Sunday, May 17, 2020

बेटियों से अच्छा कोई और नहीं है ।

कविता:-बेटियों से अच्छा कोई और नहीं है 


बेटियाँ हो तुम बेटियों पर सामत आयी है 

कह देना तुम बहनों से बेटियों पर कयामत आयी है 


एक बोझ है उनके कंधों पर उसे वह उतारेगी  

किसी के टुकड़ों पर नहीं खुद अपना भविष्य संवारेगी 


उसे प्रीत की रीत को बदलना होगा 

लड़कियां दहेज नहीं लेती इस रीत को बदलना होगा 


उन्हें दिखाना होगा कि वह पिता का बोझ नहीं है 

उन्हें दिखाना होगा कि बेटियों से अच्छा कोई और नहीं है  


बेटियाँ परायी होती है या अपना 

उस बाप से पूछो जो बेटों को चाहते हुए भी 

बेच देता है उन्हें और उनका सारा सपना ।।


About its creation:- 

आज अचानक जैसे घर का माहौल मातम सा बन गया हो इस आधुनिक भारत में भी किसी के दबे मुंह से सांत्वना और प्रशंसा के रूप में बस इतनी ही बात निकली हो कि- 

       “सब भगवान के खेल हकय एकरा में पतोहू के कौन दोष हय”

आज घर में तीसरी लक्ष्मी ने जन्म लिया है पर घर में किसी के चेहरे पर खुशी नहीं सभी की इच्छा और कामना यही थी कि इस बार बेटा ही हो पर हुआ  वही जो नियति को मंजूर था ये खबर कहीं से टकराती हुई मेरे कानों तक पहुंची कि आज मेरी एक भांजी और बढ़ गई है मैं पहले ही दो भांजियों का मामा था और इस खबर को सुनकर और खुश हो गया पर मैं इस बात से हैरान था कि अशिक्षित बाप और पड़ोसियों को खुशी का एहसास कैसे होगा जो अपने समाज में बेटियों को सिर्फ दहेज का पुतला मानते हों इस बात को सोच कर मेरा मन विकृत होने लगा और मैंने शांत मन से सोचा कि आज से बेटियों पर कयामत आ गई है उनका संघर्ष दुगना हो चला है क्योंकि ना सिर्फ उन्हें अपने आप को साबित करना होगा बल्कि उन्हें अपने होने की खुशी का एहसास भी लोगों को दिलाना होगा ।

Thought:-जब तक हमारा समाज कुरीतियों और दहेज प्रथा से मुक्त नहीं होगा तब तक लोग उस समाज में, उस देश में लिंग भेदभाव करना नहीं छोड़ेंगें ।

मेरी नजरों में मेरी माँ

कविता:- मेरी नजरों में मेरी माँ 


माँ मुझे तुमसे प्यार है 

माँ तेरी एक मुस्कान में ही मेरा पूरा संसार है 

माँ इस संसार में आया हूं मैं बस तेरे ही आस पर

इस मतलबी दुनिया के नहीं बस तुम पर ही विश्वास कर 


माँ तुम क्या हो? 

मेरे चेहरे पर पड़े गर्मी के ओंश के बूंद को छूकर उड़ा दे 

और जो एक ठंडा सा एहसास दे दे 

अपने आंचल से निकला हुआ वह हवा हो तुम 

मेरे हर दर्द की दवा हो तुम 

जो दवा से ठीक ना हो उस मर्ज को ठीक करने वाली दुआ हो तुम 


माँ तुम क्या हो? 

मां मेरी जागती हुई आंखों से देखा हुआ सपना हो तुम 

ये संसार तो झूठा है बस मेरा एक अपना हो तुम 


माँ तुम क्या? 

मेरे थाली में परोसा हुआ खाना हो तुम 

अपना पेट काटकर मुझे देती हो जो वो आखिरी निवाला हो तुम 

माँ तुम क्या हो? 

जिस वैद्य की विद्या से बीमारियां कोसों दूर रहती है 

उस वैद्य की अभिलाषा हो तुम 

मेरे चेहरे पर दूर से आती है जो मुस्कुराहट 

उसकी एक आशा हो तुम 

मैं मूर्ख एक बार फिर पूछता हूँ  

माँ तुम क्या हो? 

मेरे दिल से निकला हुआ एक प्यारा सा शब्द 

माँ हो तुम !



