Hii guys, Welcome to our blog Poetic Baatein you will read here a lot of poems, stories and many thoughts which I have written here and in future whom I shall write.
Wednesday, June 10, 2020
जिन पैरों में जख्म दियें हैं तुमने !
Wednesday, June 3, 2020
सच्ची खुशी ही जीवन का उद्देश्य है।
कट्टरपन धर्म नहीं, न ही अंधभक्ति श्रद्धा है
Wednesday, May 27, 2020
मूक नायक-2.0
"भारत ने विश्व को युद्ध नहीं बुद्ध दिया है"
27 सितंबर 2019 को मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74 वें सत्र में यह वक्तव्य दिया था और लोगों का ध्यान आतंकवाद फैलाने वाले कुछ शरारती तत्वों की तरफ आकर्षित किया था, तब बुद्ध मानो सदियों से चले आ रहे भारत के एक बड़े विरासत के , एक धरोहर के तौर पर अचानक उभर आए देश प्रेमी लोगों ने तो गर्व से अपना सीना चौड़ा किया ही होगा लेकिन न चाहते हुए भी उन्होंने भी सांस खींचकर दंभ भर दिया होगा जो हर वक्त अपने अधिकारों में डूबे रहते हैं। जो किसी को अपने आगे देखना नहीं चाहते हैं जिनकी अवधारणा में बुद्ध धर्म कोई भी धर्म नहीं है, जो अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए बुद्ध को अपने 33 करोड़ देवी देवताओं में स्थान देने का झूठा दावा पेश करता रहता है ।
उन्होंने ही 27 मई और 22 मई को उत्तर प्रदेश,बसंतपुर के सांकिसा में बौद्ध विहारों को क्षति पहुंचाया उसके दिवारों को तोड़ दिया और वहाँ रह रहे बौद्ध भन्तो को बंदूक की नाल पर प्रताड़ित किया और जान से मारने की धमकी दी इसलिए क्योंकि आज राम मंदिर बनाने के लिए जो चोरी छुपे खुदाई हो रही है। उसके खिलाफ कुछ भन्तो ने आवाज उठाई थी वहाँ मिल रहे अवशेष और बौद्ध स्तूप अयोध्या को बौद्धों की प्राचीन नगरी साकेत बता रही है जिसे राजा बृहद्रथ का और करोड़ों बौद्धों का सर काट कर निच ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने अयोध्या बना दिया था।
राम एक काल्पनिक कहानी का पात्र है और कुछ नहीं यह केवल मैं नहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी मानते थे।
कुछ ब्राह्मण अपना हित साधने के लिए एक काल्पनिक पात्र को जो कभी था ही नहीं उसको भी उसका होना बता रहे हैं।
कुछ लोगों का मानना है और इतिहास के सबूत बताते हैं कि राम कोई और नहीं साकेत का राजा जो अब अयोध्या के नाम से जाना जाता है पुष्यमित्र शुंग ही है। और ब्राहमणों की मंशा राम के नाम पर अपने प्रिय राजा जो करोड़ों बौद्धों का खूनी है पुष्यमित्र शुंग को लोगों से पूजवाना चाहता है, वह चाहता है कि वह राम राज्य लाकर लोगों से फिर छूआ छूत और जात पात के नाम पर उच्च हो सकता है वह जानता है कि वह एक बौद्ध ही हैं जो उसके ढोंग का पर्दा फास कर सकता है, वह बौद्ध ही हैं जो इस समाज में समता , मैत्री और करूणा का संचार कर सकते हैं मगर अपनी रोटी सेंकने के लिए ब्राह्मण लोगों के बीच भेद भाव बनाये रखना चाहते हैं। वे ये नहीं जानते कि वो जिन बौद्धों पर अल्पज्संख्यक समझकर अत्याचार करने की कोशिश कर रहे हैं आज इसमें sc / st / obc जो भारत की 85% आवादी है, वो भी बौद्धों के संरक्षण में हैं और ज्यादातर खुद को बौद्ध के तौर पर देखते हैं और उन बौद्धों के साथ खड़ा है जिन पर सवर्ण और मनुवादी जाहिल समाज अत्याचार करने और उसे उखाड़ फेंकने की कोशिश में है ।
Friday, May 22, 2020
बहुत कुछ करना चाहता हूँ।
मैं शायद थक जाता हूँ
जुनूँ मेरी नहीं थकती
काम से नहीं, मैं थकता हूँ
समय से लड़ते-लड़ते
मैं जब विस्तर से उठता हूँ
तो हर वो काम करता हूँ
जिसमें खुशी हो मेरी माँ की
पिता के शान का ख्याल रखता हूँ
एक छोटी सी बहन है मेरी
एक बड़ा भाई है मेरा
जो मुझसे भी नादान है
उनकी खुशियों का ख्याल रखता हूँ
सोचता हूँ अगर मैं नहीं तो करेगा कौन ?
