कविता:- मेरी नजरों में मेरी माँ
माँ मुझे तुमसे प्यार है
माँ तेरी एक मुस्कान में ही मेरा पूरा संसार है
माँ इस संसार में आया हूं मैं बस तेरे ही आस पर
इस मतलबी दुनिया के नहीं बस तुम पर ही विश्वास कर
माँ तुम क्या हो?
मेरे चेहरे पर पड़े गर्मी के ओंश के बूंद को छूकर उड़ा दे
और जो एक ठंडा सा एहसास दे दे
अपने आंचल से निकला हुआ वह हवा हो तुम
मेरे हर दर्द की दवा हो तुम
जो दवा से ठीक ना हो उस मर्ज को ठीक करने वाली दुआ हो तुम
माँ तुम क्या हो?
मां मेरी जागती हुई आंखों से देखा हुआ सपना हो तुम
ये संसार तो झूठा है बस मेरा एक अपना हो तुम
माँ तुम क्या?
मेरे थाली में परोसा हुआ खाना हो तुम
अपना पेट काटकर मुझे देती हो जो वो आखिरी निवाला हो तुम
माँ तुम क्या हो?
जिस वैद्य की विद्या से बीमारियां कोसों दूर रहती है
उस वैद्य की अभिलाषा हो तुम
मेरे चेहरे पर दूर से आती है जो मुस्कुराहट
उसकी एक आशा हो तुम
मैं मूर्ख एक बार फिर पूछता हूँ
माँ तुम क्या हो?
मेरे दिल से निकला हुआ एक प्यारा सा शब्द
माँ हो तुम !
About its creation:-
कवि रहते हुए मैंने बहुत दिनों से एक बात सोच रखी थी कि हर रिश्ते पर मैं अपने कलम से एक कविता गढ़ूंगा । मैंने सबसे पहले अपनी माँ पर एक कविता लिखना चाहा था पर नहीं लिख पाया रिश्तों के इस संबंध में सबसे पहले मैंने अपने भैया पर कविता लिखी फिर अपने पिता पर और अब अपनी माँ पर ।
मैंने अपने पूरे जीवन में घर के सदस्यों में सबसे ज्यादा पागल अपनी माँ को पाया है उनका हर फैसला मूर्खता पूर्ण पर हमारे लिए हितकारी होता था उनका वो हमारे बचपना करने पर खुद बच्चा बन जाना किसी खिलौने को दिलाने के लिए पिता से बच्चों की तरह झगड़ना । जब एक माँ अपने बच्चों से प्यार करती है तब इस संसार को देखने में लगता है कि यह भावुक पल किसी मूर्ख स्त्री का है पर वह पल एक स्त्री एक माँ का अपने बच्चे के प्रति प्यार होता है प्यार कोई मजाकिया आँखों देख कर हंसने वाला पल नहीं होता है और इस बात का आभास इंसान को तब होता है जब उसके मजाकिया आंखों से प्यार में पड़कर आंसू गिरने लगते हैं तब उसे प्यार का मतलब समझ में आता है
हर इंसान को अपने थाली में बचे कुछ निवालों को अपने सामने बैठे भूखे बच्चे को खिलाना चाहिए इसका एक मतलब यह भी हो सकता है कि आपका पेट कुछ खानों से कभी नहीं भरेगा जबकि एक बच्चे का पेट थोड़े से रोटी के टुकड़े से भी भर सकता है और यदि इस काम को एक माँ के द्वारा किया जाता है तो एक बेटे के नजर में उसकी इज्जत दुगनी हो जाती है मेरे पास इस कविता को लिखने के लिए यही वाक्य था कि कैसे कोई मां अपने बेटे को खिलाने के लिए आखिरी निवाले तक जाने से पहले अपने हाथों को रोक लेती है ।
Thought:- हम किसी रिश्ते को कितना चाहते हैं इसकी गहराई को हमारे द्वारा उस रिश्ते को पुकारा गया शब्द तय नहीं कर सकता है नहीं तो हमारा माँ को पागल कहना भी गलत होता ।
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