About its creation:- 

कवि रहते हुए मैंने बहुत दिनों से एक बात सोच रखी थी कि हर रिश्ते पर मैं अपने कलम से एक कविता गढ़ूंगा । मैंने सबसे पहले अपनी माँ पर एक कविता लिखना चाहा था पर नहीं लिख पाया रिश्तों के इस संबंध में सबसे पहले मैंने अपने भैया पर कविता लिखी फिर अपने पिता पर और अब अपनी माँ पर ।

      मैंने अपने पूरे जीवन में घर के सदस्यों में सबसे ज्यादा पागल अपनी माँ को पाया है उनका हर फैसला मूर्खता पूर्ण पर हमारे लिए हितकारी होता था उनका वो हमारे बचपना करने पर खुद बच्चा बन जाना किसी खिलौने को दिलाने के लिए पिता से बच्चों की तरह झगड़ना । जब एक माँ अपने बच्चों से प्यार करती है तब इस संसार को देखने में लगता है कि यह भावुक पल किसी मूर्ख स्त्री का है पर वह पल एक स्त्री एक माँ का अपने बच्चे के प्रति प्यार होता है प्यार कोई मजाकिया आँखों  देख कर हंसने वाला पल नहीं होता है और इस बात का आभास इंसान को तब होता है जब उसके मजाकिया आंखों से प्यार में पड़कर आंसू गिरने लगते हैं तब उसे प्यार का मतलब समझ में आता है

 हर इंसान को अपने थाली में बचे कुछ निवालों को अपने सामने बैठे भूखे बच्चे को खिलाना चाहिए इसका एक मतलब यह भी हो सकता है कि आपका पेट कुछ खानों से कभी नहीं भरेगा जबकि एक बच्चे का पेट थोड़े से रोटी के टुकड़े से भी भर सकता है और यदि इस काम को एक माँ के द्वारा किया जाता है तो एक बेटे के नजर में उसकी इज्जत दुगनी हो जाती है मेरे पास इस कविता को लिखने के लिए यही वाक्य था कि कैसे कोई मां अपने बेटे को खिलाने के लिए आखिरी निवाले तक जाने से पहले अपने हाथों को रोक लेती है ।


Thought:- हम किसी रिश्ते को कितना चाहते हैं इसकी गहराई को हमारे द्वारा उस रिश्ते को पुकारा गया शब्द तय नहीं कर सकता है नहीं तो हमारा माँ को पागल कहना भी गलत होता ।

उन रास्तों को क्यों भूलें ?

कविता:- उन रास्तों को क्यों भूलें

जिस मंजिल का सफर सुहाना होगा 

उस मंजिल का कौन नहीं दीवाना होगा 

जिस मंजिल का सफर सुहाना होगा 

उस मंजिल पर ठहर कर क्यों समय गवाना होगा 

उन रास्तों पर हम चलते जाएंगे हंसी खुशी 

मंजिल तो सिर्फ उन रास्तों पर चलने का बहाना होगा 

वह मंजिल बहुत सुहाना होगा - वह मंजिल बहुत सुहाना होगा 

डगमगायेंगे हमारे पैर झूमेंगे हम मस्ती में 

उस मंजिल की हम क्यों फिक्र करेंगे 

जो मिलेंगे हमें हर बस्ती में 

बस झूमेंगे हम मस्ती में 

ठहरेंगे हम कभी नहीं इन रास्तों में ना हमारा कहीं पड़ाव होगा 

हम चलते जाएंगे उन रास्तों पर मंजिल पर भी नहीं हमारा ठहरा होगा सोचेंगे हम कभी नहीं हमें जाना कहां है 

ना हम पूछेंगे किसी से कि हमारे मंजिल का ठिकाना कहां है 

इस मंजिल से दूर कहीं कोई और भी तो ठिकाना होगा 

फिर से चलेंगे हम उस मंजिल पर 

जिस मंजिल का सफर सुहाना होगा 

उस मंजिल का कौन नहीं दीवाना होगा 

हम तो बस सफर को चाहेंगे 

उस मंजिल का कौन दिवाना होगा ?

 


About its creation:- 

किसी ऐसे व्यक्ति से बात कीजिए जो आपके आकर्षण का कारण बना हो,

आपका उससे क्या रिश्ता है यह आपको सोचने की जरूरत नहीं है आप सिर्फ यह सोचिए कि आपको उससे बात करने में कैसा लग रहा है आपका उसके प्रति सच्ची आस्था एक विश्वास होना चाहिए और उसका आप के प्रति। आप कुछ दिनों के बाद अपने विश्वास को परखने के लिए

रिश्ते की सबसे निचली डोर के गांठ पर अपना हाथ रखिए वो अपने हाथ को उस डोर के पीछे खिंचेगी यदि वह सच्ची और अच्छी होगी तब वह आपको अपने रिश्तों की सीमा बताएगी वह यह नहीं पूछेगी कि आप उसके साथ कितने कदम चलना चाहते हैं वह सिर्फ इतना बताएगी कि आप कितना दूर तक इस रिश्ते को ले जाना चाहेंगे क्योंकि वह तो उसी वक्त  अपनी सीमा आपको बता चुकी होगी यदि आप सच्चे होंगे तब आप भी अपने रिश्तों की मर्यादा से ज्यादा नहीं चाहेंगे।

