कविता:- स्वतंत्रता के इस युग में कविता
स्वतंत्रता के इस युग में लिखी हर कविता एक कहानी कहती है
सच में ! एक कहानी कहती है ? या फिर वह कहानी ही रहती है
लोगों का कवियों से विश्वास उठ रहा है
लगता है कवियों का अस्तित्व लूट रहा है
एक सच्चा कवि यह कैसे मान ले ?
जो आगे कोई लिख रहा है वह कविता करता है
जबकि ना उनकी कविता कोई कहानी कहती है
और ना वह कविता कोई कहानी ही रहती है
किसी की चापलूसी को वह सच्ची प्रशंसा मान बैठे
तो इसमें उन सच्चे कवियों का क्या दोष है,
उनके साथ ही उन कवियों की कविताएं भी
उस अलमारी में दब जाती है ना जिनके शब्दों में जोश है
लोग छूना नहीं चाहते हैं
स्वतंत्रता के इस युग में लिखें कविताओं के किताबों को,
कुछ ऐब तो हमारे देश के पाठकों में भी हैं
जो नहीं देना चाहते हैं गड़बड़ाने नोटों के हिसाबों को
About its creation:-
जब ‘अज्ञेय’ ने अपने स्वतंत्रातमक और प्रयोगवादी कविता का चलन प्रारंभ किया था तब कुछेक ने उनकी आलोचना प्रारंभ की पर उन्होंने आलोचनाओं की परवाह नहीं की उन्होंने स्वतंत्र काव्य को लिखना जारी रखा जिसने जनमानस के भीतर स्वतंत्र काव्य लिखने के रुचि को जागृत किया इससे पहले लोगों को एक कवि बनने के लिए काफी कसरत करना पड़ता था वो कसरत अब लोगों को नहीं करना पङ रहा है स्वतंत्रता के इस युग में कोई भी कवि बन सकता है पर आपको पूछेगा कौन यह आपको खुद से पूछना है ऐसा नहीं है कि स्वतंत्रता के इस युग के काव्य पढ़ने अथवा सुनने लायक नहीं है कहीं-कहीं आप इसे पढ़ेंगे तो देखेंगे कि पहले के किसी युग की लिखी कविता से भी ज्यादा प्रभावी है पर आज की युवा पीढ़ी इसे नहीं समझना नहीं चाहती है कुछ पंक्ति केदारनाथ सिंह की ही ले लीजिए-
“अगर धीरे चलो
वह तुम्हें छू लेगी
दौड़ो तो छूट जायेगी नदी”
इस पर आज का युवा कहेगा कि इसको क्या पढना इसमें तो कोई रस
ही नहीं पर इसके अंदर छुपे भावों को वो नहीं समझेंगे कि आखिर नदी के माध्यम से केदारनाथ जी उन्हें क्या समझाने की कोशिश कर रहे हैं ।
इस युग की कविता दिमाग से ज्यादा दिल से लिखी जाती है इसलिए कभी-कभी आपको लगेगा कि यह तो कुछ भी नहीं है मगर उस कुछ भी नहीं मैं बहुत कुछ छुपा होगा जो कविताएं तुकांत शब्दों से सजाकर लिखी होती है वह सुनने में ज्यादा अच्छा लगती है पर जिनमें कोई तुकान्त शब्दों का प्रभाव नहीं होता जो केवल अपनी बात रखने के लिए लिखी जाती है वह सुनने में उतना अच्छा नहीं लगता मगर वह पढ़ने में अच्छा लगता है मैंने एक कवि सम्मेलन में एक कवयित्री को अपनी बात रखते देखा था जिनकी स्थिति ऐसी कविताओं की रचना करके भी निराशाजनक थी आप भी अपनी बात रख सकते हैं पर किसी कागज पर , सुनाकर लोगों के सामने अपना मजाक मत बनाइए क्योंकि जब हम काव्य पाठ करते हैं तो उसमें स्पष्टता और प्रवाह का होना आवश्यक है जो कविताओं में तुकांत शब्दों के प्रयोग से ही संभव हो सकता है कुछ चीजें पढने के लिए होतीं हैं और कुछ सुनने के लिए ।
Thought:-
तुकांत शब्द से सजी कविता सुनने में अच्छे लगते हैं और केवल भावनाओं को रखने वाली कविताएं पढ़ने में अच्छी लगती हैं ।