सब आजाद होना चाहते हैं मगर
कटि पतंगों की तरह
जो गिरेंगे तो तय है जायेंगें नालों में ही
या फिर किसी पेड़ में घुसने कि कोशिश करेंगे
ताकि शाखों पर बैठ सकें पंछियों की तरह
मगर उनकी ये कोशिश
पत्तों को केवल जख्मी करेंगें खुद में लगे मंझों से
उफ्फ ! ये पंछियों की तरह
लोगों के उड़ जाने की ख्वाहिश
क्यों नहीं सीखते हैं उड़ना ये पंछियों की तरह
पंछियां उड़ती भी हैं तो साथ अपनों को लेकर
मगर इंसान उड़ना भी चाहता है तो अपनों के बिना
ये ख्वाहिश भी अपनों को देखकर ही उठते हैं
क्योंकि उन्हें पता है क़ैद करता भी है कोई
तो अपना ही यहां
लोग क्यों नहीं देते हैं उड़ने की आजादी
लोग उड़ते क्यों नहीं हैं साथ
अपनों के, यहां ?
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