Tuesday, July 23, 2019

कोई सुन रहा है क्या इन्हें ?

                कोइ सुन रहा है क्या इन्हे ?

कोई सुन रहा है क्या इन्हें 
कुछ कह रहे हैं ये हमें
क्या झूठ था हमारा वो हंगामा
क्या भूल गए हैं हम पुलवामा
कैसे हम यूँ जल उठे थे
जलने पर उन वीरों के
आज हमारे जलने में क्यों नहीं है लपटों का शोर
क्या हम चाहते हैं हो फिर पुलवामा सा हमला एक और
किन से छुपा हुआ है ये कि गद्दार नहीं है कोई और
फिर क्यों चुप हैं हम पकड़ झूठ के धागे का छोर
चीख-चीख कर कहती हैं उन वीरों की लाशें
रोक दो यह हमारी झूठी सहादत
जब जाती ही नहीं है उन भेड़ियों की
हमें पत्थर मारने की आदत
जिन्हें बचाने के लिए खाते हैं हम दुश्मनों की गोलियां
कब तक सहेंगे उनकी हम नफरतों वाली बोलियाँ
कोई सुन रहा है क्या इन्हें
कुछ कह रहे हैं ये हमें
खौलता है खून उनका जिस्म फड़ फड़ाता है
दे दो इन्हें इजाजत अब गद्दारों का जुल्म सहा न जाता है
कांधों पर जब वीर ये अपने भाइयों को लाते हैं
घाटी में छुपे गद्दार भेड़िए जोर-जोर खीखीआते हैं
मर गया जो आतंकवादी कोई ये उनके काफिले सजाते हैं
कौन कहता है ये गद्दार भी कभी हमारे देश के काम आते हैं  कोई सुन रहा है क्या इन्हें
कुछ कह रहे हैं ये हमें ।



                 

Wednesday, July 10, 2019

ये रातें भी हमारी दिन का हिस्सा हैं

            ये रातें भी हमारी दिन का हिस्सा हैं 


क्यों इस रात को जाने दूं 
क्यों सुबह का मैं इंतजार करूं 
इस दिन ने मुझे दिया ही क्या है 
क्यों इस दिन को मैं बेकार कहूं 

दिन का उजियारा खत्म हुआ पर रात अभी तो बाकी है,
कहां कहा है मैंने कुछ भी मेरी बात अभी तो बाकी है।

हाथों में कलम ले ली है मैंने बैठा हूं सैया पर,
अब किन रिश्तो पर किसको विश्वास रहा, 
बस मेरी मां का रिश्ता मुझसे खास रहा,
कुछ लिख देता हूं मैया पर।

मां मेरी नादान है वो मुझे नादान कहती है,
मेरे आगे किसी को नहीं देखती बस मुझसे प्यार करती है।

कहती है तू खा ले बेटा और वो खुद को भूखा रखती है,
फ़िर क्यों भूल जाता है इक बेटा माँ में पेट काटकर हमें रखती है।
मेरी मां अभी भी किसी के घर का चूल्हा मुझे खिलाने के लिए फूकती है, 
मैं भूखा रह ना जाऊं कहीं वो थकने पर भी नहीं रुकती है।

मां के कोमल हृदय में मुझ जैसे पत्थर दिल का भी बास है,
इसलिए तो इस संसार में यारों माँ से रिश्ता हमारा खास है।

लिखता हूं, लिख देता हूँ  
यह दिन क्यों जाए बेकार मेरा,
कुछ तो किया नहीं दिन दिन भर 
एक कविता लिख कर दिखा दूं माँ को प्यार मेरा।


About its creation- लोग अपने कार्य को निरंतर जारी रखने के लिए जाने कितनी बार टाइम पर टेबल बनाते रहते हैं पर हर बार उनका वह दृढ़ निश्चय कि हमें इस समय पर इस कार्य को करना है, खंडित होता रहता है। कुछ लोग अपने द्वारा बनाए गए समय सूची पर काम तो करते हैं पर कुछ लोग इसका ज्यादा दिनों तक अनुसरण नहीं कर पाते हैं ऐसा क्यों होता है क्यों हम अपने दृढ़ निश्चय पर अटल नहीं रह पाते हैं ?क्यों हम अपने आप को अपने विचारों द्वारा बनाई गई किसी समय सारणी में नहीं ढाल सकते ? 