 आपका उससे बात करना कितने ही लोगों को अच्छा नहीं लगेगा और अच्छा भी क्यों लगे ? क्या आप उसे उतना जानना चाहते हैं जितना कि लोग आप दोनों को तब आपका पूरा हक है उसे आप बदनाम कीजिए आपको पूरा हक है क्योंकि तब उसकी बदनामी आपसे जुड़ी होगी पर आपको ये हक नहीं है कि आप किसी को इसलिए बदनाम करें कि आप उसे चाहते हैं अगर आप अपने पिछे मुड़कर देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि चाहने वालों की भीड़ में आप अकेले नहीं और भी कई होंगे इसलिए आपको उसकी इज्जत का ख्याल रखकर अपना स्वर्ग सजाने की बात करनी होगी । स्वर्ग किस बात की हो ? स्वर्ग आपके रिश्तों की सीमा की हो जिस सीमा में आपके रिश्तों की उम्र हमेशा लंबी रहे आप हर रिश्तों को एक दोस्ती का नाम दीजिए और आपको जो भी कहना हो खुलकर कहिए क्योंकि दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है जिसमें हर बात को सुनने की क्षमता होती है इस कविता में दो ऐसे साथी प्रेरणा के श्रोत बनें हैं जो सिर्फ मंजिल की ख्वाहिश रखते हैं क्योंकि वो हमेशा दोस्त बने रहना चाहते हैं । 

Thought:- 

रिश्ता कोई भी हो यदि हम उसमें दोस्ती का भाव जोड़कर देखें तो हर रिश्ते में रिश्तों से जुड़े व्यक्ति के व्यक्तित्व को जाने का मौका मिलेगा।ञ

मेरे उम्र की लड़कियां

कविता:- मेरे उम्र की लड़कियां 


मुझे देख कर आज मेरे उम्र की हर लड़कियां मुस्कुरातीं है 

उसकी निगाहें मेरी तलाश में कभी चौराहों पर 

तो कभी मेरी छत की बालकनी तक चली आती है 


जब कभी करीब से वो गुजरें 

तो ऐसा नहीं है कि वो हमसे नजरें चुराती है 

बल्कि वह अपनी निगाहें हमारी आंखों में डाल कर मुसकुरातीं है 


यह आग सिर्फ उनके सीने में ही नहीं 

कभी उनके दीदार की चाहत मेरे दिल को भी जला जाता है 

इसलिए तो मेरा दिल कभी मुझे सड़कों पर निकाल लाता है 


उनके होंठों पर एक अलग सी मुस्कान होती है 

जब मुसकुरातीं हैं वो तो उनके एक मुसकान पर 

फ़िदा सारा जहान होती है  


मेरे उम्र की हर लड़कियों का मुझ पर एक इल्जाम होता है 

मेरे मुसकुराने पर हमें दीवाना कहना उनका काम होता है।।



About its creation:-

उमंगों का कारण कोई बन जाता है जिससे कविता की रचना हो जाती है एक दिन की बात है जब सुबह अचानक मेरी नजर एक लड़की पर पड़ी मैं उसे जानता था इतना तो नहीं कि मैंने उससे कभी बात की हो उससे मेरा नाता सिर्फ एक मुस्कान का था इसलिए उसने मुसकुराया जब मैंने उसे मुसकुराते हुए देखा तब मेरे चेहरे के चारों तरफ उमंगों की एक लहर दौड़ पड़ी उमंगों का जोरदार धमाका हम निम्न शायरी से लगा सकते हैं  

                 “हमारे मिलने पर मैंने एक शायरी लिखी है 

                     कल से मैंने एक डायरी लिखी है 

                     उस डायरी में मैंने तेरा नाम लिखा है 

                    मुहब्बत के दीवानों को पैगाम लिखा है 

    आज से और अब से कोई दीवाना नहीं लेगा लैला-मजनू का नाम 

     क्योंकि उनसे भी बुरा मैंने अपनी मुहब्बत का अंजाम लिखा है”

 

यह कवियों की प्रकृति होती है की उसे अपनी उमंगों को भूलना पड़ता है या फिर वह खुद ही विस्मरणीय हो जाती हैं।

