कविता:-अपने लक्ष्य को पहचान
वो जंग नहीं है तुम्हारी तुम पागल मत बन
बस दुनिया को दिखा कि तू भी है इस जंग में
और तुम्हें जो बनना है वो बन
बस तुम पागल मत बन
वो जंग नहीं है तुम्हारी तुम पागल मत बन
बहुत मिलेंगे तुम्हें ललकारने वाले
मैं जानता हूँ तू वीर है
ओ ! लक्ष्य को खोकर स्वभावी हारने वाले
तू सुन मत दूसरों की सिर्फ लक्ष्य को साधे जा
तुम्हारी सफलता तुम्हारे सपनों में है
उसमें इच्छा के फूल बांधे जा
इच्छा तो सीखने की पहचान होती है
तू धारण कर ले उस इच्छा शक्ति को
जिसके उमंगों से उड़ान होती है
दुनियाँ के जंग में हार जाना तुझे गम नहीं होगा
अपने लक्ष्य को तू देख
एक दिन तू भी किसी से कम नहीं होगा ।।
About its creation:-
आज प्रतियोगिताओं का युग चल निकला है कुछ लोगों का कहना है कि आज की इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में किसी को जिंदगी जीने की फुर्सत नहीं है जिसे देखो बस प्रतियोगिता में लगा है तब प्रश्न यह है कि क्या जिंदगी कोई नहीं जीता है पर मेरा मानना है कि जिंदगी आज भी लोग जीते हैं कौन ? वही जो प्रतियोगिता जीतते हैं । प्रतियोगिता कौन जीतता है ? वही जिसकी वह प्रतियोगिता होती है वही प्रतियोगिता जीतते हैं और कुछ हारने वाले भी जिंदगी जी लेते हैं क्योंकि वह समझ जाते हैं कि जिस प्रतियोगिता में वो हारे हैं वह उनकी नहीं जितने वाले के अपने जीवन का अभिन्न प्रतियोगिता था इसलिए वह अपनी प्रतियोगिता पर वापस लग जाते हैं जिंदगी वह क्या जीयेंगे जो हर प्रतियोगिता को अपनी प्रतियोगिता समझते फिरेंगे हर युद्ध में इंसान को नहीं पङना चाहिए जो इस बात को नहीं समझता वह सिर्फ दुनिया के चक्कर लगाता रह जाता है उसके हाथ कुछ भी नहीं लगते हैं । सबसे पहले हर इंसान को अपने उस लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिसे वह समझता है, आत्म विश्वास के साथ कहता है कि हाँ मैं इसे कर लूँगा और उन्हें दूसरों की सफलता से विचलित नहीं होना चाहिए ।
Thought:-
हर युद्ध में इंसान को नहीं पढ़ना चाहिए जो इस बात को नहीं समझ पाता है दुनिया के चक्कर लगाता है रह जाता है ।
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