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Thursday, July 2, 2020

जैसा देश वैसा भेष,आखिर क्यों ?


अपनी सामाजिक अवस्था के अनुरुप एवं हृदय तथा मन को  उन्नत बनाने वाला काम करना ही हमारा कर्तव्य है परंतु विशेष रुप से ध्यान रखना चाहिए कि सभी देश और समाज में एक ही प्रकार के आदर और कर्तव्य प्रचलित नहीं हैं।  इस विषय में हमारी अज्ञानता ही एक जाति की दूसरे दूसरी के प्रति घृणा का मुख्य कारण है। एक अमेरिका निवासी समझता है कि उसके देश की प्रथा ही सर्वोउत्कृष्ट है जो कोई उसकी प्रथा के अनुसार बर्ताव नहीं करता, वह दुष्ट है। इस प्रकार एक हिंदू सोचता है कि उसी के रस्म रिवाज संसार भर में ठीक और सर्वोत्तम है और जो उनका का पालन नहीं करता, वह महा दुष्ट है । हम सहज ही इस भ्रम में पड़ जाते हैं ऐसा होना बहुत ही स्वाभाविक भी है। परंतु यह बहुत ही अहितकर है, संसार में परस्पर के प्रति सहानुभूति के अभाव एवं पारस्परिक घृणा का यह प्रधान कारण है ।


मुझे स्मरण है जब मैं इस देश में आया और जब मैं शिकागो प्रदर्शनी में से जा रहा था, तो किसी आदमी ने पीछे से मेरा साफा खींच लिया मैंने पीछे घूम कर देखा तो अच्छे कपड़े पहने हुए एक सज्जन दिखाई पड़े । मैंने उनसे बातचीत की और जब उन्हें यह मालूम हुआ कि मैं अंग्रेजी भी जानता हूं, तो वे बहुत शर्मिंदा हुए ।

        इसी प्रकार उसी सम्मेलन में एक दूसरे अवसर पर एक मनुष्य ने मुझे धक्का दे दिया, पीछे घूम कर जब मैंने उससे कारण पूछा, तो वह भी बहुत लज्जित हुआ और हकला- हकलाकर मुझसे माफी मांगते हुए कहने लगा- "आप ऐसी पोशाक क्यों पहनते हैं?" इन लोगों को की सहानुभूति बस अपनी ही भाषा और वेशभूषा तक सीमित थी ।

     शक्तिशाली जातियां कमजोर जातियों पर जो अत्याचार करती हैं, उसका अधिकांश अत्याचार इसी दुर्भावना के कारण होता है । मानव मात्र के प्रति मानव का जो बंधु-भाव रहता है, उसको यह सोख लेता है । संभव है, वह मनुष्य जिसने मेरी पोशाक के बारे में पूछा था तथा जो मेरे साथ मेरी पोशाक के कारण ही दुर्व्यवहार करना चाहता था, एक भला आदमी रहा हो एक संतान वत्सल पिता और एक सभ्य नागरिक रहा हो; परंतु उसकी स्वाभाविक सहृदयता का अंत उसी समय हो गया, जब उसने मुझ जैसे एक व्यक्ति को दूसरे वेश में देखा ।



नज़्म:- मेरी अभिलाषा

ये जो डर सा लगा रहता है  खुद को खो देने का, ये जो मैं हूं  वो कौन है ? जो मैं हूं !  मैं एक शायर हूं । एक लेखक हूं । एक गायक हूं मगर  मैं रह...