कविता:- मेरे पहले प्रशंसक ‘मुरारी भैया’
वो उमंगें मेरी ओर आ चुकी है
मेरा मन गीतों को गा चुकी है
पहले मैंने सोचा सुनाऊं उन्हें क्या फर्क है
सुन लेंगे मेरी प्रशंसा वो किसी दूसरे के मुंह से क्या हर्ज है
फिर मैंने एक पल के लिए सोचा कि हर्ज ?
मेरी कला जन्मी हैं उन्हीं की सच्ची प्रशंसा से तो मेरा क्या फर्ज है?
मेरी उमंगों का एकमात्र जरिया है वो,
मेरी कला उन्हीं से निकला हुआ एक बूंद है
और कलाओं का दरिया है वो
एक बार की बात है जब मेरी कला अंकुरित हुई
जैसे होती है पौधों को पानी यों की
मेरी कलाओं को उनकी प्रशंसाओं की जरूरत हुई
मैं क्या सुनाऊं उन्हें मेरी उमंगों को जान जाते हैं वो,
यदि मैंने अपनी कविताओं को उनको सुनाएं बिना
किसी और को सुनाया तो बुरा मान जाते हैं वो
वो मेरे पहले प्रशंसक हैं और मैं उनका
मेरी कलाओं को इतनी उन्नति दे भगवान
मैं बन जाऊं आखिरी प्रशंसनीय कलाकार उनका ।
About its creation:-
किसी ने कहा है कि जिस घर में कला प्रेमियों की कमी नहीं होती अक्सर उस घर में कलाकार पैदा हो जाते हैं ‘मुरारी’ मेरे बड़े भैया का नाम है इससे पहले और बाद मेरी कला की प्रशंसा जाने कितने ही लोगों ने किया मुझे याद नहीं पर जिस स्वतंत्रता को मैंने अपने भैया के मुंह से प्रशंसा सुनने के बाद महसूस किया है उतनी स्वतंत्रता मैंने कभी किसी के मुख से प्रशंसा सुनकर महसूस नहीं किया है क्योंकि वह मेरे लिए बचपन में अमरीश पुरी के समान थे जिनसे में सबसे ज्यादा डरता था वह मुझे स्कूल भेजने के लिए पाताल से भी ढूंढ निकालते थे उन्हें यह भी पता हो जाता था कि मैं इमली के पेड़ पर छुप जाता था मुझे मालूम है किसी भी पिता या पिता समान भाई का यह कर्तव्य होती है कि उन्हें अपने बेटे और भाई को एक अच्छी नौकरी पर आसीन करना होता है पर उन्हें यह भी समझना पड़ेगा कि उन्हें अपने बेटों को सिर्फ पेट पालने वाली नौकरी के पीछे नहीं भगाना चाहिए उन्हें ऐसे चीज को अपने बेटे को करने के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे आगे चलकर वह बेटा एक अच्छा प्रदर्शनकारी बन सके उन्हें अपने बेटे और भाई को वहाँ ले जाने का प्रयास करना चाहिए जहाँ उसकी रुचि हो आप सिर्फ एक बार उसकी रुचियों की प्रशंसा करके देखिए और फिर देखिए कि आपका बेटा क्या करता है ।
Thought:-
किसी का प्रशंसा करना कार्य को बढ़ावा देना होता है और घर में प्रशंसकों का होना घर में कलाकारों को पनपने का मौका देना होता है
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