लड़कियां हमारे जीवन में एक प्रेरणा की तरह होती हैं अगर हमारा उद्देश्य है कि हमें पूरी दुनियाँ पर विजय करना है तो यह केवल उनकी प्रेरणा से संभव है अगर हम अपने मन में यह विश्वास कर लें कि उनका साथ हमें मिल जाएगा तो हम पूरी दुनियाँ पर विजय पा लेंगे और यह कोई ऐसी वैसी ताकत नहीं होगी यह उनके प्रति हमारे चाहत की ताकत होगी हमारे मुहब्बत की ताकत होगी और मुहब्बत बहुत ताकतवर होता है अगर हम चाहेंगे कि हमें बस उनका साथ चाहिए और हम अपने सभी उद्देश्यों को छोड़कर उनके पीछे लग जायें तो यह हमारे लिए रास्ते से भटक जाने जैसा होगा कहते हैं प्यार का प्रमाण नहीं होता है ना हो सही मगर इम्तहान जरूर होता है और इस इम्तहान को देने के लिए कौन कैसा रास्ता अपनाता है यह देखना जरूरी होता है ।



Thought:-किसी को देखकर मुसकुराना गलत नहीं है मुसकुराना शांति का प्रतीक है यह नज़रिए पर निर्भर करता है कि आप किस नजर से देख कर किसी को मुसकुराते हैं नजरे सब बयां कर देती हैं।

अपने लक्ष्य को पहचान

कविता:-अपने लक्ष्य को पहचान 


वो जंग नहीं है तुम्हारी तुम पागल मत बन 

बस दुनिया को दिखा कि तू भी है इस जंग में 

और तुम्हें जो बनना है वो बन 

बस तुम पागल मत बन 

वो जंग नहीं है तुम्हारी तुम पागल मत बन 


बहुत मिलेंगे तुम्हें ललकारने वाले 

मैं जानता हूँ तू वीर है 

ओ ! लक्ष्य को खोकर स्वभावी हारने वाले 


तू सुन मत दूसरों की सिर्फ लक्ष्य को साधे जा 

तुम्हारी सफलता तुम्हारे सपनों में है 

उसमें इच्छा के फूल बांधे जा 



इच्छा तो सीखने की पहचान होती है 

तू धारण कर ले उस इच्छा शक्ति को 

जिसके उमंगों से उड़ान होती है 

दुनियाँ के जंग में हार जाना तुझे गम नहीं होगा 

अपने लक्ष्य को तू देख 

एक दिन तू भी किसी से कम नहीं होगा ।। 




About its creation:-

आज प्रतियोगिताओं का युग चल निकला है कुछ लोगों का कहना है कि आज की इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में किसी को जिंदगी जीने की फुर्सत नहीं है जिसे देखो बस प्रतियोगिता में लगा है तब प्रश्न यह है कि क्या जिंदगी कोई नहीं जीता है पर मेरा मानना है कि जिंदगी आज भी लोग जीते हैं कौन ? वही जो प्रतियोगिता जीतते हैं ।  प्रतियोगिता कौन जीतता है ? वही जिसकी वह प्रतियोगिता होती है वही प्रतियोगिता जीतते हैं और कुछ हारने वाले भी जिंदगी जी लेते हैं क्योंकि वह समझ जाते हैं कि जिस प्रतियोगिता में वो हारे हैं वह उनकी नहीं जितने वाले के अपने जीवन का अभिन्न प्रतियोगिता था इसलिए वह अपनी प्रतियोगिता पर वापस लग जाते हैं जिंदगी वह क्या जीयेंगे जो हर प्रतियोगिता को अपनी प्रतियोगिता समझते फिरेंगे हर युद्ध में इंसान को नहीं पङना चाहिए जो इस बात को नहीं समझता वह सिर्फ दुनिया के चक्कर लगाता रह जाता  है उसके हाथ कुछ भी नहीं लगते हैं । सबसे पहले हर इंसान को अपने उस लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिसे वह समझता है, आत्म विश्वास के साथ कहता है कि हाँ मैं इसे कर लूँगा और उन्हें दूसरों की सफलता से विचलित नहीं होना चाहिए ।





Thought:- 

हर युद्ध में इंसान को नहीं पढ़ना चाहिए जो इस बात को नहीं समझ पाता है दुनिया के चक्कर लगाता है रह जाता है ।

मेरे पहले प्रशंसक मुरारी भैया !

कविता:- मेरे पहले प्रशंसक ‘मुरारी भैया’


 वो उमंगें मेरी ओर आ चुकी है 

मेरा मन गीतों को गा चुकी है 


पहले मैंने सोचा सुनाऊं उन्हें क्या फर्क है 

सुन लेंगे मेरी प्रशंसा वो किसी दूसरे के मुंह से क्या हर्ज है 


फिर मैंने एक पल के लिए सोचा कि हर्ज ? 

मेरी कला जन्मी हैं उन्हीं  की सच्ची प्रशंसा से तो मेरा क्या फर्ज है?


