Sunday, May 17, 2020

स्वतंत्रता के इस युग में कविता

कविता:- स्वतंत्रता के इस युग में कविता 


स्वतंत्रता के इस युग में लिखी हर कविता एक कहानी कहती है 

सच में ! एक कहानी कहती है ? या फिर वह कहानी ही रहती है 

लोगों का कवियों से विश्वास उठ रहा है 

लगता है कवियों का अस्तित्व लूट रहा है 


एक सच्चा कवि यह कैसे मान ले ? 

जो आगे कोई लिख रहा है वह कविता करता है 

जबकि ना उनकी कविता कोई कहानी कहती है 

और ना वह कविता कोई कहानी ही रहती है


किसी की चापलूसी को वह सच्ची प्रशंसा मान बैठे 

तो इसमें उन सच्चे कवियों का क्या दोष है,

उनके साथ ही उन कवियों की कविताएं भी 

उस अलमारी में दब जाती है ना जिनके शब्दों में जोश है 


लोग छूना नहीं चाहते हैं 

स्वतंत्रता के इस युग में लिखें कविताओं के किताबों को, 

कुछ ऐब तो हमारे देश के पाठकों में भी हैं 

जो नहीं देना चाहते हैं गड़बड़ाने नोटों के हिसाबों को



About its creation:- 

जब ‘अज्ञेय’ ने अपने स्वतंत्रातमक और प्रयोगवादी कविता का चलन प्रारंभ किया था तब कुछेक ने उनकी आलोचना प्रारंभ की पर उन्होंने आलोचनाओं की परवाह नहीं की उन्होंने स्वतंत्र काव्य को लिखना जारी रखा जिसने जनमानस के भीतर स्वतंत्र काव्य लिखने के रुचि को जागृत किया इससे पहले लोगों को एक कवि बनने के लिए काफी कसरत करना पड़ता था वो कसरत अब लोगों को नहीं करना पङ रहा है स्वतंत्रता के इस युग में कोई भी कवि बन सकता है पर आपको पूछेगा कौन यह आपको खुद से पूछना है ऐसा नहीं है कि स्वतंत्रता के इस युग के काव्य पढ़ने अथवा सुनने लायक नहीं है कहीं-कहीं आप इसे पढ़ेंगे तो देखेंगे कि पहले के किसी युग की लिखी कविता से भी ज्यादा प्रभावी है पर आज की युवा पीढ़ी इसे नहीं समझना नहीं चाहती है कुछ पंक्ति केदारनाथ सिंह की ही ले लीजिए-

            

               “अगर धीरे चलो

               वह तुम्हें छू लेगी

               दौड़ो तो छूट जायेगी नदी”

 


इस पर आज का युवा कहेगा कि इसको क्या पढना इसमें तो कोई रस

ही नहीं पर इसके अंदर छुपे भावों को वो नहीं समझेंगे कि आखिर नदी के माध्यम से केदारनाथ जी उन्हें क्या समझाने की कोशिश कर रहे हैं । 

इस युग की कविता दिमाग से ज्यादा दिल से लिखी जाती है इसलिए कभी-कभी आपको लगेगा कि यह तो कुछ भी नहीं है मगर उस कुछ भी नहीं मैं बहुत कुछ छुपा होगा जो कविताएं तुकांत शब्दों से सजाकर लिखी होती है वह सुनने में ज्यादा अच्छा लगती है पर जिनमें कोई तुकान्त शब्दों का प्रभाव नहीं होता जो केवल अपनी बात रखने के लिए लिखी जाती है वह सुनने में उतना अच्छा नहीं लगता मगर वह पढ़ने में अच्छा लगता है मैंने एक कवि सम्मेलन में एक कवयित्री को अपनी बात रखते देखा था जिनकी स्थिति ऐसी कविताओं की रचना करके भी निराशाजनक थी आप भी अपनी बात रख सकते हैं पर किसी कागज पर , सुनाकर लोगों के सामने अपना मजाक मत बनाइए क्योंकि जब हम काव्य पाठ करते हैं तो उसमें स्पष्टता और प्रवाह का होना आवश्यक है जो कविताओं में तुकांत शब्दों के प्रयोग से ही संभव हो सकता है कुछ चीजें पढने के लिए होतीं हैं और कुछ सुनने के लिए ।

Thought:- 

तुकांत शब्द से सजी कविता सुनने में अच्छे लगते हैं और केवल भावनाओं को रखने वाली कविताएं पढ़ने में अच्छी लगती हैं ।

