कदम तू आगे ही बढ़ते रहना
प्रेरणा देगी मेरी आंखें तुम्हें
मेरी आंखों की परछाई को पढ़ते रहना ।
About its creation:-
आप क्या लिखना चाहते हैं वह तो आप लिख लेंगे पर जिस दिन आपकी भावनाओं में वो बात नहीं रह जाएगी जिसे लिखा जा सकता है तब आप क्या करेंगे? कुछ लोग एक उम्र तक जाते-जाते यह स्वीकार कर लेते हैं कि अब उनकी उम्र नहीं रही लिखने की वह ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि वह अपने लेखन को उम्र के साथ जोड़कर देखते हैं पर लेखन एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें उम्र का कोई वास्ता नहीं होता है । उम्र कोई भी हो लेखन सोचने की क्षमता पर निर्भर करती है आपके इस क्षेत्र में रुचि पर निर्भर करती है रही बात आपकी भावनाओं के खत्म होने के बाद की बात तब आप उसके बाद भी अपना लेखन जारी रख सकते हैं जिसमें लेखन तो आपका होगा पर आपको दूसरे के भावों को अपनी कविता में उतारना पड़ेगा कुछ दिनों से मैं अपनी रचनाओं को लेकर बहुत निराश था सप्ताह का सप्ताह बीतता जा रहा था और मेरा मन भावों से खाली था मैं सोच रहा था कि मेरे पास कोई शब्द कोई भाव क्यों नहीं है जिसे मैं अपनी रचना में ढाल सकूं मैंने महसूस किया कि मेरे पास कोई ऐसी बात ही नहीं है जिसे मैं कह सकूं आज तक मैंने अपने संघर्षों के बारे में कविता लिखा था पर कोई और मुझे क्या कहना चाहता होगा उसके संघर्षों की कहानी किस कविता को जन्म देती होगी ऐसा कभी मैंने सोचा ही नहीं था । ये मेरी एक ऐसी कविता है जिसमें एक संघर्ष पूर्ण पिता अपने बेटों को अपने चेहरे के भावों से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है ।
वो पिता मैं नहीं हूँ , मैं कवि हूँ !
Thought:-
लेखन एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें आप उम्र को दोष नहीं दे सकते हैं लेखन में प्रगति आपकी खुशी, उमंग और कल्पना पर निर्भर करता है ।
कविता:- शहादत का वादा
एक रेत का घरौंदा कितना अच्छा होता है
पर एक हल्की हवा के झोंके से वह गिर जाता है
मुझे अच्छी चीजों को का नष्ट होना अच्छा नहीं लगता है
जैसे कोई फूल कितना सच्चा होता है
एक दिन के लिए ही सही उसकी खुशबू कितना अच्छा होता है
जिन्हें वादियों में वो बिखेर जाता है
जैसे कोई फूल खूबसूरत श्वास छोड़ जाता है
वैसे कोई रेत का घरौंदा किसी की आंखों में अपना छाप छोड़ जाता है
उनका इस तरह निर्मोही होना खुदा का इबादत है
फूलों का श्वास और घरौंदों का छाप छोड़ना उनका सच्चा शहादत है
क्या हम उस फूल की खुशबू की तरह नहीं हो सकते ?
जो वादियों में जीने के लिए श्वास छोड़ जाता है
क्या हम उस घरौंदा की तरह नहीं हो सकते हैं
जो किसी के आंखों में खूबसूरत छाप छोड़ जाता है
हमें इसके लिए उस रेत के घरौंदे से सीखना होगा
जो हल्की सी धूप से मोम की तरह पिघल जाता है
हमें उस फूल की खुशबू से कुछ सीखना होगा
जो हवा की हल्की छुअन से वादियों में निकल जाता है
उसके पास तो समय कम होता है और हमारे पास ज्यादा
क्या हम कर सकते हैं उस घरौंदा और एक फूल की तरह
कभी कहीं जाने से पहले खुशबू और छाप छोड़ने का बाद
क्या हम कर सकते हैं शहादत का वादा ?