                           दक्षिण अफ्रीका का गांधी कहे जाने वाले नेल्सन मंडेला अपने एक विचार में कहते हैं कि किसी कार्य को करने के लिए समय सही या गलत नहीं होता है हमें जिस समय जो उपयुक्त लगे उसी को करना चाहिए इससे हमारे हर समय का सदुपयोग होता है तो फिर हम क्यों किसी कार्य को करने के लिए उसे समय में बांटने की कोशिश करते हैं ? मेरे लिखने के उमंग के केस में भी यही होता है मुझे लिखने से पहले यह ज्ञात नहीं होता है कि अगले पल में क्या लिखने वाला हूँ क्योंकि मेरा लिखना मेरे विचारों पर निर्भर होता है और किसी उत्कृष्ट विचारों का मन में आने का कोई विशेष समय नहीं होता है। उसी प्रकार हमारे मन को किसी कार्य को कब करने का मन करेगा इसे हमें समय पर छोड़ देना चाहिए । इससे हमारा विकास भले ही  छिछला हो पर वह प्राकृतिक या यूं कहें कि हमने अपने कर्म के साथ-साथ अपने भाग्य को भी महत्व दे दिया है। आप चाहे तो केवल अपने कर्म को महत्व दे सकते हैं या फिर कर्म और भाग्य दोनों को पर इतना समझ लीजिए कि जो कर्म और भाग्य दोनों पर भरोसा करते हैं वह भी समय सारणी बनाते हैं और  रोज उसका अनुसरण करते हैं पर यकीन मानिए वो लोग जो अपने भाग्य और कर्म दोनों पर विश्वास करते हैं वह कभी अपने समय सारणी के अनुरूप कर्म न कर पाने का  पछतावा भी नहीं करते हैं क्योंकि वह हर समय को खुशी से और अच्छा उपयोग कर पाते हैं ।


Thought- हम जिद्द करके अपने भाग्य से बहस कर सकते हैं पर उससे लङ नहीं सकते हैं अगर हम लड़ने की कोशिश करेंगे तो हम अपने उन विचारों से वंचित रह जायेंगे जो हमारे अंदर स्वतः आने वाली होंगी ।

Sunday, July 7, 2019

तेरा देश अब भी गुलाम है ।

                तेरा देश अब भी गुलाम है।

। बाराबंकी के रामअवध दास जी आज के गांधी ।

क्या सुबूत चाहिए तुझे कि-
                                  तेरा अब भी देश गुलाम है?
सुबूत दे रहा है तुझे 
 ये आज का गांधी कि तेरा अब भी देश गुलाम है,

अश्वेत होने के कारण तेरे देश का गोरा आज भी 
किसी गांधी के गरिमा को खंडित करता सरेआम है,
सबूत दे रहा है तुझे ये आज का गांधी तेरा अब भी देश गुलाम है।

क्यों नहीं समझता तेरे देश का गोरा 
बापू के ढांचे में भले ना जान है, 
इन्हीं ढांचों पर चलकर मेरा बापू 
बना विश्व में              महान है।

अहिंसा का पाठ पढ़ाता मेरा बापू मेरा बापू ना हिंसाबान है,
सुन लो हिंसक कायरों हिंसा कायरों की ही पहचान है।

भले वह बैठा तुझे मौन प्रतीत हो 
देखोगे उसके अन्दर छुपा कैसा तूफान है ?,
एक लफ्ज़ जो बोल गया वो 
समझ लेना उसके पीछे खड़ा पूरा हिंदुस्तान है