कमियों से लड़ने का नाम जिंदगी है ।

कविता:- कमियों से लड़ने का नाम जिंदगी है 


कमियां किसके अंदर नहीं है 

कमियों के नाम जिंदगी है 

जो कमियां से नहीं लड़ता 

उसका बदनाम जिंदगी है 


कमियां हमें कमजोर करने पर लगी रहे 

हमें जरूरत है उसे पछाड़ते रहने की 

कमियों को जिंदगी से दूर करने की 

और अपनी जिंदगी को संवारते रहने की 


कला सबके अंदर होती है 

कमियों को दूर करने की 

कोई खड़ा तो हो और कोशिश तो करें 

उन कमियों को दूर करने की 

कमियां लाख हो तुम्हारी जीवन में 

उसे जिंदगी में ज्यादा नहीं महत्व देना है 

कमियों को अपनी जिंदगी में नहीं स्वामित्व देना है 


कैसे जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा 

कमियों के नाम हो जाता है,

कमियों को अपने ऊपर हावी होने देने वाला 

कोई इंसान बदनाम हो जाता है।।



About its creation:- 

यह सच है की कमियों और कमजोरियां सबके अंदर है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि उसे दूर करने की कला भी सबके पास है पर जब हमारा कमियों और कमजोरियों के सामने हौसला टूटता है तो वह हमारे अंदर घर बना लेता है हम उसे अपने मन मस्तिष्क में स्थान दे देते हैं जो हमारी सबसे बड़ी गलती है यदि हमारे अंदर कोई कमी है तो हमें उसका डटकर सामना करना चाहिए और तब तक हार नहीं मानना चाहिए जब तक की उस कमी का समाधान न मिल जाए हमारा जीवन अनमोल है ऐसे में यदि हम कमियों को अपने जेहन में, अपने जीवन में स्थान देते हैं तो समझ लीजिए कि आधी जिंदगी हम उन्हीं कमियों से परेशान रहेंगे इसलिए यदि हमें जीवन में खुश रहना है तो हमें हर उस चीज से परहेज करना चाहिए जो आगे चलकर हमारी कमजोरियों का कारण बन जाए । हमने देखा है कि जब हमारे अंदर कोई कमजोरी या कमी पनपती है तो हम लोगों से मिलने से घबराते हैं उनसे बात करने से घबराते हैं ऐसा इसलिए है क्योंकि हम उन कमियों को लोगों से छिपाना चाहते हैं जो कि गलत बात है ऐसे में तो हम उन कमियों के दूष चकर से कभी बाहर ही नहीं निकल पायेंगें हमें अपनी कमियों को लोगों के समक्ष नजर अंदाज़ करना सीखना होगा और उससे लड़ना होगा और जो इस लड़ाई में हमारा साथ दे सकता है उसका साथ लेना होगा तभी हम अपनी कमियों को दूर कर पायेंगे ।



Thought:- 

अपनी कमियों को लोगों के सामने नजर अंदाज करना सीखिए 

नहीं तो आपका विश्वास खुद पर से उठ जाएगा ।


आंखों की काली छाई से.....।

कविता:- आंखों की काली छाई से 

आंखों की काली छाई से 

पेड़ की मिली परछाई से 

मैं अपना जीवन काट लेता 

कभी होता दुख मेरे सर कोई 

तो पेड़ों से ही अपना दुख बांट लेता 

लगती भूख मुझे कभी तो पेड़ों से ही कुछ फल मांग लेता 

उसका कर्ज चुकाने के लिए उससे कुछ मोहलत मांग लेता 

मुझे जरूरत नहीं थी किसी के छत पर खटने की 

पर मैंने तेरी जरूरत को समझा 

मेरे होते हुए तुम्हें जरूरत नहीं हुई ना 

बेटे ! भटकने की जो मैंने तेरे प्रति 

अपनी मुहब्बत को समझा 

मेरी जिंदगी उस दौर में थी जिस दौर में जो गुजरा जवाना 

मेरा लक्ष्य बस एक तू ही था और तुम्हारी जिंदगी बनाना 

न चाहता था रुके तेरा कदम तू आगे ही बढ़ते रहना 

प्रेरणा देगी मेरी आंखें तुम्हें 

मेरी आंखों की परछाई को पढ़ते रहना ।



About its creation:- 

आप क्या लिखना चाहते हैं वह तो आप लिख लेंगे पर जिस दिन आपकी भावनाओं में वो बात नहीं रह जाएगी जिसे लिखा जा सकता है तब आप क्या करेंगे? कुछ लोग एक उम्र तक जाते-जाते यह स्वीकार कर लेते हैं कि अब उनकी उम्र नहीं रही लिखने की वह ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि वह अपने लेखन को उम्र के साथ जोड़कर देखते हैं पर लेखन एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें उम्र का कोई वास्ता नहीं होता है । उम्र कोई भी हो लेखन सोचने की क्षमता पर निर्भर करती है आपके इस क्षेत्र में रुचि पर निर्भर करती है रही बात आपकी भावनाओं के खत्म होने के बाद की बात तब आप उसके बाद भी अपना लेखन जारी रख सकते हैं जिसमें लेखन तो आपका होगा पर आपको दूसरे के भावों को अपनी कविता में उतारना पड़ेगा कुछ दिनों से मैं अपनी रचनाओं को लेकर बहुत निराश था सप्ताह का सप्ताह बीतता जा रहा था और मेरा मन भावों से खाली था मैं सोच रहा था कि मेरे पास कोई शब्द कोई भाव क्यों नहीं है जिसे मैं अपनी रचना में ढाल सकूं मैंने महसूस किया कि मेरे पास कोई ऐसी बात ही नहीं है जिसे मैं कह सकूं आज तक मैंने अपने संघर्षों के बारे में कविता लिखा था पर कोई और मुझे क्या कहना चाहता होगा उसके संघर्षों की कहानी किस कविता को जन्म देती होगी ऐसा कभी मैंने सोचा ही नहीं था । ये मेरी एक ऐसी कविता है जिसमें एक संघर्ष पूर्ण पिता अपने बेटों को अपने चेहरे के भावों से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है ।