About its creation:-
एक बार जब मैं अपने दुकान पर बैठा था दुकान के सामने मैदान में कुछ मजदूर काम कर रहे थे तभी मेरी नजर ट्रैक्टर में फावड़े की सहायता से डाल रहे मजदूरों के फावड़े पर पड़ी और साथ ही उस फावड़े से निकलते हुए बालू पर जो अपनी शीतल प्रकृति के कारण फावड़े से निकलते हुए फावड़े सी एक सुंदर तस्वीर बना रही थी और ट्रैक्टर के डाली में गिरने से भंगुर के समान धीमी गति से नष्ट हो जा रही थी मैं इस दृश्य को बस देखे ही जा रहा था और मेरी नजर उस से हटती ही नहीं थी क्योंकि यह दृश्य मेरे लिए अद्भुत था मैं इसे देखकर मन ही मन पुलकित हो रहा था तभी अचानक मेरे भैया की गाड़ी दुकान के सामने रुकी अब मेरे कोचिंग जाने का समय था इसलिए मैं अपनी साइकिल लेकर तेजी से घर की ओर बढ़ा और मैंने सोचा वह दृश्य मेरे लिए अविस्मरणीय है होना चाहिए और मैंने साइकिल चलाते हुए ही दो-तीन वाक्य मन में सोच लिया था पर यह पूरी तरह से वह नहीं था जिसे मैंने अपनी कविता ने लिखा है मैंने सिर्फ उस दृश्य का वर्णन करने का मन बनाया था पर मेरे उमंगों को कुछ और ही मंजूर था जिस ने मेरे कलम को मोड़ दिया और उस दृश्य के वर्णन के बजाए उसके दी जा रही सीख पर मेरा ध्यान चला गया।
अपने देश के लिए शहादत की चाह तो एक पुष्प भी रखती है इसकी व्याख्या पुष्प की अभिलाषा में माखनलाल चतुर्वेदी जी ने किया है-
“चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गुथा जाऊं,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि, डाला जाऊं,
चाह नहीं देवों के सर पर चढूं भाग्य पर इठलाऊं,
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढाने जिस पथ जावें वीर अनेक”
Thought:-
अपने मन में देश प्रेम की भावना रखना हमें हर तरह से एक अच्छा नागरिक बनने के लिए प्रेरित करता है और जिस देश के नागरिक अच्छे होते हैं उस देश की तरक्की निश्चित रूप से होती है ।
कविता:-बेटियों से अच्छा कोई और नहीं है
बेटियाँ हो तुम बेटियों पर सामत आयी है
कह देना तुम बहनों से बेटियों पर कयामत आयी है
एक बोझ है उनके कंधों पर उसे वह उतारेगी
किसी के टुकड़ों पर नहीं खुद अपना भविष्य संवारेगी
उसे प्रीत की रीत को बदलना होगा
लड़कियां दहेज नहीं लेती इस रीत को बदलना होगा
उन्हें दिखाना होगा कि वह पिता का बोझ नहीं है
उन्हें दिखाना होगा कि बेटियों से अच्छा कोई और नहीं है
बेटियाँ परायी होती है या अपना
उस बाप से पूछो जो बेटों को चाहते हुए भी
बेच देता है उन्हें और उनका सारा सपना ।।
About its creation:-
आज अचानक जैसे घर का माहौल मातम सा बन गया हो इस आधुनिक भारत में भी किसी के दबे मुंह से सांत्वना और प्रशंसा के रूप में बस इतनी ही बात निकली हो कि-
“सब भगवान के खेल हकय एकरा में पतोहू के कौन दोष हय”
आज घर में तीसरी लक्ष्मी ने जन्म लिया है पर घर में किसी के चेहरे पर खुशी नहीं सभी की इच्छा और कामना यही थी कि इस बार बेटा ही हो पर हुआ वही जो नियति को मंजूर था ये खबर कहीं से टकराती हुई मेरे कानों तक पहुंची कि आज मेरी एक भांजी और बढ़ गई है मैं पहले ही दो भांजियों का मामा था और इस खबर को सुनकर और खुश हो गया पर मैं इस बात से हैरान था कि अशिक्षित बाप और पड़ोसियों को खुशी का एहसास कैसे होगा जो अपने समाज में बेटियों को सिर्फ दहेज का पुतला मानते हों इस बात को सोच कर मेरा मन विकृत होने लगा और मैंने शांत मन से सोचा कि आज से बेटियों पर कयामत आ गई है उनका संघर्ष दुगना हो चला है क्योंकि ना सिर्फ उन्हें अपने आप को साबित करना होगा बल्कि उन्हें अपने होने की खुशी का एहसास भी लोगों को दिलाना होगा ।
Thought:-जब तक हमारा समाज कुरीतियों और दहेज प्रथा से मुक्त नहीं होगा तब तक लोग उस समाज में, उस देश में लिंग भेदभाव करना नहीं छोड़ेंगें ।
कविता:- मेरी नजरों में मेरी माँ
माँ मुझे तुमसे प्यार है
माँ तेरी एक मुस्कान में ही मेरा पूरा संसार है
माँ इस संसार में आया हूं मैं बस तेरे ही आस पर
इस मतलबी दुनिया के नहीं बस तुम पर ही विश्वास कर
माँ तुम क्या हो?
