कविता:-ऐसे ही तो शब्द हैं कम
कही हुई चीजों को हम कहेंगे
कम कहेंगे कुछ कम कहेंगे
कहेंगे कम बताएंगे ज्यादा
यही हमारा है आप सब से वादा
कहे हैं वो जो हम कहेंगे
कम कहेंगे कुछ कम कहेंगे
आप ही बताओ कुछ और है क्या
मेरे कहने के लिए कुछ और है क्या
शब्द उन्हीं के हैं और कुछ भी नहीं
मेरे कहने के लिए बस है यही
कहूंगा आज मैं जरूर कहूंगा
मुझे मत रोको मैं हुजूर कहूंगा
कहने के लिए ऐसे ही तो शब्द है कम
पहले वो कहेंगे तो कब कहेंगे हम
कही हुई चीजों को हम कहेंगे
कम कहेंगे कुछ कम कहेंगे ।।
About its creation:-
मैंने शब्दों को कम बताया इसका तात्पर्य यही है कि जब कभी हम कुछ लिखने बैठते हैं तो हमें किसी दूसरे कवि के शब्द, वाक्य और कविता के शीर्षक हमारे मन मस्तिष्क में इस प्रकार घूमने लगते हैं मानो मन मस्तिष्क में धुंद चल रहा हो समझ में नहीं आता है कि किस शब्द से हम अपनी कविता की शुरूआत करें और किससे खत्म करें ।
मैं मानता हूँ वाकई लोगों को पढ़ने से ही एक कवि और एक लेखक निखरता है मगर ज्यादा पढने से हम कहीं खोने का एहसास करते हैं लेखन में निखार लाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज है सही शब्द का चुनाव इस आधुनिक युग में जहां जेहन में भाषाओं का भरमार लगा हो वहाँ किसी लेखक या कवि को शुद्ध भाषा का शब्द उन्हें किताब ही दे सकता है इसलिए उन्हें किताब पढना चाहिए पर साथ ही उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए की उनकी भी रचनाएं भी किसी के द्वारा पढ़ी जाएंगी इसलिए उन्हें लेखन का अपना तरीका बनाना चाहिए ना की नकल जहां तक मेरा मानना है वही लेखक या कवि अपने लेखनी में सफल हो पाते हैं जो लेखन का एक अपना तरीका बनाते हैं।
Thought:-
लेखक को लेखक के द्वारा अपनाया गया उसके लिखने का अपना तरीका ही महान बनाता है।
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