 वो पिता मैं नहीं हूँ , मैं कवि हूँ ! 

Thought:- 

लेखन एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें आप उम्र को दोष नहीं दे सकते हैं लेखन में प्रगति आपकी खुशी, उमंग और कल्पना पर निर्भर करता है ।

शहादत का वादा

विता:- शहादत का वादा  

एक रेत का घरौंदा कितना अच्छा होता है 

पर एक हल्की हवा के झोंके से वह गिर जाता है 

मुझे अच्छी चीजों को का नष्ट होना अच्छा नहीं लगता है 

जैसे कोई फूल कितना सच्चा होता है 

एक दिन के लिए ही सही उसकी खुशबू कितना अच्छा होता है 

जिन्हें वादियों में वो बिखेर जाता है 

जैसे कोई फूल खूबसूरत श्वास छोड़ जाता है 

वैसे कोई रेत का घरौंदा किसी की आंखों में अपना छाप छोड़ जाता है 

उनका इस तरह निर्मोही होना खुदा का इबादत है 

फूलों का श्वास और घरौंदों का छाप छोड़ना उनका सच्चा शहादत है 

क्या हम उस फूल की खुशबू की तरह नहीं हो सकते ? 

जो वादियों में जीने के लिए श्वास छोड़ जाता है 

क्या हम उस घरौंदा की तरह नहीं हो सकते हैं  

जो किसी के आंखों में खूबसूरत छाप छोड़ जाता है 

हमें इसके लिए उस रेत के घरौंदे से सीखना होगा 

जो हल्की सी धूप से मोम की तरह पिघल जाता है 

हमें उस फूल की खुशबू से कुछ सीखना होगा 

जो हवा की हल्की छुअन से वादियों में निकल जाता है 

उसके पास तो समय कम होता है और हमारे पास ज्यादा 

क्या हम कर सकते हैं उस घरौंदा और एक फूल की तरह 

कभी कहीं जाने से पहले खुशबू और छाप छोड़ने का बाद 

क्या हम कर सकते हैं शहादत का वादा ?



About its creation:- 

एक बार जब मैं अपने दुकान पर बैठा था दुकान के सामने मैदान में कुछ मजदूर काम कर रहे थे तभी मेरी नजर ट्रैक्टर में फावड़े की सहायता से डाल रहे मजदूरों के फावड़े पर पड़ी और साथ ही उस फावड़े से निकलते हुए बालू पर जो अपनी शीतल प्रकृति के कारण फावड़े से निकलते हुए फावड़े सी एक सुंदर तस्वीर बना रही थी और ट्रैक्टर के डाली में गिरने से भंगुर के समान धीमी गति से नष्ट हो जा रही थी मैं इस दृश्य को बस देखे ही जा रहा था और मेरी नजर उस से हटती ही नहीं थी क्योंकि यह दृश्य मेरे लिए अद्भुत था मैं इसे देखकर मन ही मन पुलकित हो रहा था तभी अचानक मेरे भैया की गाड़ी दुकान के सामने रुकी अब मेरे कोचिंग जाने का समय था इसलिए मैं अपनी साइकिल लेकर तेजी से घर की ओर बढ़ा और मैंने सोचा वह दृश्य मेरे लिए अविस्मरणीय है होना चाहिए और मैंने साइकिल चलाते हुए ही दो-तीन वाक्य मन में सोच लिया था पर यह पूरी तरह से वह नहीं था जिसे मैंने अपनी कविता ने लिखा है मैंने सिर्फ उस दृश्य का वर्णन करने का मन बनाया था पर मेरे उमंगों को कुछ और ही मंजूर था जिस ने मेरे कलम को मोड़ दिया और उस दृश्य के वर्णन के बजाए उसके दी जा रही सीख पर मेरा ध्यान चला गया।

अपने देश के लिए शहादत की चाह तो एक पुष्प भी रखती है इसकी व्याख्या पुष्प की अभिलाषा में माखनलाल चतुर्वेदी जी ने किया है- 

“चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गुथा जाऊं,

चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं,

चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि, डाला जाऊं,

चाह नहीं देवों के सर पर चढूं भाग्य पर इठलाऊं,

मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक,

मातृभूमि पर शीश चढाने जिस पथ जावें  वीर अनेक”

