जब से जीता चुनाव उन्होंने बलवान हुए वो नेता जी,
छप्पन इंच का सीना हुआ पहलवान हुए वो नेता जीडूबाने वाले जलयान के कप्तान हुए वो नेता जी
Hii guys, Welcome to our blog Poetic Baatein you will read here a lot of poems, stories and many thoughts which I have written here and in future whom I shall write.
जब से जीता चुनाव उन्होंने बलवान हुए वो नेता जी,
छप्पन इंच का सीना हुआ पहलवान हुए वो नेता जीअपनी सामाजिक अवस्था के अनुरुप एवं हृदय तथा मन को उन्नत बनाने वाला काम करना ही हमारा कर्तव्य है परंतु विशेष रुप से ध्यान रखना चाहिए कि सभी देश और समाज में एक ही प्रकार के आदर और कर्तव्य प्रचलित नहीं हैं। इस विषय में हमारी अज्ञानता ही एक जाति की दूसरे दूसरी के प्रति घृणा का मुख्य कारण है। एक अमेरिका निवासी समझता है कि उसके देश की प्रथा ही सर्वोउत्कृष्ट है जो कोई उसकी प्रथा के अनुसार बर्ताव नहीं करता, वह दुष्ट है। इस प्रकार एक हिंदू सोचता है कि उसी के रस्म रिवाज संसार भर में ठीक और सर्वोत्तम है और जो उनका का पालन नहीं करता, वह महा दुष्ट है । हम सहज ही इस भ्रम में पड़ जाते हैं ऐसा होना बहुत ही स्वाभाविक भी है। परंतु यह बहुत ही अहितकर है, संसार में परस्पर के प्रति सहानुभूति के अभाव एवं पारस्परिक घृणा का यह प्रधान कारण है ।
मुझे स्मरण है जब मैं इस देश में आया और जब मैं शिकागो प्रदर्शनी में से जा रहा था, तो किसी आदमी ने पीछे से मेरा साफा खींच लिया मैंने पीछे घूम कर देखा तो अच्छे कपड़े पहने हुए एक सज्जन दिखाई पड़े । मैंने उनसे बातचीत की और जब उन्हें यह मालूम हुआ कि मैं अंग्रेजी भी जानता हूं, तो वे बहुत शर्मिंदा हुए ।
इसी प्रकार उसी सम्मेलन में एक दूसरे अवसर पर एक मनुष्य ने मुझे धक्का दे दिया, पीछे घूम कर जब मैंने उससे कारण पूछा, तो वह भी बहुत लज्जित हुआ और हकला- हकलाकर मुझसे माफी मांगते हुए कहने लगा- "आप ऐसी पोशाक क्यों पहनते हैं?" इन लोगों को की सहानुभूति बस अपनी ही भाषा और वेशभूषा तक सीमित थी ।
शक्तिशाली जातियां कमजोर जातियों पर जो अत्याचार करती हैं, उसका अधिकांश अत्याचार इसी दुर्भावना के कारण होता है । मानव मात्र के प्रति मानव का जो बंधु-भाव रहता है, उसको यह सोख लेता है । संभव है, वह मनुष्य जिसने मेरी पोशाक के बारे में पूछा था तथा जो मेरे साथ मेरी पोशाक के कारण ही दुर्व्यवहार करना चाहता था, एक भला आदमी रहा हो एक संतान वत्सल पिता और एक सभ्य नागरिक रहा हो; परंतु उसकी स्वाभाविक सहृदयता का अंत उसी समय हो गया, जब उसने मुझ जैसे एक व्यक्ति को दूसरे वेश में देखा ।
"भारत ने विश्व को युद्ध नहीं बुद्ध दिया है"
27 सितंबर 2019 को मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74 वें सत्र में यह वक्तव्य दिया था और लोगों का ध्यान आतंकवाद फैलाने वाले कुछ शरारती तत्वों की तरफ आकर्षित किया था, तब बुद्ध मानो सदियों से चले आ रहे भारत के एक बड़े विरासत के , एक धरोहर के तौर पर अचानक उभर आए देश प्रेमी लोगों ने तो गर्व से अपना सीना चौड़ा किया ही होगा लेकिन न चाहते हुए भी उन्होंने भी सांस खींचकर दंभ भर दिया होगा जो हर वक्त अपने अधिकारों में डूबे रहते हैं। जो किसी को अपने आगे देखना नहीं चाहते हैं जिनकी अवधारणा में बुद्ध धर्म कोई भी धर्म नहीं है, जो अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए बुद्ध को अपने 33 करोड़ देवी देवताओं में स्थान देने का झूठा दावा पेश करता रहता है ।
