Wednesday, June 3, 2020

सच्ची खुशी ही जीवन का उद्देश्य है।



हमारा सच्चा घर अतीत में नहीं है । हमारा सच्चा घर भविष्य में भी नहीं है । हमारा सच्चा घर यहीं है और वर्तमान में है । जीवन सिर्फ यहीं और वर्तमान में उपलब्ध है और यही हमारा सच्चा घर है हमारी चेतना ही वह ऊर्जा है, जो उस प्रसन्नता को पहचान सकती है जो पहले से ही हमारे जीवन में मौजूद है इस प्रसन्नता का अनुभव करने के लिए आपको दस साल प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं है । यह आपके रोजमर्रा के प्रत्येक क्षण में उपस्थित है। हममें से बहुत लोग ऐसे हैं, जिन्हें खुद के जीवित होने का एहसास नहीं है जबकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सांस लेते ही खुद के जीवित होने का अनुभव करते हैं और जीवित होने के आश्चर्य से भर जाते हैं । इसी कारण चेतना को प्रसन्नता और आनंद का स्रोत कहा जाता है । 

ज्यादातर लोग भुलक्कड़ होते हैं । इस तरह के लोग समय के अभाव से जूझते हैं । उनका दिमाग उनके दुख, उनके उनके क्रोध और उनके पश्चाताप में ही व्यस्त रहता है । वे जीवन का आनंद, जो हमारे आसपास प्रत्येक कण और हर क्षण में मौजूद है, उठा नहीं सकते । उन्हें जीवन के इस आनंद का कोई ज्ञान ही नहीं है ।
 बल्कि उन्हें तो इसका एहसास ही नहीं है कि वे जीवित है और इसी पृथ्वी में है । इसका क्या कारण है ? दरअसल हम या तो अपने अतीत में व्यस्त रहते हैं या फिर अपने भविष्य में । हमें अपने वर्तमान की, मौजूदा क्षण की कोई चिंता ही नहीं है ।जिसमें गहरे डूबकर हम अपने जीवन का आनंद ले सकें । इसी को भुलक्कङपना कहते हैं । हम भूल गए हैं कि हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है । भुलक्कङपन के विपरीत है हमारे मस्तिष्क का सक्रिय और सचेतन होना । ऐसी स्थिति में हम वर्तमान में जीते हैं, उसके प्रत्येक पल का आनंद उठाते हैं, हमारा शरीर और मस्तिष्क वर्तमान में रहता है यही तो चेतना है । हम बेहद कुशलता से सांस लेते और छोड़ते हैं, अपने मस्तिष्क को शरीर के साथ ले आते हैं, नतीजतन हम यहीं वर्तमान में, इसी क्षण में होते हैं । जब हमारा मस्तिष्क हमारे शरीर के साथ होता है, तब हमारा वर्तमान में होना अवश्यंभावी है । सिर्फ वैसी परिस्थिति में ही हम प्रसन्नता की उन शर्तों को पहचान सकते हैं, जो हमेशा हमारे आस-पास ही रहते हैं । प्रसन्नता या खुशी दरअसल प्राकृतिक रूप से आती है। यह स्वभाविक है । चेतना का अभ्यास प्रयास से या श्रम करने से नहीं आता, बल्कि स्वाभाविक रूप से आता है और उसका अनुभव आह्लादित  करने वाला होता है । क्या सांस लेने में आपको श्रम करना  पड़ता है ? चेतना का अभ्यास भी वैसा ही है । मान लीजिए कि कुछ दोस्तों के साथ आप कहीं सूर्यास्त का मनोहर दृश्य देखने के लिए गए हैं ।

 क्या वह दृश्य देखने में आपको श्रम करना पड़ता है ? नहीं, आपको को कोई श्रम नहीं करना पड़ता । आप सिर्फ इसका आनंद उठाते हैं । सांस लेने के साथ भी यही सच है । आपको सिर्फ इतना भर करना होगा कि सांस आराम से ली और छोड़ी जा सके । आपको इस से अवगत होना पड़ेगा और इसका आनंद उठाना पड़ेगा । लेकिन इसमें अतिरिक्त समय न लगाएं । ध्यान रखें कि आनंद ही जीवन का उद्देश्य है,और जीवन का हर कार्य आनंद उठाते हुए बहुत ही सहजता के साथ किया जा सकता है । हमारे चलने और टहलने का आनंद प्राप्त करना होना चाहिए । हमारे जीवन का हर कदम आनंदपूर्ण हो सकता है । आपको जीवन के आश्चर्य से परिचित कराता हुआ चलता है । हर कदम में शांति है । प्रत्येक कदम में आनंद है । यह संभव है ।

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