मेरी उमंगों का एकमात्र जरिया है वो,

मेरी कला उन्हीं से निकला हुआ एक बूंद है 

और कलाओं का दरिया है वो 


एक बार की बात है जब मेरी कला अंकुरित हुई 

जैसे होती है पौधों को पानी यों की 

मेरी कलाओं को उनकी प्रशंसाओं की जरूरत हुई 


मैं क्या सुनाऊं उन्हें मेरी उमंगों को जान जाते हैं वो,  

यदि मैंने अपनी कविताओं को उनको सुनाएं बिना 

किसी और को सुनाया तो बुरा मान जाते हैं वो


वो मेरे पहले प्रशंसक हैं और मैं उनका 

मेरी कलाओं को इतनी उन्नति दे भगवान 

मैं बन जाऊं आखिरी प्रशंसनीय कलाकार उनका ।



About its creation:-

किसी ने कहा है कि जिस घर में कला प्रेमियों की कमी नहीं होती अक्सर उस घर में कलाकार पैदा हो जाते हैं ‘मुरारी’ मेरे बड़े भैया का नाम है इससे पहले और बाद मेरी कला की प्रशंसा जाने कितने ही लोगों ने किया मुझे याद नहीं पर जिस स्वतंत्रता को मैंने अपने भैया के मुंह से प्रशंसा सुनने के बाद महसूस किया है उतनी स्वतंत्रता मैंने कभी किसी के मुख से प्रशंसा सुनकर महसूस नहीं किया है क्योंकि वह मेरे लिए बचपन में अमरीश पुरी के समान थे जिनसे में सबसे ज्यादा डरता था वह मुझे स्कूल भेजने के लिए पाताल से भी ढूंढ निकालते थे उन्हें यह भी पता हो जाता था कि मैं इमली के पेड़ पर छुप जाता था मुझे मालूम है किसी भी पिता या पिता समान भाई का यह कर्तव्य होती है कि उन्हें अपने बेटे और भाई को एक अच्छी नौकरी पर आसीन करना होता है पर उन्हें यह भी समझना पड़ेगा कि उन्हें अपने बेटों को सिर्फ पेट पालने वाली नौकरी के पीछे नहीं भगाना चाहिए उन्हें ऐसे चीज को अपने बेटे को करने के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे आगे चलकर वह बेटा एक अच्छा प्रदर्शनकारी बन सके उन्हें अपने बेटे और भाई को वहाँ ले जाने का प्रयास करना चाहिए जहाँ उसकी रुचि हो आप सिर्फ एक बार उसकी रुचियों की प्रशंसा करके देखिए और फिर देखिए कि आपका बेटा क्या करता है ।



Thought:-

किसी का प्रशंसा करना कार्य को बढ़ावा देना होता है और घर में प्रशंसकों का होना घर में कलाकारों को पनपने का मौका देना होता है

ऐसे ही तो शब्द हैं कम !

कविता:-ऐसे ही तो शब्द हैं कम  


कही हुई चीजों को हम कहेंगे 

कम कहेंगे कुछ कम कहेंगे 

कहेंगे कम बताएंगे ज्यादा 

यही हमारा है आप सब से वादा 

कहे हैं वो जो हम कहेंगे 

कम कहेंगे कुछ कम कहेंगे 

आप ही बताओ कुछ और है क्या 

मेरे कहने के लिए कुछ और है क्या 

शब्द उन्हीं के हैं और कुछ भी नहीं 

मेरे कहने के लिए बस है यही 

कहूंगा आज मैं जरूर कहूंगा 

मुझे मत रोको मैं हुजूर कहूंगा 

कहने के लिए ऐसे ही तो शब्द है कम 

पहले वो कहेंगे तो कब कहेंगे हम 

कही हुई चीजों को हम कहेंगे 

कम कहेंगे कुछ कम कहेंगे ।।



About  its  creation:-                                      


 मैंने शब्दों को कम बताया इसका तात्पर्य यही है कि जब कभी हम कुछ लिखने बैठते हैं तो हमें किसी दूसरे कवि के शब्द, वाक्य और कविता के शीर्षक हमारे मन मस्तिष्क में इस प्रकार घूमने लगते हैं मानो मन मस्तिष्क में धुंद चल रहा हो समझ में नहीं आता है कि किस शब्द से हम अपनी कविता की शुरूआत करें और किससे खत्म करें । 

                                                                                       मैं मानता हूँ वाकई लोगों को पढ़ने से ही एक कवि और एक लेखक  निखरता है मगर ज्यादा पढने से हम कहीं खोने का एहसास करते हैं लेखन में निखार लाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज है सही शब्द का चुनाव  इस आधुनिक युग में जहां जेहन में भाषाओं का भरमार लगा हो वहाँ किसी लेखक या कवि को शुद्ध भाषा का शब्द उन्हें किताब ही दे सकता है इसलिए उन्हें किताब पढना चाहिए पर साथ ही उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए की उनकी भी रचनाएं भी किसी के द्वारा पढ़ी जाएंगी इसलिए उन्हें लेखन का अपना तरीका बनाना चाहिए ना की नकल जहां तक मेरा मानना है वही लेखक या कवि अपने लेखनी में सफल हो पाते हैं जो लेखन का एक अपना तरीका बनाते हैं।



Thought:-

 लेखक को लेखक के द्वारा अपनाया गया उसके लिखने का अपना तरीका ही महान बनाता है।

कमियों को कम मत समझना !

