हैलो ! आप जो भी हैं आपसे मेरी आग्रह है कि आप ध्यान पूर्वक इसे पढ़े और इसकी खूबी जानकर आप लोगों तक इसे भेजें, अगर यह आपके लिए उपयोगी ना हो सके तो मुझे माफ करें मगर कोई है जो इन बातों को जानने के लिए उत्सुक और परेशान है और उसे इसकी सख्त जरूरत है ।
मेरा नाम शुभम कुमार है और मैं बीए प्रथम वर्ष का छात्र हूँ । जब मैं कक्षा दसवीं का छात्र था तब मैं काफी होनहार और कुशल था । मैंने दसवीं की परीक्षा की तैयारी जोरों शोरों से की थी परीक्षा से दो महीने पहले हमने अपना पूरा पाठ खत्म कर लिया था मगर जब हम लोगों की अर्थात मेरी और मेरे सहपाठीयों का परीक्षण हमारे गुरु द्वारा प्रारंभ हुई तो मैंने देखा कि बहुत प्रश्नों का उत्तर हम जाने के बावजूद भी नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि हमारे गुरु जन संभवत वह सुनना चाहते थे जो किताबों में और हमारी कॉपियों में लिखी होती थी और हम उस क्रमबद्धता से जिस क्रमबद्धता से किताबों और कॉपीयों में लिखा होता था उत्तर देने में असमर्थता महसूस करते थे इस प्रकार की उलझनों से हम काफी निराश थे ।
मगर इसका अर्थ कतई यह नहीं था कि हम कुछ नहीं जानते थे संभवत हम इतना जानते थे कि उस वक्त उस किताब में भी उतना नहीं दिया गया है क्योंकि हमने पूरे एक साल उन किताबों के अलावा कई गुरुओं से शिक्षा ली थी जिन्होंने उन किताबों के साथ-साथ अपने जीवन से जुड़ी वो बातें भी बताई थी जो उन किताबों में भी नहीं दी हुई थी तो फिर यह उलझन क्यों थी ?इसलिए क्योंकि सवालें तो बहुत थीं मगर उस तरह से पूछने वाला कोई नहीं था जिस तरह का जवाब हम दे सकते थे इसलिए मैंने फिर खुद से मन ही मन एक एक सवाल करना शुरू किया और मैं निरुत्तर नहीं था मेरे पास सभी सवालों के लिए कुछ न कुछ अच्छा जवाब था दरअसल हमारा मस्तिष्क ज्ञान को रखने वाला एक भंडार है परंतु इसका किसी चीज को कैसे रखना है रखने का एक अपना तरीका है अगर आप किसी चीज को किताबी भाषा और किताबी क्रमबद्धता से रखने और रटने की कोशिश करेंगे तो आप इसे भूल जाएंगे जैसा कि मैं भूल जा रहा था इसलिए मैं अपने गुरु के प्रश्नों के उत्तर देने में असमर्थता महसूस करता था इसलिए आपका फर्ज बनता है कि आप सभी जो किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं अभी से अपने मस्तिष्क को एकाग्र करें और आप खुद से प्रश्न करना शुरू करें आप पाएंगे कि आपको हर प्रश्न का उत्तर मालूम है । धन्यवाद ।
-शुभम् कुमार
मेरा नाम शुभम कुमार है और मैं बीए प्रथम वर्ष का छात्र हूँ । जब मैं कक्षा दसवीं का छात्र था तब मैं काफी होनहार और कुशल था । मैंने दसवीं की परीक्षा की तैयारी जोरों शोरों से की थी परीक्षा से दो महीने पहले हमने अपना पूरा पाठ खत्म कर लिया था मगर जब हम लोगों की अर्थात मेरी और मेरे सहपाठीयों का परीक्षण हमारे गुरु द्वारा प्रारंभ हुई तो मैंने देखा कि बहुत प्रश्नों का उत्तर हम जाने के बावजूद भी नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि हमारे गुरु जन संभवत वह सुनना चाहते थे जो किताबों में और हमारी कॉपियों में लिखी होती थी और हम उस क्रमबद्धता से जिस क्रमबद्धता से किताबों और कॉपीयों में लिखा होता था उत्तर देने में असमर्थता महसूस करते थे इस प्रकार की उलझनों से हम काफी निराश थे ।
मगर इसका अर्थ कतई यह नहीं था कि हम कुछ नहीं जानते थे संभवत हम इतना जानते थे कि उस वक्त उस किताब में भी उतना नहीं दिया गया है क्योंकि हमने पूरे एक साल उन किताबों के अलावा कई गुरुओं से शिक्षा ली थी जिन्होंने उन किताबों के साथ-साथ अपने जीवन से जुड़ी वो बातें भी बताई थी जो उन किताबों में भी नहीं दी हुई थी तो फिर यह उलझन क्यों थी ?इसलिए क्योंकि सवालें तो बहुत थीं मगर उस तरह से पूछने वाला कोई नहीं था जिस तरह का जवाब हम दे सकते थे इसलिए मैंने फिर खुद से मन ही मन एक एक सवाल करना शुरू किया और मैं निरुत्तर नहीं था मेरे पास सभी सवालों के लिए कुछ न कुछ अच्छा जवाब था दरअसल हमारा मस्तिष्क ज्ञान को रखने वाला एक भंडार है परंतु इसका किसी चीज को कैसे रखना है रखने का एक अपना तरीका है अगर आप किसी चीज को किताबी भाषा और किताबी क्रमबद्धता से रखने और रटने की कोशिश करेंगे तो आप इसे भूल जाएंगे जैसा कि मैं भूल जा रहा था इसलिए मैं अपने गुरु के प्रश्नों के उत्तर देने में असमर्थता महसूस करता था इसलिए आपका फर्ज बनता है कि आप सभी जो किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं अभी से अपने मस्तिष्क को एकाग्र करें और आप खुद से प्रश्न करना शुरू करें आप पाएंगे कि आपको हर प्रश्न का उत्तर मालूम है । धन्यवाद ।
-शुभम् कुमार



