कविता:- शहादत का वादा
एक रेत का घरौंदा कितना अच्छा होता है
पर एक हल्की हवा के झोंके से वह गिर जाता है
मुझे अच्छी चीजों को का नष्ट होना अच्छा नहीं लगता है
जैसे कोई फूल कितना सच्चा होता है
एक दिन के लिए ही सही उसकी खुशबू कितना अच्छा होता है
जिन्हें वादियों में वो बिखेर जाता है
जैसे कोई फूल खूबसूरत श्वास छोड़ जाता है
वैसे कोई रेत का घरौंदा किसी की आंखों में अपना छाप छोड़ जाता है
उनका इस तरह निर्मोही होना खुदा का इबादत है
फूलों का श्वास और घरौंदों का छाप छोड़ना उनका सच्चा शहादत है
क्या हम उस फूल की खुशबू की तरह नहीं हो सकते ?
जो वादियों में जीने के लिए श्वास छोड़ जाता है
क्या हम उस घरौंदा की तरह नहीं हो सकते हैं
जो किसी के आंखों में खूबसूरत छाप छोड़ जाता है
हमें इसके लिए उस रेत के घरौंदे से सीखना होगा
जो हल्की सी धूप से मोम की तरह पिघल जाता है
हमें उस फूल की खुशबू से कुछ सीखना होगा
जो हवा की हल्की छुअन से वादियों में निकल जाता है
उसके पास तो समय कम होता है और हमारे पास ज्यादा
क्या हम कर सकते हैं उस घरौंदा और एक फूल की तरह
कभी कहीं जाने से पहले खुशबू और छाप छोड़ने का बाद
क्या हम कर सकते हैं शहादत का वादा ?
About its creation:-
एक बार जब मैं अपने दुकान पर बैठा था दुकान के सामने मैदान में कुछ मजदूर काम कर रहे थे तभी मेरी नजर ट्रैक्टर में फावड़े की सहायता से डाल रहे मजदूरों के फावड़े पर पड़ी और साथ ही उस फावड़े से निकलते हुए बालू पर जो अपनी शीतल प्रकृति के कारण फावड़े से निकलते हुए फावड़े सी एक सुंदर तस्वीर बना रही थी और ट्रैक्टर के डाली में गिरने से भंगुर के समान धीमी गति से नष्ट हो जा रही थी मैं इस दृश्य को बस देखे ही जा रहा था और मेरी नजर उस से हटती ही नहीं थी क्योंकि यह दृश्य मेरे लिए अद्भुत था मैं इसे देखकर मन ही मन पुलकित हो रहा था तभी अचानक मेरे भैया की गाड़ी दुकान के सामने रुकी अब मेरे कोचिंग जाने का समय था इसलिए मैं अपनी साइकिल लेकर तेजी से घर की ओर बढ़ा और मैंने सोचा वह दृश्य मेरे लिए अविस्मरणीय है होना चाहिए और मैंने साइकिल चलाते हुए ही दो-तीन वाक्य मन में सोच लिया था पर यह पूरी तरह से वह नहीं था जिसे मैंने अपनी कविता ने लिखा है मैंने सिर्फ उस दृश्य का वर्णन करने का मन बनाया था पर मेरे उमंगों को कुछ और ही मंजूर था जिस ने मेरे कलम को मोड़ दिया और उस दृश्य के वर्णन के बजाए उसके दी जा रही सीख पर मेरा ध्यान चला गया।
अपने देश के लिए शहादत की चाह तो एक पुष्प भी रखती है इसकी व्याख्या पुष्प की अभिलाषा में माखनलाल चतुर्वेदी जी ने किया है-
“चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गुथा जाऊं,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि, डाला जाऊं,
चाह नहीं देवों के सर पर चढूं भाग्य पर इठलाऊं,
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढाने जिस पथ जावें वीर अनेक”
Thought:-
अपने मन में देश प्रेम की भावना रखना हमें हर तरह से एक अच्छा नागरिक बनने के लिए प्रेरित करता है और जिस देश के नागरिक अच्छे होते हैं उस देश की तरक्की निश्चित रूप से होती है ।
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