कविता:-कमियों को कम मत समझना 


कुछ कमियां हैं मुझमें 

पर मैं किसी से कम नहीं 

देखा है मैंने उनको भी 

जो घूमते हैं सड़कों पे 

कुछ कमियां होनी चाहिए थी उनमें भी 

उन्हें घूमने से बचाने में 

दिया नहीं मुझे धैर्य तो हर्ज क्या बोलो 

दिया है इन कमियों को तो इनका फर्ज क्या बोलो 

जोश में आकर कुछ लोग होश खो देते हैं 

होश में लाने के लिए उन्हें दो-चार लप्पड़ दोस्त दे देते हैं 

मिली हों अगर तुम्हें कुछ कमियां 

तो उसे कम मत समझना,

मिली हो तुम्हें उनकी वजह से दो चार गालियां 

तो उसे गम मत समझना 


About its creation:-

 मेरे गांव में मिथिलेश नाम के एक सहोदर है जो जन्म से दिव्यांग हैं मगर एक अच्छे चित्रकार, मूर्तिकार और शिक्षक हैं उनके उम्र के जितने भी लड़के थे या तो वो किसी शहर में कमाने चले गए या फिर कुछ लोग गांव में ही रह कर खेती मजदूरी के काम में जुट गए यह वही लोग थे जो दिन भर सड़क पर घूमते रहते थे जो चौराहों और चबूतरों  पर बेकार किसी लड़की के पीछे सिटी बजाते रहते थे आज वो अपनी मजदूरी से अपना और अपने बच्चों का पेट भरने में असमर्थ है यदि उन्होंने कुछ समय अपनी तरक्की में दिया होता तो आज यह दिन न देखना पड़ता ।

               मैं इस कविता का श्रेय उनको और एक और है जो मेरे इस कविता को लिखने से पहले इस कविता के आकर्षण का केंद्र बना जब मैं गांव गया तो मैंने एक अद्भुत करिश्मा देखा मैंने देखा कि मेरे साथ पढ़ने वाला राजीव झरझरिया( एक प्रकार का ठेला गाड़ी जो मिट्टी के तेल से चलता है) चला रहा था मैं देखकर आश्चर्यचकित हो गया मेरे आश्चर्य का कारण उसके दो पैर थे जो जन्म से ही निष्क्रिय थे इस शारीरिक अक्षमता के बावजूद लोग ऐसे काम कर सकते हैं मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था इसलिए मैंने इसे लिख दिया “कमियों को कम मत समझना” कविता लिखने का एकमात्र बस यही तरीका है कि आप किसी के कुंठा, पीङा और खुशी को अपने अंदर महसूस कीजिये आपने दुख में किसी और का दुख जोङ कर खुद को इतना दुखी बनाइये कि वो खुद व खुद कविता बन जाए ।



Thought:-

भगवान द्वारा मिली शारीरिक अक्षमता मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी नहीं है बल्कि वह मनुष्य सबसे ज्यादा कमजोर है जो अपने अंदर कमजोरियों को पनपने देता है।ञ

