कविता:-बेटियों से अच्छा कोई और नहीं है
बेटियाँ हो तुम बेटियों पर सामत आयी है
कह देना तुम बहनों से बेटियों पर कयामत आयी है
एक बोझ है उनके कंधों पर उसे वह उतारेगी
किसी के टुकड़ों पर नहीं खुद अपना भविष्य संवारेगी
उसे प्रीत की रीत को बदलना होगा
लड़कियां दहेज नहीं लेती इस रीत को बदलना होगा
उन्हें दिखाना होगा कि वह पिता का बोझ नहीं है
उन्हें दिखाना होगा कि बेटियों से अच्छा कोई और नहीं है
बेटियाँ परायी होती है या अपना
उस बाप से पूछो जो बेटों को चाहते हुए भी
बेच देता है उन्हें और उनका सारा सपना ।।
About its creation:-
आज अचानक जैसे घर का माहौल मातम सा बन गया हो इस आधुनिक भारत में भी किसी के दबे मुंह से सांत्वना और प्रशंसा के रूप में बस इतनी ही बात निकली हो कि-
“सब भगवान के खेल हकय एकरा में पतोहू के कौन दोष हय”
आज घर में तीसरी लक्ष्मी ने जन्म लिया है पर घर में किसी के चेहरे पर खुशी नहीं सभी की इच्छा और कामना यही थी कि इस बार बेटा ही हो पर हुआ वही जो नियति को मंजूर था ये खबर कहीं से टकराती हुई मेरे कानों तक पहुंची कि आज मेरी एक भांजी और बढ़ गई है मैं पहले ही दो भांजियों का मामा था और इस खबर को सुनकर और खुश हो गया पर मैं इस बात से हैरान था कि अशिक्षित बाप और पड़ोसियों को खुशी का एहसास कैसे होगा जो अपने समाज में बेटियों को सिर्फ दहेज का पुतला मानते हों इस बात को सोच कर मेरा मन विकृत होने लगा और मैंने शांत मन से सोचा कि आज से बेटियों पर कयामत आ गई है उनका संघर्ष दुगना हो चला है क्योंकि ना सिर्फ उन्हें अपने आप को साबित करना होगा बल्कि उन्हें अपने होने की खुशी का एहसास भी लोगों को दिलाना होगा ।
Thought:-जब तक हमारा समाज कुरीतियों और दहेज प्रथा से मुक्त नहीं होगा तब तक लोग उस समाज में, उस देश में लिंग भेदभाव करना नहीं छोड़ेंगें ।