उन्होंने ही 27 मई और 22 मई को उत्तर प्रदेश,बसंतपुर के सांकिसा में बौद्ध विहारों को क्षति पहुंचाया उसके दिवारों को तोड़ दिया और वहाँ रह रहे बौद्ध भन्तो को बंदूक की नाल पर प्रताड़ित किया और जान से मारने की धमकी दी इसलिए क्योंकि आज राम मंदिर बनाने के लिए जो चोरी छुपे खुदाई हो रही है। उसके खिलाफ कुछ भन्तो ने आवाज उठाई थी वहाँ मिल रहे अवशेष और बौद्ध स्तूप अयोध्या को बौद्धों की प्राचीन नगरी साकेत बता रही है जिसे राजा बृहद्रथ का और करोड़ों बौद्धों का सर काट कर निच ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने अयोध्या बना दिया था।
राम एक काल्पनिक कहानी का पात्र है और कुछ नहीं यह केवल मैं नहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी मानते थे।
कुछ ब्राह्मण अपना हित साधने के लिए एक काल्पनिक पात्र को जो कभी था ही नहीं उसको भी उसका होना बता रहे हैं।
कुछ लोगों का मानना है और इतिहास के सबूत बताते हैं कि राम कोई और नहीं साकेत का राजा जो अब अयोध्या के नाम से जाना जाता है पुष्यमित्र शुंग ही है। और ब्राहमणों की मंशा राम के नाम पर अपने प्रिय राजा जो करोड़ों बौद्धों का खूनी है पुष्यमित्र शुंग को लोगों से पूजवाना चाहता है, वह चाहता है कि वह राम राज्य लाकर लोगों से फिर छूआ छूत और जात पात के नाम पर उच्च हो सकता है वह जानता है कि वह एक बौद्ध ही हैं जो उसके ढोंग का पर्दा फास कर सकता है, वह बौद्ध ही हैं जो इस समाज में समता , मैत्री और करूणा का संचार कर सकते हैं मगर अपनी रोटी सेंकने के लिए ब्राह्मण लोगों के बीच भेद भाव बनाये रखना चाहते हैं। वे ये नहीं जानते कि वो जिन बौद्धों पर अल्पज्संख्यक समझकर अत्याचार करने की कोशिश कर रहे हैं आज इसमें sc / st / obc जो भारत की 85% आवादी है, वो भी बौद्धों के संरक्षण में हैं और ज्यादातर खुद को बौद्ध के तौर पर देखते हैं और उन बौद्धों के साथ खड़ा है जिन पर सवर्ण और मनुवादी जाहिल समाज अत्याचार करने और उसे उखाड़ फेंकने की कोशिश में है ।
कविता:- सफलता का श्रेय
सफलता के दो कदम पीछे ही मेरे अपनों ने साथ छोड़ दिया है
जो बढ़ाया था हाथ उसने मेरी सफलताओं को देखकर मोड़ लिया है
जिन पर विश्वास था मुझे सबसे ज्यादा
उन्होंने मुझे मेरे हालात पर छोड़ दिया है
मैं सफल हो न जाऊं कहीं
उन्होंने मुझसे मुंह मोड़ लिया है
उनको लगता है उनके साथ छोड़ने से मैं टूट कर बिखर जाऊंगा
मूर्ख हैं वो लोग जो सोचते हैं कि जहां वो हैं मैं भी वहीं ठहर जाऊंगा इंसानियत का कोई मतलब ही नहीं है इस दुनियाँ में
वो मुकर जाते हैं किसी की सफलता को देखकर
जो मांगते हैं उनके सफलता की दुआ अपनी झोलियां में
मैंने सोचा था सफलता की सीढ़ी पर चढ़कर
अपनी सफलता का श्रेय किसको दूंगा ?