मेरा कवि और उसका कवित्व ।

कविता:-मेरा कवि और उसका कवित्व 


जिंदगी के इस दौड़ में मेरा कवित्व कहीं खो गया है 

मैं भी पूछूं मेरा कवि जाने क्यों यूँ सो गया है 

कविता लिखने की कोई उम्र नहीं उमंग होती है 

कैसे लिखे मेरा कवि उसकी जिंदगी में आजकल हुड़दंग होती है 


लिखता था मेरा कवि उन दिनों की बात है 

आनंदित होता था कहता था कि मेरी कविताएं हमारे साथ हैं  

लिखता था मेरा कवि उसका कोई उद्देश्य होता था 

लिखता था मेरा कवि पत्र-पत्रिकाओं का निर्देश होता था 

पैसों का भूखा नहीं मेरा कवि प्यार का भूखा था 

क्या कहूं लिखना छोड़ दिया मेरे कवि ने 

इस दौर में अखबार इश्तिहार का भूखा था 




जब लिखता था मेरा कवि उमंगों में जोश होता था 

क्या वह दिन थे जब लिखता था 

तो न खाने-पीने और न सोने का होश होता था।


About its creation:- 

मुझसे कोई पूछे कि इंसान का सबसे कठिन दिन कौन सा होता है तो मैं उन्हें अपने पूरे अनुभवों से खंगाल कर एक ही उत्तर दूंगा कि जब इंसान के जीवन में अचानक परिवर्तन हो जाता है तब का दिन इंसान के लिए संघर्षों से भरा होता है आप कहेंगे अचानक परिवर्तन हाँ  अचानक परिवर्तन अगर आप खाना खा रहे हो और कोई खाने के निवाले को आपके मुंह तक जाने से पहले आपके हाथों को पकड़ ले और कहे कि अभी काम बाकी है चलो बहुत खा लिया तो लगता है कि संघर्ष शुरू हो गया अब तो बिना कमाए खाना भी नहीं मिलेगा और मेरे लिए कविता लिखने के अलावा किसी भी काम को करना मानो अपने आपको खोना था मैं बहुत नाराज होता हूँ । जब मुझे लगता है कि किसी और काम को करके मुझे सफलता मिल रही है क्योंकि मेरा उद्देश्य ही बन गया है कि मैं कविता लिखूँ इसके अलावा मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है पर लिखूँ  भी तो लिखूँ किसके लिए यही सवाल जेहन में है कोई सुनता है ना कोई पढता है बस हम लिखते हैं आजकल अखबारों में भी साहित्य का स्थान कितना बड़ा है आप इसी से समझ सकते हैं कि मेरे घर में अमर उजाला नाम की एक पत्रिका आती है जिसमें एक बित्ते से भी कम कवियों के बारे में या साहित्यकारों के बारे में जानने को मिलता है उनकी रचनाएं तो दूर की बात है बस उनका भी और साहित्यकारों के बारे में जानकर क्या करेंगे जब तक कि आप उनकी रचनाओं को नहीं जान लेते जहां तक साहित्य की बात रही वह तो अखबारों में कहीं नहीं दिखती हैं, हाँ बस अखबारों में इश्तिहार ही बिकती है ।





Thought:- 

अखबार पर छपे इश्तिहार हमारे देश के औद्योगिक क्षेत्रों को समृद्ध तो कर सकती है पर देश के लोगों को मानसिक रूप से समृद्ध करना साहित्य का काम है ।




जिंदगी एक कला है

कविता:- जिन्दगी एक कला है 


जिंदगी एक कला है 

जिसे जीना ना आए उसके लिए यह बला है 

जिंदगी एक कला है 

मैं भी सोचता था कि जिंदगी एक बला है 

पर जब मुझे जीना आया तो लगा यह एक कला है 

पता नहीं मैं यह क्यों सोचता था कि जिंदगी एक बला है 

अब समझ आया मेरे जिंदगी एक कला है 

जब भी मुझे कोई डांटता लगता यह तो बला है 

अब समझ आया मुझे जिंदगी एक कला है 

झूठ मुठ की गंदी शक्ल बनाकर सीखा मैंने कि जिंदगी एक कला है 

अगर मैंने झूठ मुठ की गंदी शक्ल बनाकर रोया ना होता 

तो मां कसम यार गुरु जी ने मुझे बहुत ही दिया होता 

फिर भी अगर तुम पूछते हो जिंदगी एक कला है 

तो मैं यही कहूंगा जिसे कला ना आये 

उसके लिए यह बला है जिंदगी एक कला है ।।



About it’s creation:-  मैं बचपन से ही काफी गंभीर किस्म का बच्चा था वहीं मेरे दोस्त किसी भी गंभीरता से कोसों दूर रहते थे मेरी गंभीरता कहीं तक मानो मेरी दुश्मन सी थी जहां कुछ बच्चे अपना पाठ याद न करने की वजह से किसी बहाने को बताकर स्कूल के शिक्षकों से मार खाने से बच जाते थे वही मैं अपना पाठ याद न करने की वजह से अक्सर शिक्षकों के आगे अपना हाथ बढ़ा देता था पर हर बार मेरा ऐसा करना आज मुझे गलत लगता है क्योंकि जब मैं बैठकर सोचता हूं की हमसे तो अच्छे वो हमारे दोस्त थे जिन्हें मार नहीं खाना पड़ता था वो काफी खुश भी रहते थे मगर मैं हमेशा अपने गुरु जनों से डरा सहमा रहता था यही वजह है कि आज मैं आगे तक पढ़ लिख पाया हूँ पर सोचता हूं की वह मेरे दोस्त भी तो आज तक पढ़ पाए हैं बात रही उनके और मेरे पढाई के विभिन्नता की तो आज मैं एक कवि हूँ देखना है मेरे दोस्त क्या होंगे  रही बात होने न होने की तो खुशी तो अक्सर इन्हीं बचपन की शैतानियों में छुपी होती हैं जिनकी यादें बड़े होकर सुखदायक आनन्द देते हैं ।