 



Thought:- 

अपने मन में देश प्रेम की भावना रखना हमें हर तरह से एक अच्छा नागरिक बनने के लिए प्रेरित करता है और जिस देश के नागरिक अच्छे होते हैं उस देश की तरक्की निश्चित रूप से होती है ।

बेटियों से अच्छा कोई और नहीं है ।

कविता:-बेटियों से अच्छा कोई और नहीं है 


बेटियाँ हो तुम बेटियों पर सामत आयी है 

कह देना तुम बहनों से बेटियों पर कयामत आयी है 


एक बोझ है उनके कंधों पर उसे वह उतारेगी  

किसी के टुकड़ों पर नहीं खुद अपना भविष्य संवारेगी 


उसे प्रीत की रीत को बदलना होगा 

लड़कियां दहेज नहीं लेती इस रीत को बदलना होगा 


उन्हें दिखाना होगा कि वह पिता का बोझ नहीं है 

उन्हें दिखाना होगा कि बेटियों से अच्छा कोई और नहीं है  


बेटियाँ परायी होती है या अपना 

उस बाप से पूछो जो बेटों को चाहते हुए भी 

बेच देता है उन्हें और उनका सारा सपना ।।


About its creation:- 

आज अचानक जैसे घर का माहौल मातम सा बन गया हो इस आधुनिक भारत में भी किसी के दबे मुंह से सांत्वना और प्रशंसा के रूप में बस इतनी ही बात निकली हो कि- 

       “सब भगवान के खेल हकय एकरा में पतोहू के कौन दोष हय”

आज घर में तीसरी लक्ष्मी ने जन्म लिया है पर घर में किसी के चेहरे पर खुशी नहीं सभी की इच्छा और कामना यही थी कि इस बार बेटा ही हो पर हुआ  वही जो नियति को मंजूर था ये खबर कहीं से टकराती हुई मेरे कानों तक पहुंची कि आज मेरी एक भांजी और बढ़ गई है मैं पहले ही दो भांजियों का मामा था और इस खबर को सुनकर और खुश हो गया पर मैं इस बात से हैरान था कि अशिक्षित बाप और पड़ोसियों को खुशी का एहसास कैसे होगा जो अपने समाज में बेटियों को सिर्फ दहेज का पुतला मानते हों इस बात को सोच कर मेरा मन विकृत होने लगा और मैंने शांत मन से सोचा कि आज से बेटियों पर कयामत आ गई है उनका संघर्ष दुगना हो चला है क्योंकि ना सिर्फ उन्हें अपने आप को साबित करना होगा बल्कि उन्हें अपने होने की खुशी का एहसास भी लोगों को दिलाना होगा ।

Thought:-जब तक हमारा समाज कुरीतियों और दहेज प्रथा से मुक्त नहीं होगा तब तक लोग उस समाज में, उस देश में लिंग भेदभाव करना नहीं छोड़ेंगें ।

मेरी नजरों में मेरी माँ

कविता:- मेरी नजरों में मेरी माँ 


माँ मुझे तुमसे प्यार है 

माँ तेरी एक मुस्कान में ही मेरा पूरा संसार है 

माँ इस संसार में आया हूं मैं बस तेरे ही आस पर

इस मतलबी दुनिया के नहीं बस तुम पर ही विश्वास कर 


माँ तुम क्या हो? 

मेरे चेहरे पर पड़े गर्मी के ओंश के बूंद को छूकर उड़ा दे 

और जो एक ठंडा सा एहसास दे दे 

अपने आंचल से निकला हुआ वह हवा हो तुम 

मेरे हर दर्द की दवा हो तुम 

जो दवा से ठीक ना हो उस मर्ज को ठीक करने वाली दुआ हो तुम 


माँ तुम क्या हो? 

मां मेरी जागती हुई आंखों से देखा हुआ सपना हो तुम 

ये संसार तो झूठा है बस मेरा एक अपना हो तुम 


माँ तुम क्या? 

मेरे थाली में परोसा हुआ खाना हो तुम 

अपना पेट काटकर मुझे देती हो जो वो आखिरी निवाला हो तुम 

माँ तुम क्या हो? 

जिस वैद्य की विद्या से बीमारियां कोसों दूर रहती है 

उस वैद्य की अभिलाषा हो तुम 

मेरे चेहरे पर दूर से आती है जो मुस्कुराहट 

उसकी एक आशा हो तुम 

मैं मूर्ख एक बार फिर पूछता हूँ  

माँ तुम क्या हो? 

मेरे दिल से निकला हुआ एक प्यारा सा शब्द 

माँ हो तुम !