About its creation:- 

यकीन नहीं होता है कि यह वही भारत है जिसे बापू ने अत्यंत कठिनाइयों और दुखों को सहते हुए आजाद करवाया था जब अंग्रेजों ने 1893 ईस्वी में दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर जा रहे बापू को प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद ट्रेन से उतार दिया था क्योंकि वह रंग में सांवले थे तभी बापू ने रंगभेद मिटाने के संकल्प के साथ दक्षिण अफ्रीका में कदम रखा जब अफ्रीकीयों को आजादी मिली तो वहाँ के लोगों ने नेल्सन मंडेला को राष्ट्रपति और राष्ट्र पिता के रूप में चुना जो कि रंग में काले थे आज पूरे विश्व में उन्हें रंग भेद के खिलाफ लङाई जीतने वाले प्रतीक के रूप में हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय अश्वेत दिवस मनाया जाता है। इस रंग भेद की लङाई में हमारे बापू के योगदान को भी स्पष्ट दुनियाँ ने देखा और सुना इसी के साथ यह सिद्ध हो गया था कि दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद खत्म हो गया । तब अंग्रेजों को समझ में आया होगा कि एक अश्वेत व्यक्ति भी अपने दिलों में अपने लिए वही अधिकार व सम्मान रखता है जितना कि कोई गोरा और उसे उतना ही चोट लगने पर कष्ट होता है जितना कि किसी गोरा को वह भी अपने अपमान का बदला उसी प्रकार ले सकता है जिस प्रकार एक गोरा । मगर हमारे देश के गोरों को आज भी यह बात समझ में नहीं आई है तभी तो वह आज भी किसी गांधी के गरिमा को ठेस पहुंचाने से थोड़ा सा भी शर्म महसूस नहीं करता है बेवजह किसी के पहनावे पर तो किसी के चमड़ी के रंग पर सवाल उठाकर टिकट होने के बावजूद भी बड़ी बेशर्मी से ट्रेन से उतार देता है आखिर इन बेशर्म और मूर्खों को कब समझ में आएगा कि इस धरती पर आया हर इंसान एक सा सम्मान का हकदार है यह कविता बाराबंकी के राम अवध दास जी को समर्पित है वह हमारे आज के गांधी हैं कभी-कभी आप अपनी आंखें इस संसार में खुले रखेंगे और जानेंगे कि आपके आसपास क्या हो रही है और आप अपने विचारों 

से क्या लोगों को समझाना चाहेंगे तो आप एक कविता लिख पाएंगे।

Thought:- 

किसी ने कहा है कि अगर आपको कवि बनना है तो आप फकङ बनिये फकङ से मतलब अपने आसपास की चीजों को जानने से है लोगों को जानने से है ।


Saturday, July 6, 2019

ईर्ष्यालु दोस्त के मुंह प्रशंसा के बोल कहाँ ?

       ईर्ष्यालु दोस्त के मुंह प्रशंसा के बोल कहाँ 

ऐसे दोस्त का क्या कहना, 
जिसने कभी हमें दोस्त ही नहीं माना।

हम दोस्त हैं दो हमारी दोस्ती नहीं,
हम दोनों में इतना प्यार है हमें वो पूछता नहीं।

एक जंग के सिपाही हमारे पक्ष नहीं दो, 
हमारी लड़ाई भी ऐसी कि उन्हें जितने ना दो।

खाने नहीं देगा मुझे पीठ पर तलवार,
वो कहता है मुझे सीने पर मार।
वो जंग का सच्चा सिपाही है 
जो मुझे ललकार रहा है,
मेरे तलवार से दुश्मनों के सर कटे ना कम 
इसलिए वो मुझे फटकार रहा है।

पर मुझे यह नहीं समझ में आता,
क्यों वो मेरी जीत की खुशी में भी नहीं गाता।

वही ना सच्चा और अच्छा योद्धा होता है, 
जो हार को भी स्वीकार कर दिखाता है।

About its creation- ईर्ष्या हर इंसान का स्वाभाविक गुण है हर भाव के अच्छे बुरे दो पहलू होते हैं वैसे ही ईर्ष्या के भी हैं  मैं तो कहता हूं इंसान को हर तरह से अच्छे पहलू का सहारा लेना चाहिए क्योंकि बुरे पहले इंसान का सर्वनाश कर देते हैं किसी के प्रति ईर्ष्या का भाव रखना। अच्छी बात है कि आपमें इतनी जागृति है कि आप अपने आप को दूसरों से बेहतर देखना चाहते हैं पर किसी को देखकर मन ही मन खुद को कोसना अपने आप को नीचा दिखाना यह कहीं भी अच्छा नहीं है।

      यदि हो सकता है तो मैं हर इंसान को यही सलाह दूंगा कि आप जिस इंसान से करते हैं उसे अपना दोस्त बना लें और उन्हें अपने मन की बात खुलकर बताइए और यह भी बताइए कि आप उनसे जलते हैं तो शायद यह ईर्ष्या शब्द आप दोनों के बीच परिहास का विषय बन जाएगा। परिहास ? हां परिहास ! इंसान उसी से तो जलता है जो उसके पकड़ में होता है उसके बाराबर पद और हैसियत का होता है। नहीं तो क्या आपने कभी किसी गरीब को अंबानी से जलते देखा है ? नहीं ना ! नहीं तो यदि आपको लगता है कि आप की ईर्ष्या इतनी बढ़ गई है कि आप कुछ नहीं कर सकते हैं तो आप उस व्यक्ति से दूर होकर रहने की कोशिश कीजिए नहीं तो आपको कष्ट के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।