जब अपनों ने मेरा साथ दिया है तो
निःसंदेह सफलताओं का श्रेय में उनको दूंगा
पर जब अपनों ने मेरा साथ छोड़ा
तो मेरा दिल टूटा तो सही
पर मैंने अपने दिल के टुकड़ों को बिखरने नहीं दिया
इसलिए मैंने अपनी सफलता का श्रेय मुझे दिया है
क्योंकि हर परिस्थिति में मैंने अपने सपनों का साथ दिया है
मैंने मेहनत डटकर किया है ।
About its creation:-
अपने हमेशा अपने ही होते हैं पर जो चापलूसी से अपनापन सिद्ध करना चाहते हैं उनका कोई भरोसा नहीं कि वह कब अपना रंग दिखा दे उनका अपनापन वहीं पर क्यों थम जाता है मदद ? मदद हर कोई किसी की करना चाहता है पर संभवतः मदद तो वो होनी चाहिए कि हमारी मदद से कोई शिखर पर पहुंच जाए और हमारे मन में अभिमान का एक अंश न आए , यह ना आए कि हमने उसकी मदद की है तो उसको हमारा एहसान मानना चाहिए और मूर्खता पूर्ण यह कहते हुए कि क्या वह हमसे बड़ा हो जाएगा तो हमारी इज्जत करेगा ? जहां पर अपनों का सफल होना उनसे देखा नहीं जाता है शायद वह हमसे इतना प्यार करते हैं कि उनसे हमारा दूर जाना अच्छा नहीं लगता है पर क्या प्यार का यही मतलब है कि आप अपने साथी के रास्तों में कांटा बिछाकर उसे रोकें , उनके रास्तों का रोड़ा बनकर उसे रोके यह तो मूर्खता है ना यदि आप सच में उनसे प्यार करते हैं तो उनका अनुसरण कीजिए उनके जैसा कड़ी मेहनत कीजिए ताकि आप उनके साथ चल सके किसी के सफलता के समय हमें उसका साथ नहीं छोड़ना चाहिए यह हमारे प्यार की परीक्षा की घड़ी होती है किसी ने कहा है यदि वह आपसे सच में प्यार करता है तो सफलता की कितनी ऊंचाइयों को छू ले आपको जरूर याद रखेगा पर यदि आप किसी के सफलता के समय मुंह मोड़ लेंगे तो आपके अंदर का इंसान आपको कभी माफ नहीं कर पाएगा आप चाहे जितनी भी किसी की मदद कर ले आपका किया वह हर मदद हमेशा आपको क्षुद्र ही लगेगा जब आप किसी के सफलता के रास्ते का रोड़ा बनेंगे इस कविता की उत्पत्ति का कारण मेरे आसपास के लोग हैं जो दिलासा तो देते हैं कि वह मेरी मदद करेंगे पर वह समय आते ही मुकर जाते हैं । हर सफलता की एक कहानी होती है चाहे वो जैसी हो आप भी लिखिए उस कहानी को ।
Thought:-
यदि आपको किसी की मदद करनी है तो आपको उन्हें ढूंढने की जरूरत नहीं है अपनी जिंदगी में सिर्फ उनकी मदद कर दीजिए जो खुद चलकर आपके दर पर आते हैं ।
कविता:- वक्त कम है
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
उठ खङा हो
रोक ना तु बढते हुए कदमों को यारों
बढ चला है थमने ना देना-देना ना थमने साँसों को प्यारों
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
देख तु तेरे पास ही कोई भुखा शेर खङा है
भूख तु भी बढा ले यारों रोटी का यहाँ बैर बड़ा है
मांगना मत छीन ले
हो गर तुम्हारे पास दे गमगीन को
तेरे पास कलम उन्हे बना समसीर ले
जो आज तु लङ जायेगा
तुम्हारी पीढियाँ तुम्हारा गुण गायेगा
जो आज तु सो जायेगा
तुम्हारी पीढियाँ रोटी के इक निबाले को रो जायेगा
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
वक्त कम है फिर भी तु लङ सकता है
मैदान में चाहे हो जो कोई
तु खुद को बस जीत ले
हर जंग तु भी जीत सकता है
देर ना कर सोचने में सोचने में तु देर ना कर
कर तु जो करना है तुमको बार बार मुड़कर देखा ना कर
वक्त कम है वक्त कम है
करना ज्यादा ज्यादा में दम है
वक्त कम है
About its creation:-
कविता लिखने के लिए किसी विशेष ज्ञान की आवश्यकता नहीं कविता हमारे व्यवहार से उत्पन्न होता है हमारे स्वभाव से आता है। भारत के महान कवि रविंद्रनाथ टैगोर जी का मानना था कि हमारी शिक्षा खुले आसमान के नीचे होनी चाहिए प्रकृति के बीचो-बीच होनी चाहिए न कि दीवारों से घिरे छोटे से कमरे में उनके कहने का पर्याय यही था कि हमें ज्ञान न केवल पुस्तक से सीखना चाहिए वरन प्रकृति से भी ।
मैंने जब से कविता लिखना प्रारंभ किया है मैंने स्कूली शिक्षा, कमरे में बंद शिक्षा और किताबी ज्ञान से बचने की कोशिश की है मगर ना चाहते हुए भी मुझे दुर्भाग्यपूर्ण उन्हें पढ़ना ही पड़ता है घर के लोग मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हैं उनका कहना है कि तुम्हें पहले सरकारी नौकरी करनी पड़ेगी इसके बाद ही तुम अपने मन का कोई काम कर सकते हो तुम ना तो अभी संगीत सीख सकते हो न ही कविता पाठ कर सकते हो और न ही लिख सकते हो!