मेरे चेहरे पर पड़े गर्मी के ओंश के बूंद को छूकर उड़ा दे
और जो एक ठंडा सा एहसास दे दे
अपने आंचल से निकला हुआ वह हवा हो तुम
मेरे हर दर्द की दवा हो तुम
जो दवा से ठीक ना हो उस मर्ज को ठीक करने वाली दुआ हो तुम
माँ तुम क्या हो?
मां मेरी जागती हुई आंखों से देखा हुआ सपना हो तुम
ये संसार तो झूठा है बस मेरा एक अपना हो तुम
माँ तुम क्या?
मेरे थाली में परोसा हुआ खाना हो तुम
अपना पेट काटकर मुझे देती हो जो वो आखिरी निवाला हो तुम
माँ तुम क्या हो?
जिस वैद्य की विद्या से बीमारियां कोसों दूर रहती है
उस वैद्य की अभिलाषा हो तुम
मेरे चेहरे पर दूर से आती है जो मुस्कुराहट
उसकी एक आशा हो तुम
मैं मूर्ख एक बार फिर पूछता हूँ
माँ तुम क्या हो?
मेरे दिल से निकला हुआ एक प्यारा सा शब्द
माँ हो तुम !
About its creation:-
कवि रहते हुए मैंने बहुत दिनों से एक बात सोच रखी थी कि हर रिश्ते पर मैं अपने कलम से एक कविता गढ़ूंगा । मैंने सबसे पहले अपनी माँ पर एक कविता लिखना चाहा था पर नहीं लिख पाया रिश्तों के इस संबंध में सबसे पहले मैंने अपने भैया पर कविता लिखी फिर अपने पिता पर और अब अपनी माँ पर ।
मैंने अपने पूरे जीवन में घर के सदस्यों में सबसे ज्यादा पागल अपनी माँ को पाया है उनका हर फैसला मूर्खता पूर्ण पर हमारे लिए हितकारी होता था उनका वो हमारे बचपना करने पर खुद बच्चा बन जाना किसी खिलौने को दिलाने के लिए पिता से बच्चों की तरह झगड़ना । जब एक माँ अपने बच्चों से प्यार करती है तब इस संसार को देखने में लगता है कि यह भावुक पल किसी मूर्ख स्त्री का है पर वह पल एक स्त्री एक माँ का अपने बच्चे के प्रति प्यार होता है प्यार कोई मजाकिया आँखों देख कर हंसने वाला पल नहीं होता है और इस बात का आभास इंसान को तब होता है जब उसके मजाकिया आंखों से प्यार में पड़कर आंसू गिरने लगते हैं तब उसे प्यार का मतलब समझ में आता है
हर इंसान को अपने थाली में बचे कुछ निवालों को अपने सामने बैठे भूखे बच्चे को खिलाना चाहिए इसका एक मतलब यह भी हो सकता है कि आपका पेट कुछ खानों से कभी नहीं भरेगा जबकि एक बच्चे का पेट थोड़े से रोटी के टुकड़े से भी भर सकता है और यदि इस काम को एक माँ के द्वारा किया जाता है तो एक बेटे के नजर में उसकी इज्जत दुगनी हो जाती है मेरे पास इस कविता को लिखने के लिए यही वाक्य था कि कैसे कोई मां अपने बेटे को खिलाने के लिए आखिरी निवाले तक जाने से पहले अपने हाथों को रोक लेती है ।
Thought:- हम किसी रिश्ते को कितना चाहते हैं इसकी गहराई को हमारे द्वारा उस रिश्ते को पुकारा गया शब्द तय नहीं कर सकता है नहीं तो हमारा माँ को पागल कहना भी गलत होता ।
ये जो डर सा लगा रहता है खुद को खो देने का, ये जो मैं हूं वो कौन है ? जो मैं हूं ! मैं एक शायर हूं । एक लेखक हूं । एक गायक हूं मगर मैं रह...