मगर मैं लड़ता हूँ
उनकी खुशियों की खातिर
बहुत कुछ करना चाहता हूँ
बहुत कुछ छूट जाता है
मैं शायद थक जाता हूँ
जुनूँ मेरी नहीं थकती ।।
Sunday, May 17, 2020
सफलता का श्रेय
कविता:- सफलता का श्रेय
सफलता के दो कदम पीछे ही मेरे अपनों ने साथ छोड़ दिया है
जो बढ़ाया था हाथ उसने मेरी सफलताओं को देखकर मोड़ लिया है
जिन पर विश्वास था मुझे सबसे ज्यादा
उन्होंने मुझे मेरे हालात पर छोड़ दिया है
मैं सफल हो न जाऊं कहीं
उन्होंने मुझसे मुंह मोड़ लिया है
उनको लगता है उनके साथ छोड़ने से मैं टूट कर बिखर जाऊंगा
मूर्ख हैं वो लोग जो सोचते हैं कि जहां वो हैं मैं भी वहीं ठहर जाऊंगा इंसानियत का कोई मतलब ही नहीं है इस दुनियाँ में
वो मुकर जाते हैं किसी की सफलता को देखकर
जो मांगते हैं उनके सफलता की दुआ अपनी झोलियां में
मैंने सोचा था सफलता की सीढ़ी पर चढ़कर
अपनी सफलता का श्रेय किसको दूंगा ?
जब अपनों ने मेरा साथ दिया है तो
निःसंदेह सफलताओं का श्रेय में उनको दूंगा
पर जब अपनों ने मेरा साथ छोड़ा
तो मेरा दिल टूटा तो सही
पर मैंने अपने दिल के टुकड़ों को बिखरने नहीं दिया
इसलिए मैंने अपनी सफलता का श्रेय मुझे दिया है
क्योंकि हर परिस्थिति में मैंने अपने सपनों का साथ दिया है
मैंने मेहनत डटकर किया है ।
About its creation:-
अपने हमेशा अपने ही होते हैं पर जो चापलूसी से अपनापन सिद्ध करना चाहते हैं उनका कोई भरोसा नहीं कि वह कब अपना रंग दिखा दे उनका अपनापन वहीं पर क्यों थम जाता है मदद ? मदद हर कोई किसी की करना चाहता है पर संभवतः मदद तो वो होनी चाहिए कि हमारी मदद से कोई शिखर पर पहुंच जाए और हमारे मन में अभिमान का एक अंश न आए , यह ना आए कि हमने उसकी मदद की है तो उसको हमारा एहसान मानना चाहिए और मूर्खता पूर्ण यह कहते हुए कि क्या वह हमसे बड़ा हो जाएगा तो हमारी इज्जत करेगा ? जहां पर अपनों का सफल होना उनसे देखा नहीं जाता है शायद वह हमसे इतना प्यार करते हैं कि उनसे हमारा दूर जाना अच्छा नहीं लगता है पर क्या प्यार का यही मतलब है कि आप अपने साथी के रास्तों में कांटा बिछाकर उसे रोकें , उनके रास्तों का रोड़ा बनकर उसे रोके यह तो मूर्खता है ना यदि आप सच में उनसे प्यार करते हैं तो उनका अनुसरण कीजिए उनके जैसा कड़ी मेहनत कीजिए ताकि आप उनके साथ चल सके किसी के सफलता के समय हमें उसका साथ नहीं छोड़ना चाहिए यह हमारे प्यार की परीक्षा की घड़ी होती है किसी ने कहा है यदि वह आपसे सच में प्यार करता है तो सफलता की कितनी ऊंचाइयों को छू ले आपको जरूर याद रखेगा पर यदि आप किसी के सफलता के समय मुंह मोड़ लेंगे तो आपके अंदर का इंसान आपको कभी माफ नहीं कर पाएगा आप चाहे जितनी भी किसी की मदद कर ले आपका किया वह हर मदद हमेशा आपको क्षुद्र ही लगेगा जब आप किसी के सफलता के रास्ते का रोड़ा बनेंगे इस कविता की उत्पत्ति का कारण मेरे आसपास के लोग हैं जो दिलासा तो देते हैं कि वह मेरी मदद करेंगे पर वह समय आते ही मुकर जाते हैं । हर सफलता की एक कहानी होती है चाहे वो जैसी हो आप भी लिखिए उस कहानी को ।
Thought:-
यदि आपको किसी की मदद करनी है तो आपको उन्हें ढूंढने की जरूरत नहीं है अपनी जिंदगी में सिर्फ उनकी मदद कर दीजिए जो खुद चलकर आपके दर पर आते हैं ।
वक्त कम है ।
कविता:- वक्त कम है
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