मुझे भेज दिया एसएससी और रेलवे की तैयारी करने के लिए मगर मेरा कवित्व कहां पीछा छोड़ने वाला था कोचिंग गया तो अथाह भीड़ को देखकर सोचा और खुद को समझाने लगा “वक्त कम है” और भागने का कोई औचित्य नहीं है तो पढना प्रारम्भ कर दिया पढते हुए मैंने अपने सहपाठीयों के उत्साह वर्धन के लिए इस कविता की रचना की ताकि उनके सफलता में मेरी कविता सहयोगी बन सके ।
कविता:- मन एक मंदिर
मन वो मंदिर तेरी काया का
जिसमें पलता है दानों पर देव तेरा
मन गाए तो समझो दानव गाए
तुम गाओ तो गाओ देव सदा
मन की ना गाओ गीत कभी
मन वो हो जो गाए गीत तेरा
मन छलिया है मन पापी है
मानो तो देवों सा मन सर्वव्यापी है
तुम मना लो मन को तो तुम्हें देव मिले
क्योंकि दानव और देव दोनों ही तेरे अंतर व्यापी है
ना मंदिर में आग लगा लेना
ना राक्षस को गले लगा लेना
जो देव तुम्हारे अंदर है तुम
तुम उसको न कभी भूला देना
About its creation:-
आप अपने इधर उधर देखिए कि कैसे प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और शोषण हो रहा है यहां मौजूद हर प्राणी परेशान है उसका कारण खोजने की कोशिश करेंगे तो चारों तरफ उंगली घूमने के बाद वह आपकी तरफ इशारा करेगा, इंसान ही इन कारणों का जड़ है धरती में अपार क्षमता है कि वह अपने यहां बसने वाले हर प्राणी के बिना कुछ किए भोजन और पानी का प्रबंध कर सकता है मगर इंसान को इससे भी ज्यादा कुछ चाहिए अपने तृष्णा की भूख और प्यास बुझाने के लिए भोजन और पानी है काफी नहीं है । अगर इंसान को गुस्सा आए तो वह किसी को मारकर अपने गुस्से को शांत करना चाहता है, अगर उसे भूख लगे तो वह किसी का खाना छीन लेना चाहता है अगर उसे किसी से ईर्ष्या हो जाए तो वह पूरे संसार पर विजय पा लेना चाहता है इसी क्रोध, इसी भूख और इसी ईर्ष्या की इच्छा पूर्ति के लिए एक इंसान दूसरे इंसान से प्रतिस्पर्धा में के होङ में लगा है । आखिर ये क्रोध ये असीमित भूख और ईर्ष्या आता कहां से है इंसान के मन से ! अगर इंसान चाहे तो इंसान के मन में इससे इतर विचार भी आ सकते हैं जो हर किसी के लिए हितकर और कल्याणकारी हो सकता है इंसान क्रोध की जगह करुणा का भाव ला सकता है, असीमित भूख की जगह संयम ला सकता है और ईर्ष्या की जगह दूसरों से प्रेरित होने का भाव मन में ला सकता है मगर इंसान मन की बुरी प्रवृत्तियों में फंस कर अपना ही सर्वनाश करने पर तुल जाता है अगर वह मन को समझाएं और मनाए तो वह एक अच्छा इंसान बन सकता है मन की इन्ही प्रवृत्तियों को देखकर मैंने यह कविता लिखा है।
कविता:- अचेतन मन में हूँ
अचेतन मन में हूँ !
