First president of India
सभी धर्म वालों के साथ समभाव रखना ही हमारे देश में जो आग लगी हुई है उसका शमन कर सकता है पर हम तो धर्म के नाम पर स्वार्थ की पूजा करते हैं दूसरों को दबाने का प्रयत्न करते हैं और न मालूम कितने प्रकार के और पाप किया करते हैं यही कारण है कि आज हिंदुओं और मुसलमानों के बीच में दंगे फसाद मारकाट लूटपाट हो रहे हैं । कौन धर्म है, जो इनकी निंदा नहीं करता और किस धर्म में ऐसे लोग नहीं हैं, जो इसकी निंदा नहीं करते ? चरित्र गठन में धार्मिक भावना बहुत महत्त्व रखती है धार्मिक भावना से अर्थ कट्टरपन नहीं और श्रद्धा अंधभक्ति नहीं है; पर यह ऐसी चीज है, जो परोक्ष रिति से मनुष्य के जीवन पर प्रत्येक क्षण बहुत असर डालती रहती है और मनुष्य माने या ना माने, उसका नैतिक चरित्र उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता । चरित्र के संबंध में एक ऐसी धारणा हो गई है कि इसके लिए हमें कुछ करना नहीं पड़ता चरित्र की ओर ध्यान न देने का फल होता है कि कुछ लोग तो अच्छे वातावरण और सच्चे संपर्क से जो उनको अनायास मिल जाता है बहुत अच्छे हो जाते हैं और कुछ लोग इसके विपरीत होने से बिगड़ जाते हैं चरित्र सुधारने के लिए हमारे शिक्षालयों में कोई प्रबंध किया जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं कि इसका परिणाम बहुत अच्छा होगा । केवल शिक्षकों और जातीय नेताओं के भाषणों से अच्छे युवक एवं युवतियां तैयार नहीं हो सकेंगे उनका अपना 'चरित्र और व्यवहार' हर तरह से ऐसा होना चाहिए कि उनके काम एवं कथन में कोई भी अंतर ना हो। देश का सुंदर भविष्य तभी बनेगा जब यह आदर्श सामने रहेगा। पंडित वही है, जिसके संपूर्ण कार्य कामना एवं संकल्प से रहित हैं, जिसका धर्म कामना लिप्त नहीं है, जिसने ज्ञानरूपी अग्नि द्वारा अपने कर्मों को कामना और संकल्प रहित बना दिया है ।
किसी नैतिक शिक्षण से मेरा अर्थ किसी धर्म विशेष का शिक्षण है किंतु यह आवश्यक है कि विधार्थीयों को सभी धर्मों के मूल सिद्धांतों की जानकारी हो और सर्व धर्म समभाव का आदर्श उनके सामने उपस्थित किया जाए । विभिन्न देशों के महापुरुषों का जीवन और उनके आध्यात्मिक विचारों का अध्ययन आवश्यक अंग माना जाना चाहिए । बिना नैतिक शिक्षण के कोई भी शिक्षा पद्धति पूर्ण नहीं कही जा सकती ।

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