About its creation:- 

कवि रहते हुए मैंने बहुत दिनों से एक बात सोच रखी थी कि हर रिश्ते पर मैं अपने कलम से एक कविता गढ़ूंगा । मैंने सबसे पहले अपनी माँ पर एक कविता लिखना चाहा था पर नहीं लिख पाया रिश्तों के इस संबंध में सबसे पहले मैंने अपने भैया पर कविता लिखी फिर अपने पिता पर और अब अपनी माँ पर ।

      मैंने अपने पूरे जीवन में घर के सदस्यों में सबसे ज्यादा पागल अपनी माँ को पाया है उनका हर फैसला मूर्खता पूर्ण पर हमारे लिए हितकारी होता था उनका वो हमारे बचपना करने पर खुद बच्चा बन जाना किसी खिलौने को दिलाने के लिए पिता से बच्चों की तरह झगड़ना । जब एक माँ अपने बच्चों से प्यार करती है तब इस संसार को देखने में लगता है कि यह भावुक पल किसी मूर्ख स्त्री का है पर वह पल एक स्त्री एक माँ का अपने बच्चे के प्रति प्यार होता है प्यार कोई मजाकिया आँखों  देख कर हंसने वाला पल नहीं होता है और इस बात का आभास इंसान को तब होता है जब उसके मजाकिया आंखों से प्यार में पड़कर आंसू गिरने लगते हैं तब उसे प्यार का मतलब समझ में आता है

 हर इंसान को अपने थाली में बचे कुछ निवालों को अपने सामने बैठे भूखे बच्चे को खिलाना चाहिए इसका एक मतलब यह भी हो सकता है कि आपका पेट कुछ खानों से कभी नहीं भरेगा जबकि एक बच्चे का पेट थोड़े से रोटी के टुकड़े से भी भर सकता है और यदि इस काम को एक माँ के द्वारा किया जाता है तो एक बेटे के नजर में उसकी इज्जत दुगनी हो जाती है मेरे पास इस कविता को लिखने के लिए यही वाक्य था कि कैसे कोई मां अपने बेटे को खिलाने के लिए आखिरी निवाले तक जाने से पहले अपने हाथों को रोक लेती है ।


Thought:- हम किसी रिश्ते को कितना चाहते हैं इसकी गहराई को हमारे द्वारा उस रिश्ते को पुकारा गया शब्द तय नहीं कर सकता है नहीं तो हमारा माँ को पागल कहना भी गलत होता ।

उन रास्तों को क्यों भूलें ?

कविता:- उन रास्तों को क्यों भूलें

जिस मंजिल का सफर सुहाना होगा 

उस मंजिल का कौन नहीं दीवाना होगा 

जिस मंजिल का सफर सुहाना होगा 

उस मंजिल पर ठहर कर क्यों समय गवाना होगा 

उन रास्तों पर हम चलते जाएंगे हंसी खुशी 

मंजिल तो सिर्फ उन रास्तों पर चलने का बहाना होगा 

वह मंजिल बहुत सुहाना होगा - वह मंजिल बहुत सुहाना होगा 

डगमगायेंगे हमारे पैर झूमेंगे हम मस्ती में 

उस मंजिल की हम क्यों फिक्र करेंगे 

जो मिलेंगे हमें हर बस्ती में 

बस झूमेंगे हम मस्ती में 

ठहरेंगे हम कभी नहीं इन रास्तों में ना हमारा कहीं पड़ाव होगा 

हम चलते जाएंगे उन रास्तों पर मंजिल पर भी नहीं हमारा ठहरा होगा सोचेंगे हम कभी नहीं हमें जाना कहां है 

ना हम पूछेंगे किसी से कि हमारे मंजिल का ठिकाना कहां है 

इस मंजिल से दूर कहीं कोई और भी तो ठिकाना होगा 

फिर से चलेंगे हम उस मंजिल पर 

जिस मंजिल का सफर सुहाना होगा 

उस मंजिल का कौन नहीं दीवाना होगा 

हम तो बस सफर को चाहेंगे 

उस मंजिल का कौन दिवाना होगा ?

 


About its creation:- 

किसी ऐसे व्यक्ति से बात कीजिए जो आपके आकर्षण का कारण बना हो,

आपका उससे क्या रिश्ता है यह आपको सोचने की जरूरत नहीं है आप सिर्फ यह सोचिए कि आपको उससे बात करने में कैसा लग रहा है आपका उसके प्रति सच्ची आस्था एक विश्वास होना चाहिए और उसका आप के प्रति। आप कुछ दिनों के बाद अपने विश्वास को परखने के लिए

रिश्ते की सबसे निचली डोर के गांठ पर अपना हाथ रखिए वो अपने हाथ को उस डोर के पीछे खिंचेगी यदि वह सच्ची और अच्छी होगी तब वह आपको अपने रिश्तों की सीमा बताएगी वह यह नहीं पूछेगी कि आप उसके साथ कितने कदम चलना चाहते हैं वह सिर्फ इतना बताएगी कि आप कितना दूर तक इस रिश्ते को ले जाना चाहेंगे क्योंकि वह तो उसी वक्त  अपनी सीमा आपको बता चुकी होगी यदि आप सच्चे होंगे तब आप भी अपने रिश्तों की मर्यादा से ज्यादा नहीं चाहेंगे।

