कविता:- चेहरे दिल का आईना हैं।
मैं दिल से कहता हूं
तुम दिल की बड़ी खुबसूरत हो
चेहरे की सुंदरता मैंने कभी देखी नहीं किसी की
जो एक सी रहती हो ना मेरी, ना तेरी
क्या तुमने कभी गौर किया है?
चेहरे ढलते हैं सूरज जैसे
जब सूरज उगता है, चेहरे उगते हैं
क्योंकि सुबह दिल की उमंगें सबके चेहरे पर दिखते हैं
कहते हैं चेहरे दिल का आईना हैं
जो दिल कहता है वही चेहरे कहते हैं
फिर कैसे कह सकता है कोई
चेहरे अच्छे हैं चेहरा बूरा है ?
क्या तुमने आईनों के अलग रंग, अलग रूप देखें हैं
देखें होंगें मगर क्या ये रूप दिखाने के अलावा भी कुछ करते हैं, नहीं ना ।
तो फिर चेहरों के अलग रंग अलग रूप देखकर
क्यों तुम्हें ये चेहरे अच्छे, बूरे लगते हैं
अगर लगते हैं तो ये हर चेहरे के पिछे छुपे
दिल की अच्छाई है, दिल की बुराई है
चेहरे और नहीं हैं कुछ भी
तुम्हा
रे दिल की परछाई हैं × २
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