उठ खङा हो
रोक ना तु बढते हुए कदमों को यारों
बढ चला है थमने ना देना-देना ना थमने साँसों को प्यारों
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
देख तु तेरे पास ही कोई भुखा शेर खङा है
भूख तु भी बढा ले यारों रोटी का यहाँ बैर बड़ा है
मांगना मत छीन ले
हो गर तुम्हारे पास दे गमगीन को
तेरे पास कलम उन्हे बना समसीर ले
जो आज तु लङ जायेगा
तुम्हारी पीढियाँ तुम्हारा गुण गायेगा
जो आज तु सो जायेगा
तुम्हारी पीढियाँ रोटी के इक निबाले को रो जायेगा
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
वक्त कम है फिर भी तु लङ सकता है
मैदान में चाहे हो जो कोई
तु खुद को बस जीत ले
हर जंग तु भी जीत सकता है
देर ना कर सोचने में सोचने में तु देर ना कर
कर तु जो करना है तुमको बार बार मुड़कर देखा ना कर
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
About its creation:-
कविता लिखने के लिए किसी विशेष ज्ञान की आवश्यकता नहीं कविता हमारे व्यवहार से उत्पन्न होता है हमारे स्वभाव से आता है। भारत के महान कवि रविंद्रनाथ टैगोर जी का मानना था कि हमारी शिक्षा खुले आसमान के नीचे होनी चाहिए प्रकृति के बीचो-बीच होनी चाहिए न कि दीवारों से घिरे छोटे से कमरे में उनके कहने का पर्याय यही था कि हमें ज्ञान न केवल पुस्तक से सीखना चाहिए वरन प्रकृति से भी ।
मैंने जब से कविता लिखना प्रारंभ किया है मैंने स्कूली शिक्षा, कमरे में बंद शिक्षा और किताबी ज्ञान से बचने की कोशिश की है मगर ना चाहते हुए भी मुझे दुर्भाग्यपूर्ण उन्हें पढ़ना ही पड़ता है घर के लोग मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हैं उनका कहना है कि तुम्हें पहले सरकारी नौकरी करनी पड़ेगी इसके बाद ही तुम अपने मन का कोई काम कर सकते हो तुम ना तो अभी संगीत सीख सकते हो न ही कविता पाठ कर सकते हो और न ही लिख सकते हो!
मुझे भेज दिया एसएससी और रेलवे की तैयारी करने के लिए मगर मेरा कवित्व कहां पीछा छोड़ने वाला था कोचिंग गया तो अथाह भीड़ को देखकर सोचा और खुद को समझाने लगा “वक्त कम है” और भागने का कोई औचित्य नहीं है तो पढना प्रारम्भ कर दिया पढते हुए मैंने अपने सहपाठीयों के उत्साह वर्धन के लिए इस कविता की रचना की ताकि उनके सफलता में मेरी कविता सहयोगी बन सके ।
मन एक मंदिर
कविता:- मन एक मंदिर
मन वो मंदिर तेरी काया का
जिसमें पलता है दानों पर देव तेरा
मन गाए तो समझो दानव गाए
तुम गाओ तो गाओ देव सदा
मन की ना गाओ गीत कभी
मन वो हो जो गाए गीत तेरा
मन छलिया है मन पापी है
मानो तो देवों सा मन सर्वव्यापी है
तुम मना लो मन को तो तुम्हें देव मिले
क्योंकि दानव और देव दोनों ही तेरे अंतर व्यापी है
ना मंदिर में आग लगा लेना
ना राक्षस को गले लगा लेना
जो देव तुम्हारे अंदर है तुम
तुम उसको न कभी भूला देना
About its creation:-