 आपका उससे बात करना कितने ही लोगों को अच्छा नहीं लगेगा और अच्छा भी क्यों लगे ? क्या आप उसे उतना जानना चाहते हैं जितना कि लोग आप दोनों को तब आपका पूरा हक है उसे आप बदनाम कीजिए आपको पूरा हक है क्योंकि तब उसकी बदनामी आपसे जुड़ी होगी पर आपको ये हक नहीं है कि आप किसी को इसलिए बदनाम करें कि आप उसे चाहते हैं अगर आप अपने पिछे मुड़कर देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि चाहने वालों की भीड़ में आप अकेले नहीं और भी कई होंगे इसलिए आपको उसकी इज्जत का ख्याल रखकर अपना स्वर्ग सजाने की बात करनी होगी । स्वर्ग किस बात की हो ? स्वर्ग आपके रिश्तों की सीमा की हो जिस सीमा में आपके रिश्तों की उम्र हमेशा लंबी रहे आप हर रिश्तों को एक दोस्ती का नाम दीजिए और आपको जो भी कहना हो खुलकर कहिए क्योंकि दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है जिसमें हर बात को सुनने की क्षमता होती है इस कविता में दो ऐसे साथी प्रेरणा के श्रोत बनें हैं जो सिर्फ मंजिल की ख्वाहिश रखते हैं क्योंकि वो हमेशा दोस्त बने रहना चाहते हैं । 

Thought:- 

रिश्ता कोई भी हो यदि हम उसमें दोस्ती का भाव जोड़कर देखें तो हर रिश्ते में रिश्तों से जुड़े व्यक्ति के व्यक्तित्व को जाने का मौका मिलेगा।ञ

मेरे उम्र की लड़कियां

कविता:- मेरे उम्र की लड़कियां 


मुझे देख कर आज मेरे उम्र की हर लड़कियां मुस्कुरातीं है 

उसकी निगाहें मेरी तलाश में कभी चौराहों पर 

तो कभी मेरी छत की बालकनी तक चली आती है 


जब कभी करीब से वो गुजरें 

तो ऐसा नहीं है कि वो हमसे नजरें चुराती है 

बल्कि वह अपनी निगाहें हमारी आंखों में डाल कर मुसकुरातीं है 


यह आग सिर्फ उनके सीने में ही नहीं 

कभी उनके दीदार की चाहत मेरे दिल को भी जला जाता है 

इसलिए तो मेरा दिल कभी मुझे सड़कों पर निकाल लाता है 


उनके होंठों पर एक अलग सी मुस्कान होती है 

जब मुसकुरातीं हैं वो तो उनके एक मुसकान पर 

फ़िदा सारा जहान होती है  


मेरे उम्र की हर लड़कियों का मुझ पर एक इल्जाम होता है 

मेरे मुसकुराने पर हमें दीवाना कहना उनका काम होता है।।



About its creation:-

उमंगों का कारण कोई बन जाता है जिससे कविता की रचना हो जाती है एक दिन की बात है जब सुबह अचानक मेरी नजर एक लड़की पर पड़ी मैं उसे जानता था इतना तो नहीं कि मैंने उससे कभी बात की हो उससे मेरा नाता सिर्फ एक मुस्कान का था इसलिए उसने मुसकुराया जब मैंने उसे मुसकुराते हुए देखा तब मेरे चेहरे के चारों तरफ उमंगों की एक लहर दौड़ पड़ी उमंगों का जोरदार धमाका हम निम्न शायरी से लगा सकते हैं  

                 “हमारे मिलने पर मैंने एक शायरी लिखी है 

                     कल से मैंने एक डायरी लिखी है 

                     उस डायरी में मैंने तेरा नाम लिखा है 

                    मुहब्बत के दीवानों को पैगाम लिखा है 

    आज से और अब से कोई दीवाना नहीं लेगा लैला-मजनू का नाम 

     क्योंकि उनसे भी बुरा मैंने अपनी मुहब्बत का अंजाम लिखा है”

 

यह कवियों की प्रकृति होती है की उसे अपनी उमंगों को भूलना पड़ता है या फिर वह खुद ही विस्मरणीय हो जाती हैं।

लड़कियां हमारे जीवन में एक प्रेरणा की तरह होती हैं अगर हमारा उद्देश्य है कि हमें पूरी दुनियाँ पर विजय करना है तो यह केवल उनकी प्रेरणा से संभव है अगर हम अपने मन में यह विश्वास कर लें कि उनका साथ हमें मिल जाएगा तो हम पूरी दुनियाँ पर विजय पा लेंगे और यह कोई ऐसी वैसी ताकत नहीं होगी यह उनके प्रति हमारे चाहत की ताकत होगी हमारे मुहब्बत की ताकत होगी और मुहब्बत बहुत ताकतवर होता है अगर हम चाहेंगे कि हमें बस उनका साथ चाहिए और हम अपने सभी उद्देश्यों को छोड़कर उनके पीछे लग जायें तो यह हमारे लिए रास्ते से भटक जाने जैसा होगा कहते हैं प्यार का प्रमाण नहीं होता है ना हो सही मगर इम्तहान जरूर होता है और इस इम्तहान को देने के लिए कौन कैसा रास्ता अपनाता है यह देखना जरूरी होता है ।



