कविता:-कमियों को कम मत समझना
कुछ कमियां हैं मुझमें
पर मैं किसी से कम नहीं
देखा है मैंने उनको भी
जो घूमते हैं सड़कों पे
कुछ कमियां होनी चाहिए थी उनमें भी
उन्हें घूमने से बचाने में
दिया नहीं मुझे धैर्य तो हर्ज क्या बोलो
दिया है इन कमियों को तो इनका फर्ज क्या बोलो
जोश में आकर कुछ लोग होश खो देते हैं
होश में लाने के लिए उन्हें दो-चार लप्पड़ दोस्त दे देते हैं
मिली हों अगर तुम्हें कुछ कमियां
तो उसे कम मत समझना,
मिली हो तुम्हें उनकी वजह से दो चार गालियां
तो उसे गम मत समझना
About its creation:-
मेरे गांव में मिथिलेश नाम के एक सहोदर है जो जन्म से दिव्यांग हैं मगर एक अच्छे चित्रकार, मूर्तिकार और शिक्षक हैं उनके उम्र के जितने भी लड़के थे या तो वो किसी शहर में कमाने चले गए या फिर कुछ लोग गांव में ही रह कर खेती मजदूरी के काम में जुट गए यह वही लोग थे जो दिन भर सड़क पर घूमते रहते थे जो चौराहों और चबूतरों पर बेकार किसी लड़की के पीछे सिटी बजाते रहते थे आज वो अपनी मजदूरी से अपना और अपने बच्चों का पेट भरने में असमर्थ है यदि उन्होंने कुछ समय अपनी तरक्की में दिया होता तो आज यह दिन न देखना पड़ता ।
मैं इस कविता का श्रेय उनको और एक और है जो मेरे इस कविता को लिखने से पहले इस कविता के आकर्षण का केंद्र बना जब मैं गांव गया तो मैंने एक अद्भुत करिश्मा देखा मैंने देखा कि मेरे साथ पढ़ने वाला राजीव झरझरिया( एक प्रकार का ठेला गाड़ी जो मिट्टी के तेल से चलता है) चला रहा था मैं देखकर आश्चर्यचकित हो गया मेरे आश्चर्य का कारण उसके दो पैर थे जो जन्म से ही निष्क्रिय थे इस शारीरिक अक्षमता के बावजूद लोग ऐसे काम कर सकते हैं मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था इसलिए मैंने इसे लिख दिया “कमियों को कम मत समझना” कविता लिखने का एकमात्र बस यही तरीका है कि आप किसी के कुंठा, पीङा और खुशी को अपने अंदर महसूस कीजिये आपने दुख में किसी और का दुख जोङ कर खुद को इतना दुखी बनाइये कि वो खुद व खुद कविता बन जाए ।
Thought:-
भगवान द्वारा मिली शारीरिक अक्षमता मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी नहीं है बल्कि वह मनुष्य सबसे ज्यादा कमजोर है जो अपने अंदर कमजोरियों को पनपने देता है।ञ
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