कविता:- जिन्दगी एक कला है
जिंदगी एक कला है
जिसे जीना ना आए उसके लिए यह बला है
जिंदगी एक कला है
मैं भी सोचता था कि जिंदगी एक बला है
पर जब मुझे जीना आया तो लगा यह एक कला है
पता नहीं मैं यह क्यों सोचता था कि जिंदगी एक बला है
अब समझ आया मेरे जिंदगी एक कला है
जब भी मुझे कोई डांटता लगता यह तो बला है
अब समझ आया मुझे जिंदगी एक कला है
झूठ मुठ की गंदी शक्ल बनाकर सीखा मैंने कि जिंदगी एक कला है
अगर मैंने झूठ मुठ की गंदी शक्ल बनाकर रोया ना होता
तो मां कसम यार गुरु जी ने मुझे बहुत ही दिया होता
फिर भी अगर तुम पूछते हो जिंदगी एक कला है
तो मैं यही कहूंगा जिसे कला ना आये
उसके लिए यह बला है जिंदगी एक कला है ।।
About it’s creation:- मैं बचपन से ही काफी गंभीर किस्म का बच्चा था वहीं मेरे दोस्त किसी भी गंभीरता से कोसों दूर रहते थे मेरी गंभीरता कहीं तक मानो मेरी दुश्मन सी थी जहां कुछ बच्चे अपना पाठ याद न करने की वजह से किसी बहाने को बताकर स्कूल के शिक्षकों से मार खाने से बच जाते थे वही मैं अपना पाठ याद न करने की वजह से अक्सर शिक्षकों के आगे अपना हाथ बढ़ा देता था पर हर बार मेरा ऐसा करना आज मुझे गलत लगता है क्योंकि जब मैं बैठकर सोचता हूं की हमसे तो अच्छे वो हमारे दोस्त थे जिन्हें मार नहीं खाना पड़ता था वो काफी खुश भी रहते थे मगर मैं हमेशा अपने गुरु जनों से डरा सहमा रहता था यही वजह है कि आज मैं आगे तक पढ़ लिख पाया हूँ पर सोचता हूं की वह मेरे दोस्त भी तो आज तक पढ़ पाए हैं बात रही उनके और मेरे पढाई के विभिन्नता की तो आज मैं एक कवि हूँ देखना है मेरे दोस्त क्या होंगे रही बात होने न होने की तो खुशी तो अक्सर इन्हीं बचपन की शैतानियों में छुपी होती हैं जिनकी यादें बड़े होकर सुखदायक आनन्द देते हैं ।
Thought:-
जिंदगी में अगर किसी इंसान को खुशी चाहिए
तो उसे किसी भी गंभीरता से दूर रहना चाहिए ।
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