Thought:-किसी को देखकर मुसकुराना गलत नहीं है मुसकुराना शांति का प्रतीक है यह नज़रिए पर निर्भर करता है कि आप किस नजर से देख कर किसी को मुसकुराते हैं नजरे सब बयां कर देती हैं।

अपने लक्ष्य को पहचान

कविता:-अपने लक्ष्य को पहचान 


वो जंग नहीं है तुम्हारी तुम पागल मत बन 

बस दुनिया को दिखा कि तू भी है इस जंग में 

और तुम्हें जो बनना है वो बन 

बस तुम पागल मत बन 

वो जंग नहीं है तुम्हारी तुम पागल मत बन 


बहुत मिलेंगे तुम्हें ललकारने वाले 

मैं जानता हूँ तू वीर है 

ओ ! लक्ष्य को खोकर स्वभावी हारने वाले 


तू सुन मत दूसरों की सिर्फ लक्ष्य को साधे जा 

तुम्हारी सफलता तुम्हारे सपनों में है 

उसमें इच्छा के फूल बांधे जा 



इच्छा तो सीखने की पहचान होती है 

तू धारण कर ले उस इच्छा शक्ति को 

जिसके उमंगों से उड़ान होती है 

दुनियाँ के जंग में हार जाना तुझे गम नहीं होगा 

अपने लक्ष्य को तू देख 

एक दिन तू भी किसी से कम नहीं होगा ।। 




About its creation:-

आज प्रतियोगिताओं का युग चल निकला है कुछ लोगों का कहना है कि आज की इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में किसी को जिंदगी जीने की फुर्सत नहीं है जिसे देखो बस प्रतियोगिता में लगा है तब प्रश्न यह है कि क्या जिंदगी कोई नहीं जीता है पर मेरा मानना है कि जिंदगी आज भी लोग जीते हैं कौन ? वही जो प्रतियोगिता जीतते हैं ।  प्रतियोगिता कौन जीतता है ? वही जिसकी वह प्रतियोगिता होती है वही प्रतियोगिता जीतते हैं और कुछ हारने वाले भी जिंदगी जी लेते हैं क्योंकि वह समझ जाते हैं कि जिस प्रतियोगिता में वो हारे हैं वह उनकी नहीं जितने वाले के अपने जीवन का अभिन्न प्रतियोगिता था इसलिए वह अपनी प्रतियोगिता पर वापस लग जाते हैं जिंदगी वह क्या जीयेंगे जो हर प्रतियोगिता को अपनी प्रतियोगिता समझते फिरेंगे हर युद्ध में इंसान को नहीं पङना चाहिए जो इस बात को नहीं समझता वह सिर्फ दुनिया के चक्कर लगाता रह जाता  है उसके हाथ कुछ भी नहीं लगते हैं । सबसे पहले हर इंसान को अपने उस लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिसे वह समझता है, आत्म विश्वास के साथ कहता है कि हाँ मैं इसे कर लूँगा और उन्हें दूसरों की सफलता से विचलित नहीं होना चाहिए ।





Thought:- 

हर युद्ध में इंसान को नहीं पढ़ना चाहिए जो इस बात को नहीं समझ पाता है दुनिया के चक्कर लगाता है रह जाता है ।

मेरे पहले प्रशंसक मुरारी भैया !

कविता:- मेरे पहले प्रशंसक ‘मुरारी भैया’


 वो उमंगें मेरी ओर आ चुकी है 

मेरा मन गीतों को गा चुकी है 


पहले मैंने सोचा सुनाऊं उन्हें क्या फर्क है 

सुन लेंगे मेरी प्रशंसा वो किसी दूसरे के मुंह से क्या हर्ज है 


फिर मैंने एक पल के लिए सोचा कि हर्ज ? 

मेरी कला जन्मी हैं उन्हीं  की सच्ची प्रशंसा से तो मेरा क्या फर्ज है?