आप अपने इधर उधर देखिए कि कैसे प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और शोषण हो रहा है यहां मौजूद हर प्राणी परेशान है उसका कारण खोजने की कोशिश करेंगे तो चारों तरफ उंगली घूमने के बाद वह आपकी तरफ इशारा करेगा, इंसान ही इन कारणों का जड़ है धरती में अपार क्षमता है कि वह अपने यहां बसने वाले हर प्राणी के बिना कुछ किए भोजन और पानी का प्रबंध कर सकता है मगर इंसान को इससे भी ज्यादा कुछ चाहिए अपने तृष्णा की भूख और प्यास बुझाने के लिए भोजन और पानी है काफी नहीं है । अगर इंसान को गुस्सा आए तो वह किसी को मारकर अपने गुस्से को शांत करना चाहता है, अगर उसे भूख लगे तो वह किसी का खाना छीन लेना चाहता है अगर उसे किसी से ईर्ष्या हो जाए तो वह पूरे संसार पर विजय पा लेना चाहता है इसी क्रोध, इसी भूख और इसी ईर्ष्या की इच्छा पूर्ति के लिए एक इंसान दूसरे इंसान से प्रतिस्पर्धा में के होङ में लगा है । आखिर ये क्रोध ये असीमित भूख और ईर्ष्या आता कहां से है इंसान के मन से ! अगर इंसान चाहे तो इंसान के मन में इससे इतर विचार भी आ सकते हैं जो हर किसी के लिए हितकर और कल्याणकारी हो सकता है इंसान क्रोध की जगह करुणा का भाव ला सकता है, असीमित भूख की जगह संयम ला सकता है और ईर्ष्या की जगह दूसरों से प्रेरित होने का भाव मन में ला सकता है मगर इंसान मन की बुरी प्रवृत्तियों में फंस कर अपना ही सर्वनाश करने पर तुल जाता है अगर वह मन को समझाएं और मनाए तो वह एक अच्छा इंसान बन सकता है मन की इन्ही प्रवृत्तियों को देखकर मैंने यह कविता लिखा है।
अचेतन मन में हूँ ।
कविता:- अचेतन मन में हूँ
अचेतन मन में हूँ !
मुझे कोई चेतन मन में लाओ यारों,
जिसे सुनने के लिए मन तरस गया
कोई कहानी उसकी सुनाओ यारों
वो रेत सी फिसली थी कि
मैं भी ढेर हो गया हूँ वहीं,
वो हवाओं के संग चली गई
मैं गैर हो गया हूँ कहीं
मैं मिट्टी हूँ !
कोई मूर्ति बनाओ यारों,
वो भी मेरे दर पर पूजन करे
मेरी कोई कीर्ति ऐसी बनाओ यारों
वो छू ले अगर जो मुझमें जान आ जाए
मूर्ति क्या पत्थर में भी प्राण आ जाए
मुझे कोई मेरी जान से मिलाओ यारों
अचेतन मन में हूँ , मुझे कोई ...... ।
About its creation:-
ये कैसा शोर-शराबा है मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है लोगों को कहो ना मुझे मेरे टूटे दिल के साथ रहने दे मैं उस स्थिति में नहीं हूँ कि अभी मैं किसी को कुछ बता सकता हूँ । अगर किसी को कुछ करना ही है तो उन्हें कहो मुझे मेरा महबूब लाकर दे दे अगर नहीं लाकर दे सकता है तो मुझे मेरे महबूब के यादों के संग जीने दो । अगर इसके अलावा मुझसे कुछ पूछोगे तो मैं नहीं बता सकूंगा सिवाय महबूब के बातों के अगर किसी को मुझसे मेरे महबूब के बारे में सुनना है तो मैं बस उसी को गा रहा हूँ, आकर कोई सुन ले यह ऐसा गीत है कि मानो कभी खत्म नहीं होगा क्योंकि जो गा रहा हूँ वो लिख भी रहा हूँ अपनी तनहाई में उसकी बातें करना मुझे अच्छा लगता है इससे मैं अकेला महसूस नहीं करता हूँ । सभी को कह दो मुझे किसी की जरूरत नहीं है अगर इसके लिए मुझे कोई स्वार्थी कहता है तो उसे कह लेने दो, अज्ञानी कहता है तो कह लेने दो । मुझे किसी को कुछ साबित नहीं करना है अब साबित भी करेगा कोई तो वह मेरे शब्द , मेरे भाव होंगे भले उन्हें समझ में मेरे यहां से जाने के बाद आएगा उन्हें यह भी कह दो अभी मुझे समझने के लिए अपना सर ना फोड़े उनके लिए मैं कुछ यह भी नहीं पर समझ से उनके परे हूँ मैं !तुम मूर्ख हो क्या? , तुम पागल हो क्या?, तुम सनकी हो क्या? , तुम्हारा ध्यान कहाँ है? , मेरे सवालों का जवाब दो तुम्हें पता नहीं मैं तुमसे क्या पूछ रहा हूँ ? और तुम्हें कुछ समझ में नहीं आता? अगर इतना आपको कोई कुछ कहे तो आप क्या कहेंगे?
