Sunday, May 17, 2020

वक्त कम है ।

कविता:- वक्त कम है 


वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
उठ खङा हो
रोक ना तु बढते हुए कदमों को यारों
बढ चला है थमने ना देना-देना ना थमने साँसों को प्यारों
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
देख तु तेरे पास ही कोई भुखा शेर खङा है
भूख तु भी बढा ले यारों रोटी का यहाँ बैर बड़ा है
मांगना मत छीन ले
हो गर तुम्हारे पास दे गमगीन को
तेरे पास कलम उन्हे बना समसीर ले
जो आज तु लङ जायेगा
तुम्हारी पीढियाँ तुम्हारा गुण गायेगा
जो आज तु सो जायेगा
तुम्हारी पीढियाँ रोटी के इक निबाले को रो जायेगा
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
वक्त कम है फिर भी तु लङ सकता है
मैदान में चाहे हो जो कोई
तु खुद को बस जीत ले
हर जंग तु भी जीत सकता है
देर ना कर सोचने में सोचने में तु देर ना कर
कर तु जो करना है तुमको बार बार मुड़कर देखा ना कर
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है

About its creation:-
कविता लिखने के लिए किसी विशेष ज्ञान की आवश्यकता नहीं कविता हमारे व्यवहार से उत्पन्न होता है हमारे स्वभाव से आता है। भारत के महान कवि रविंद्रनाथ टैगोर जी का मानना था कि हमारी शिक्षा खुले आसमान के नीचे होनी चाहिए प्रकृति के बीचो-बीच होनी चाहिए न कि दीवारों से घिरे छोटे से कमरे में उनके कहने का पर्याय यही था कि हमें ज्ञान न केवल पुस्तक से सीखना चाहिए वरन प्रकृति से भी । 

मैंने जब से कविता लिखना प्रारंभ किया है मैंने स्कूली शिक्षा, कमरे में बंद शिक्षा और किताबी ज्ञान से बचने की कोशिश की है मगर ना चाहते हुए भी मुझे दुर्भाग्यपूर्ण उन्हें पढ़ना ही पड़ता है घर के लोग मेरे पीछे  हाथ धोकर पड़े हैं उनका कहना है कि तुम्हें पहले सरकारी नौकरी करनी पड़ेगी इसके बाद ही तुम अपने मन का कोई काम कर सकते हो तुम ना तो अभी संगीत सीख सकते हो न ही कविता पाठ कर सकते हो और न ही लिख सकते हो!

 मुझे भेज दिया एसएससी और रेलवे की तैयारी करने के लिए मगर मेरा कवित्व कहां पीछा छोड़ने वाला था कोचिंग गया तो अथाह भीड़ को देखकर सोचा और खुद को समझाने लगा “वक्त कम है” और भागने का कोई औचित्य नहीं है तो पढना प्रारम्भ कर दिया पढते हुए मैंने अपने सहपाठीयों के उत्साह वर्धन के लिए इस कविता की रचना की ताकि उनके सफलता में मेरी कविता सहयोगी बन सके ।


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