मुझे कोई चेतन मन में लाओ यारों,
जिसे सुनने के लिए मन तरस गया
कोई कहानी उसकी सुनाओ यारों
वो रेत सी फिसली थी कि
मैं भी ढेर हो गया हूँ वहीं,
वो हवाओं के संग चली गई
मैं गैर हो गया हूँ कहीं
मैं मिट्टी हूँ !
कोई मूर्ति बनाओ यारों,
वो भी मेरे दर पर पूजन करे
मेरी कोई कीर्ति ऐसी बनाओ यारों
वो छू ले अगर जो मुझमें जान आ जाए
मूर्ति क्या पत्थर में भी प्राण आ जाए
मुझे कोई मेरी जान से मिलाओ यारों
अचेतन मन में हूँ , मुझे कोई ...... ।
About its creation:-
ये कैसा शोर-शराबा है मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है लोगों को कहो ना मुझे मेरे टूटे दिल के साथ रहने दे मैं उस स्थिति में नहीं हूँ कि अभी मैं किसी को कुछ बता सकता हूँ । अगर किसी को कुछ करना ही है तो उन्हें कहो मुझे मेरा महबूब लाकर दे दे अगर नहीं लाकर दे सकता है तो मुझे मेरे महबूब के यादों के संग जीने दो । अगर इसके अलावा मुझसे कुछ पूछोगे तो मैं नहीं बता सकूंगा सिवाय महबूब के बातों के अगर किसी को मुझसे मेरे महबूब के बारे में सुनना है तो मैं बस उसी को गा रहा हूँ, आकर कोई सुन ले यह ऐसा गीत है कि मानो कभी खत्म नहीं होगा क्योंकि जो गा रहा हूँ वो लिख भी रहा हूँ अपनी तनहाई में उसकी बातें करना मुझे अच्छा लगता है इससे मैं अकेला महसूस नहीं करता हूँ । सभी को कह दो मुझे किसी की जरूरत नहीं है अगर इसके लिए मुझे कोई स्वार्थी कहता है तो उसे कह लेने दो, अज्ञानी कहता है तो कह लेने दो । मुझे किसी को कुछ साबित नहीं करना है अब साबित भी करेगा कोई तो वह मेरे शब्द , मेरे भाव होंगे भले उन्हें समझ में मेरे यहां से जाने के बाद आएगा उन्हें यह भी कह दो अभी मुझे समझने के लिए अपना सर ना फोड़े उनके लिए मैं कुछ यह भी नहीं पर समझ से उनके परे हूँ मैं !तुम मूर्ख हो क्या? , तुम पागल हो क्या?, तुम सनकी हो क्या? , तुम्हारा ध्यान कहाँ है? , मेरे सवालों का जवाब दो तुम्हें पता नहीं मैं तुमसे क्या पूछ रहा हूँ ? और तुम्हें कुछ समझ में नहीं आता? अगर इतना आपको कोई कुछ कहे तो आप क्या कहेंगे?
-हाँ मुझे कुछ समझ में नहीं आता और मुझे समझाने की कोशिश भी मत करें क्योंकि अंततः मैं अपने दिल की सुनूँगा और यह मेरे दिल की हिदायत है कि अगर मैंने अपने दिल के अलावा किसी और से बात करने की कोशिश की तो मेरा दिल मुझसे बात नहीं करेगा यही हालत इस प्रकार की कविता लिखने वाले कवि की होती है जब वह इस प्रकार की कविता लिखने लगता है तो वह हमेशा हर किसी के सवाल पर किंकर्तव्यविमूढ़ रहता है पर उसे एक आवाज हमेशा सुनाई देती है वह है उसके अपने दिल की ।
Thought:-
कभी-कभी आपका सफर आपको लोगों के बीच अज्ञानी व मूर्ख बना सकता है पर आप चिंता ना करें आप लोगों से बेहतर होंगे ।
ये जो डर सा लगा रहता है खुद को खो देने का, ये जो मैं हूं वो कौन है ? जो मैं हूं ! मैं एक शायर हूं । एक लेखक हूं । एक गायक हूं मगर मैं रह...