 आपकी हर उपलब्धि फिकी पङ जाएगी यदि आप किसी से निरंतर ईर्ष्या करते रहेंगे तब। इन्सान को महान बनने की चिंता तब सताने लगती है जब उसका पड़ोसी महान बन जाता है नहीं तो जिन्दगी में महानता शब्द एक सपने जैसा होता है जिसे हम न पाकर भी खुश होते हैं। यह मेरे ऐसे दोस्त से प्रेरित हुआ है एक कविता है जो कहता है कि आप हमारी उपलब्धियों की वाहवाही कीजिए मैं आपके उपलब्धियों में भी आपसे ऐसा ईर्ष्या की भावना ही रखूंगा



Thursday, July 4, 2019

हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा



हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा
मुझे लगता है बोलने के लिए काफी नहीं है यह नारा-
हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा

अंग्रेजों ने सौ वर्ष तक हिंदुस्तानियों को मारा, 
अंग्रेजी तो हिंदी को है बरसों से मारता आ रहा।

भाषा को मारा, भूसा को मारा, मारा पूरे समाज को,
अब तो सम्भल जाओ हिंदुस्तानियों यह मार रहा है तुम्हारे पहचान को।
कबतक यूँ झूठी शान में दिस दैट और दिज दोज कहोगे,
अपना लो दिल से हिंदी को यह वह और ये वो हर रोज कहोगे ।

ये जान लो तुम्हें दुनियाँ का नहीं दुनियाँ तुम्हारा होना चाहिए, 
हिंदी तुम्हारी है और हिंदुस्तान तुम्हारा होना चाहिए।

अगर हिंदी ही नहीं रही तो कैसे कहोगे-
            हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।
बस बोलने के लिए काफी नहीं है यह नारा-
            हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।