-हाँ मुझे कुछ समझ में नहीं आता और मुझे समझाने की कोशिश भी मत करें क्योंकि अंततः मैं अपने दिल की सुनूँगा और यह मेरे दिल की हिदायत है कि अगर मैंने अपने दिल के अलावा किसी और से बात करने की कोशिश की तो मेरा दिल मुझसे बात नहीं करेगा यही हालत इस प्रकार की कविता लिखने वाले कवि की होती है जब वह इस प्रकार की कविता लिखने लगता है तो वह हमेशा हर किसी के सवाल पर किंकर्तव्यविमूढ़ रहता है पर उसे एक आवाज हमेशा सुनाई देती है वह है उसके अपने दिल की ।
Thought:-
कभी-कभी आपका सफर आपको लोगों के बीच अज्ञानी व मूर्ख बना सकता है पर आप चिंता ना करें आप लोगों से बेहतर होंगे ।
माँ सावित्री तेरा अभिनंदन है ।
कविता:- माँ सावित्री तेरा अभिनंदन है
एक जंग पर चलता हूँ माँ मेरा साथ देना
डगमगाए ना मेरे पैर मुझे विश्वास देना
इस आस पर विश्वास हो ना छल कपट मेरे साथ हो
हम चले भी उनके साथ में जो दोस्त हमारे साथ हो
हो अगर कभी बुराइयां मेरे सामने
माँ डगमगाए पैरो को आना थामने
माँ तेरा हाथ छूटे ना कभी मेरे हाथ से
तेरे चरणों की धूल लगाऊं मैं अपने हाथ से
विद्या की देवी माँ सावित्री तेरा वंदन है
तू आना हर साल माँ मैया तेरा अभिनंदन है ।।
About its creation:-
यह किसी कहानी की उत्पत्ति नहीं है और ना ही ये कोई कहानी है इसे मैंने अपनी माँ की भक्ति में लिखा है जो अविश्वसनीय है । मैं सच कहता हूँ हम में से ऐसे कितने ही व्यक्ति हैं जो श्रद्धा से कभी माता की पूजा शायद ही करते होंगे एक भक्ति काल का समय था जब हर वक्त लोगों के जुवान पर भगवान का नाम होता था लोग सुबह शाम कुछ समय के लिए भक्ति में लीन हो जाते थे । उस युग के लोगों का पूरा माहौल भक्तिमय था जिससे उस युग के कवि अपनी कविता में भक्ति के छाप छोड़ देते थे आज का समय वह नहीं रह गया मेरा मानना है कि किसी काल्पनिक शक्तियों की सहायता से लिखने वाले कवियों से अच्छा वो कवि होते हैं जो उस चीज को खुद महसूस करते हैं और जो उस माहौल में नहीं रहते हैं उस माहौल की कल्पना करते हुए लिखने की कोशिश करते हैं उनके लिए कविता के भाव का चुनाव दुष्कर होता है ।
Thought:-
यदि आप किसी चीज को लिखना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको उसमें जीना सीखना होगा ।
स्वतंत्रता के इस युग में कविता
कविता:- स्वतंत्रता के इस युग में कविता
स्वतंत्रता के इस युग में लिखी हर कविता एक कहानी कहती है
सच में ! एक कहानी कहती है ? या फिर वह कहानी ही रहती है
लोगों का कवियों से विश्वास उठ रहा है
लगता है कवियों का अस्तित्व लूट रहा है
एक सच्चा कवि यह कैसे मान ले ?