Thought:-

जिंदगी में अगर किसी इंसान को खुशी चाहिए  

तो उसे किसी भी गंभीरता से दूर रहना चाहिए ।

वो उमंगें न कभी लौटकर आयी ।

कविता:- वो उमंगें फिर ना कभी लौट कर आयी  



वह उमंगें फिर ना कभी लौट कर आयी, 

आज मैंने कविता लिखने की कसम थी खायी  


मैं कवि हूँ ! यह सोचकर कागज कलम उठा लिया था 

लिखूंगा कैसे अंधेरे में बत्तियां भी जला लिया था 


चला कुछ दूर अकेले बड़ा हर्ष उत्साहित था 

लिखूंगा आज कुछ बड़ा यही मन में निहित था 

लिखते हुये क्या मैंने यूँ ही छोड़ दी कलम 

लिखा नहीं कुछ भी तो खो गई वो उमंग  


अगर हो तुझमे लिखने की उमंगें तो उसे टाल मत देना, 

हो अगर दो-चार ही लाइने तो कागज के माथे पर ढाल तुम देना 

कुछ लोग बड़ा लिखने के चक्कर में छोटे को भूल जाते हैं 

अगर उनकी रचनाएं बोरिंग लगे तो उन्हें लोग भूल जाते हैं 

वो कविता आज मुझे देर से याद आयी 

कैसे लिखूं वो उमंगे ना कभी लौट कर आयी



About its creation:- आज(30/09/2017) दशहरा का मेला था और डीरेका के खेल मैदान में रावण का पुतला फूंका जाने वाला था और इन दिनों में कविता लिखने के लय में था मैंने तैयार होने के साथ ही अपने पॉकेट में एक कलम और पेज रख लिया मैंने यह सोचकर कलम और पेज पॉकेट में रख लिया ताकि यदि मेरे मन में बाहर की ताजी हवा खाने के बाद कुछ नया शब्द पनपा तो मैं उसे लिख लूंगा पर बाहर निकला तो इतना भीड़ था कि मैंने अपने पेज और कलम को निकालने की भी कोशिश नहीं की। इस कविता को लिखने के बाद मैं सोचने पर मजबूर था कि मैं एक कवि हूँ ! क्योंकि इस कविता ने मुझे पूरी तरह से कवि के उपाधि से सुसज्जित कर दिया था इसे लिखने के बाद मैंने कई बार मंथन किया और निष्कर्ष पर पहुंचा कि एक अच्छा लेखक कवि बन सकता है क्योंकि जब मैं इस कविता को लिखने के लिए बैठा था तो यह महज एक शब्द नहीं था जिसे मैं कविता का रूप देना चाहता था बल्कि ये वह चीज था जिसे कोई लेखक आधार बनाकर कई पेजों में लिखने के बाद भी नहीं रुकता है वह अधिक से अधिक लिखता ही जाता है जब तक कि वह अपने विचारों से वंचित नहीं हो जाता है इसी तरह मैं लेखक के रूप में लिखने बैठा था पर उस समय मेरे जेहन में इतने विचार थे कि वो बस उमङ रहे थे और मैं चाहकर भी कुछ लिख नहीं पा रहा था । 

कुछ देर तक मैं शान्त रहा और तभी परेशान होकर मैंने एक वाक्य लिखा “वो उमंगें फिर न कभी लौटकर आयी” क्योंकि वो थोड़े ही देर में शान्त रहते ही खोता जा रहा था जो कुछ ही क्षणों पहले अपार था फिर मैं इस वाक्य से जुड़े कुछ तुकांत शब्द को खोजने लगा और फिर जब मुझे एक तुकांत शब्द मिला तो मैंने इसे पूरी कविता का शक्ल देना चाहा और मैं सफल रहा, कितनी ही हड़बड़ा हट क्यों न हो कितने ही विचार मस्तिष्क में क्यों न उमङ रहे हों हमें अपने दिमाग में हमेशा याद रखना है कि हमें करना क्या है लिखना क्या है उस बात, उस विचार पर केन्द्रित रहें और उसकी व्याख्या के लिए तुकान्त शब्द ढूंढते रहें तब आप एक अच्छी कविता लिख पायेंगे । 



Thought:- ऐसे तो उनके चार पंक्ति की शायरी को ही सबसे अच्छी कविता कही जा सकती है जो कथा को कविता का रूप देना चाहते हैं इसलिए उमंगों की छोटी-छोटी बूंद भी किसी उपन्यास से बड़ी हो सकती है ।





नज़्म:- मेरी अभिलाषा

ये जो डर सा लगा रहता है  खुद को खो देने का, ये जो मैं हूं  वो कौन है ? जो मैं हूं !  मैं एक शायर हूं । एक लेखक हूं । एक गायक हूं मगर  मैं रह...