मेरी उमंगों का एकमात्र जरिया है वो,

मेरी कला उन्हीं से निकला हुआ एक बूंद है 

और कलाओं का दरिया है वो 


एक बार की बात है जब मेरी कला अंकुरित हुई 

जैसे होती है पौधों को पानी यों की 

मेरी कलाओं को उनकी प्रशंसाओं की जरूरत हुई 


मैं क्या सुनाऊं उन्हें मेरी उमंगों को जान जाते हैं वो,  

यदि मैंने अपनी कविताओं को उनको सुनाएं बिना 

किसी और को सुनाया तो बुरा मान जाते हैं वो


वो मेरे पहले प्रशंसक हैं और मैं उनका 

मेरी कलाओं को इतनी उन्नति दे भगवान 

मैं बन जाऊं आखिरी प्रशंसनीय कलाकार उनका ।



About its creation:-

किसी ने कहा है कि जिस घर में कला प्रेमियों की कमी नहीं होती अक्सर उस घर में कलाकार पैदा हो जाते हैं ‘मुरारी’ मेरे बड़े भैया का नाम है इससे पहले और बाद मेरी कला की प्रशंसा जाने कितने ही लोगों ने किया मुझे याद नहीं पर जिस स्वतंत्रता को मैंने अपने भैया के मुंह से प्रशंसा सुनने के बाद महसूस किया है उतनी स्वतंत्रता मैंने कभी किसी के मुख से प्रशंसा सुनकर महसूस नहीं किया है क्योंकि वह मेरे लिए बचपन में अमरीश पुरी के समान थे जिनसे में सबसे ज्यादा डरता था वह मुझे स्कूल भेजने के लिए पाताल से भी ढूंढ निकालते थे उन्हें यह भी पता हो जाता था कि मैं इमली के पेड़ पर छुप जाता था मुझे मालूम है किसी भी पिता या पिता समान भाई का यह कर्तव्य होती है कि उन्हें अपने बेटे और भाई को एक अच्छी नौकरी पर आसीन करना होता है पर उन्हें यह भी समझना पड़ेगा कि उन्हें अपने बेटों को सिर्फ पेट पालने वाली नौकरी के पीछे नहीं भगाना चाहिए उन्हें ऐसे चीज को अपने बेटे को करने के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे आगे चलकर वह बेटा एक अच्छा प्रदर्शनकारी बन सके उन्हें अपने बेटे और भाई को वहाँ ले जाने का प्रयास करना चाहिए जहाँ उसकी रुचि हो आप सिर्फ एक बार उसकी रुचियों की प्रशंसा करके देखिए और फिर देखिए कि आपका बेटा क्या करता है ।



Thought:-

किसी का प्रशंसा करना कार्य को बढ़ावा देना होता है और घर में प्रशंसकों का होना घर में कलाकारों को पनपने का मौका देना होता है

ऐसे ही तो शब्द हैं कम !

कविता:-ऐसे ही तो शब्द हैं कम  


कही हुई चीजों को हम कहेंगे 

कम कहेंगे कुछ कम कहेंगे 

कहेंगे कम बताएंगे ज्यादा 

यही हमारा है आप सब से वादा 

कहे हैं वो जो हम कहेंगे 

कम कहेंगे कुछ कम कहेंगे 

आप ही बताओ कुछ और है क्या 

मेरे कहने के लिए कुछ और है क्या 

शब्द उन्हीं के हैं और कुछ भी नहीं 

मेरे कहने के लिए बस है यही 

कहूंगा आज मैं जरूर कहूंगा 

मुझे मत रोको मैं हुजूर कहूंगा 

कहने के लिए ऐसे ही तो शब्द है कम 

पहले वो कहेंगे तो कब कहेंगे हम 

कही हुई चीजों को हम कहेंगे 

कम कहेंगे कुछ कम कहेंगे ।।



About  its  creation:-                                      


 मैंने शब्दों को कम बताया इसका तात्पर्य यही है कि जब कभी हम कुछ लिखने बैठते हैं तो हमें किसी दूसरे कवि के शब्द, वाक्य और कविता के शीर्षक हमारे मन मस्तिष्क में इस प्रकार घूमने लगते हैं मानो मन मस्तिष्क में धुंद चल रहा हो समझ में नहीं आता है कि किस शब्द से हम अपनी कविता की शुरूआत करें और किससे खत्म करें । 

                                                                                       मैं मानता हूँ वाकई लोगों को पढ़ने से ही एक कवि और एक लेखक  निखरता है मगर ज्यादा पढने से हम कहीं खोने का एहसास करते हैं लेखन में निखार लाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज है सही शब्द का चुनाव  इस आधुनिक युग में जहां जेहन में भाषाओं का भरमार लगा हो वहाँ किसी लेखक या कवि को शुद्ध भाषा का शब्द उन्हें किताब ही दे सकता है इसलिए उन्हें किताब पढना चाहिए पर साथ ही उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए की उनकी भी रचनाएं भी किसी के द्वारा पढ़ी जाएंगी इसलिए उन्हें लेखन का अपना तरीका बनाना चाहिए ना की नकल जहां तक मेरा मानना है वही लेखक या कवि अपने लेखनी में सफल हो पाते हैं जो लेखन का एक अपना तरीका बनाते हैं।



Thought:-

 लेखक को लेखक के द्वारा अपनाया गया उसके लिखने का अपना तरीका ही महान बनाता है।

नज़्म:- मेरी अभिलाषा

ये जो डर सा लगा रहता है  खुद को खो देने का, ये जो मैं हूं  वो कौन है ? जो मैं हूं !  मैं एक शायर हूं । एक लेखक हूं । एक गायक हूं मगर  मैं रह...