जो आगे कोई लिख रहा है वह कविता करता है
जबकि ना उनकी कविता कोई कहानी कहती है
और ना वह कविता कोई कहानी ही रहती है
किसी की चापलूसी को वह सच्ची प्रशंसा मान बैठे
तो इसमें उन सच्चे कवियों का क्या दोष है,
उनके साथ ही उन कवियों की कविताएं भी
उस अलमारी में दब जाती है ना जिनके शब्दों में जोश है
लोग छूना नहीं चाहते हैं
स्वतंत्रता के इस युग में लिखें कविताओं के किताबों को,
कुछ ऐब तो हमारे देश के पाठकों में भी हैं
जो नहीं देना चाहते हैं गड़बड़ाने नोटों के हिसाबों को
About its creation:-
जब ‘अज्ञेय’ ने अपने स्वतंत्रातमक और प्रयोगवादी कविता का चलन प्रारंभ किया था तब कुछेक ने उनकी आलोचना प्रारंभ की पर उन्होंने आलोचनाओं की परवाह नहीं की उन्होंने स्वतंत्र काव्य को लिखना जारी रखा जिसने जनमानस के भीतर स्वतंत्र काव्य लिखने के रुचि को जागृत किया इससे पहले लोगों को एक कवि बनने के लिए काफी कसरत करना पड़ता था वो कसरत अब लोगों को नहीं करना पङ रहा है स्वतंत्रता के इस युग में कोई भी कवि बन सकता है पर आपको पूछेगा कौन यह आपको खुद से पूछना है ऐसा नहीं है कि स्वतंत्रता के इस युग के काव्य पढ़ने अथवा सुनने लायक नहीं है कहीं-कहीं आप इसे पढ़ेंगे तो देखेंगे कि पहले के किसी युग की लिखी कविता से भी ज्यादा प्रभावी है पर आज की युवा पीढ़ी इसे नहीं समझना नहीं चाहती है कुछ पंक्ति केदारनाथ सिंह की ही ले लीजिए-
“अगर धीरे चलो
वह तुम्हें छू लेगी
दौड़ो तो छूट जायेगी नदी”
इस पर आज का युवा कहेगा कि इसको क्या पढना इसमें तो कोई रस
ही नहीं पर इसके अंदर छुपे भावों को वो नहीं समझेंगे कि आखिर नदी के माध्यम से केदारनाथ जी उन्हें क्या समझाने की कोशिश कर रहे हैं ।
इस युग की कविता दिमाग से ज्यादा दिल से लिखी जाती है इसलिए कभी-कभी आपको लगेगा कि यह तो कुछ भी नहीं है मगर उस कुछ भी नहीं मैं बहुत कुछ छुपा होगा जो कविताएं तुकांत शब्दों से सजाकर लिखी होती है वह सुनने में ज्यादा अच्छा लगती है पर जिनमें कोई तुकान्त शब्दों का प्रभाव नहीं होता जो केवल अपनी बात रखने के लिए लिखी जाती है वह सुनने में उतना अच्छा नहीं लगता मगर वह पढ़ने में अच्छा लगता है मैंने एक कवि सम्मेलन में एक कवयित्री को अपनी बात रखते देखा था जिनकी स्थिति ऐसी कविताओं की रचना करके भी निराशाजनक थी आप भी अपनी बात रख सकते हैं पर किसी कागज पर , सुनाकर लोगों के सामने अपना मजाक मत बनाइए क्योंकि जब हम काव्य पाठ करते हैं तो उसमें स्पष्टता और प्रवाह का होना आवश्यक है जो कविताओं में तुकांत शब्दों के प्रयोग से ही संभव हो सकता है कुछ चीजें पढने के लिए होतीं हैं और कुछ सुनने के लिए ।
Thought:-
तुकांत शब्द से सजी कविता सुनने में अच्छे लगते हैं और केवल भावनाओं को रखने वाली कविताएं पढ़ने में अच्छी लगती हैं ।
नज़्म:- मेरी अभिलाषा
ये जो डर सा लगा रहता है खुद को खो देने का, ये जो मैं हूं वो कौन है ? जो मैं हूं ! मैं एक शायर हूं । एक लेखक हूं । एक गायक हूं मगर मैं रह...
-
आपकी विधियाँ ख मौन हूँ मैं तुम्हारी बातों को सुनकर कुछ कर रहा हूँ, जो कहा है ना तुमने उन विचारों से लड़ रहा हूँ ...
-
माँ तुम अकेले इतना सब कैसे कर लेती हो हमारे लिए खाना बनाना पिता जी के कपड़े धुलना बिना किसी के मदद के अकेले पूरे घर का ख्याल कैसे रख लेत...