How it create- मेरा इस कविता को लिखने का तात्पर्य कदापि यह नहीं है कि मैं किसी भाषा को हेय दृष्टि से देखता हूँ  या हमें किसी भी भाषा को हेय दृष्टि से देखना चाहिए वो तो ये  नारा मुझे ट्रेन में कविता की मुख्य पंक्ति समझ में आ गई तो मैंने सोचा कुछ शब्दों से खेल लूं।
    यद्यपि मेरी है कविता अंग्रेजी के खिलाफ है पर सच कहूं तो कभी मुझे भी अंग्रेजी से प्यार था। यह एक भाषा है और शायद में कवि होने के नाते इससे हमेशा जुड़ाव महसूस करूंगा इसका प्रभाव अगर वाणी तक रहती तो कोई दिक्कत नहीं थी पर इसने अपने साथ अपने बेशर्म पश्चिमी सभ्यता को भी साथ लाया है जो हमारी संस्कृति और सभ्यता को धीरे-धीरे करके निगल रही है आप भी क्या सोचेंगे कि ये मूर्ख कवि क्या कहे जा रहा है। संस्कृति ! सभ्यता ! ये सब तो पुरानी बातें हैं। हाँ पुरानी बातें हैं !पर जरा सोचिए जब हमारे पास पश्चिमी सभ्यता जैसी किसी सभ्यता की जानकारी नहीं थी तो हम कितने खुश और समृद्ध थे शायद इसीलिए हमारे देश को कभी सोने की चिड़ियां की संज्ञा दी गई होगी भाषा न केवल हमारी संस्कृति और सभ्यता को प्रभावित कर रही है बल्कि यह हमारी योग्यता को भी हमसे छीन रही है अगर आप यह सोच रहे हैं कि अंग्रेजी ने हमें कितना कुछ दिया और हम इसे कैसे छोड़ सकते हैं तो आप जान लीजिए कि मैं इसे छोड़ने और पकड़ने की बात नहीं कर रहा हूँ  मैं यह कह रहा हूं कि आपने इसे जहाँ तक पकड़ा वहीं तक ठीक है अब इसे पकड़ने और छोड़ने की बात नहीं है पर हमारे हाथ अभी तक बंधे हैं जब तक हमारी सरकार इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती है कि हमें  अब किसी वाणी को सीखने की जरूरत नहीं है तब तक हम मजबूर हैं पर सोचने वाली बात यह है की अगर आज चीन जैसे देश इंग्लिश और हिंदी के चक्कर में पङेंगें और बैठकर ये सोचेंगे कि हमारे अविष्कार को कोई मित्र राष्ट्र या यूनाइटेड स्टेट जैसे देश हमारे टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाने आयेगा तो उसका दुनिया पर राज करने का सपना सपना ही रह जाएगा और जो आज भारत विश्व गुरु बनने की बात करता है वो यूँ ही भाषाओं में सिमट कर रह जाएगा । आपने कभी ये सुना है कि अमेरिका ने भारत के टैक्नोलॉजी की  नकल की  हो या कुछ ऐसी टैक्नोलॉजी खरीदी हों जिसकी उसे जरूरत पड़ी हो। चीन ,जापान और अमेरिका जैसे देशों को विश्व में नए अविष्कार टेक्नोलॉजी देने वाला घर कहेें तो गलत नहीं होगा। क्या आपने किसी चीनी को अंग्रेजी, जापानी को चीनी ,अमेरिकी को हिंदी सीखते हुए देखा है जिस उम्र में इन जैसे देशों के युवा अविष्कार और शोध में लग जाते हैं उस उम्र में हमारे देश के युवा अंग्रेजी के कुछ  शब्दों को रट लेने की कोशिश करते पाए जाते हैं क्या हम दुनियााँ को एक अच्छा आविष्कार एक अच्छी खोज से रूबरू नहीं करवा सकते हैं बस यूं कहे कि सब हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था का ही देन है कि हम यूूँ कहीं नौकरी की तलाश में और अंग्रेजी के  चंद शब्दों को रटनेे में पिछे रह जाते हैं। वैसे अच्छा है जहां अन्य देश के युवा जीवन को और सुविधाजनक बनाने के लिए नए-नए आविष्कार कर रहे हैं वहीं हमारे देश के युवा वाणी को सुदृढ़ बनाने के लिए अंग्रेजी के कुछ शब्दों को सीख रहे हैं । जब जीवन में अच्छी वाणी ही नहीं होगी तो जीवन अच्छा कैसे होगा ?
 चलो ठीक है ! हमारे देश के युवा कुछ नहीं तो सही अंग्रेजी के कुछ शब्द की खोज तो कर रहे हैं जहां वो तुमको  you कहेंगें आपको you कहेंगें तो निःसंदेह अपने बाप को भी वो  you ही  कहेंगे ।

कौवा चला हंस की चाल अपनी चाल भी भूल गया,
शैख को देखो अंग्रेजी छोड़ हिंदी मीडियम स्कूल गया।

Tuesday, July 2, 2019

तुम्हें भी आजमा कर देखूंगा ।


यूँ ही तुम मेरी नहीं हो जाओगी,
ज्यों    मैं   तेरा    नहीं   हूँ।

कोशिश तो कर रहा हूं मैं तेरा होने की,
पर मैं एक दिन तुम्हारी कोशिश भी देखूंगा।

वक्त आने दे ए-हसीना,
तुम्हारा पसीना बहाकर भी देखूंगा।

जितना शिद्दत से चाहता हूं मैं तुझे,
तेरी वफा-ए-शिद्दत भी देखूंगा।

जिस चांद की तू बातें करती है अक्सर,
उस चांद पर भी जाकर देखूंगा।

आसमां पूरी होगी मेरी,
तुम्हें अपनी जमीं बना कर देखूंगा।

जितना आजमा रही है तुम मुझे
उतना    आजमा  कर      देखूंगा।


How it create- कोई पसंद आ गई हो तो थॉमस कैरयू  की एक बात याद रखना कि वह पसंद तुम्हारी केवल खूबसूरत ना हो।

क्योंकि हर वह चीज जो बाहर से खूबसूरत होती है उसके पीछे की सच्चाई कुछ और होती है। अगर तुम्हें किसी को पसंद ही करना है तो किसी के गुलाबी होठों से, मुंगे जैसी दातों से, सागर जैसी नीली आंखों से ही क्यों ? उसके दिल के जज्बातों से करो, पसंद हो उसकी प्यार वाली बातें तो उन बातों से करो।क्योंकि अक्सर यह देखा गया है कि लोग अपना परिचय देने के लिए इन्हीं बातों का प्रयोग करते हैं और जब उनके बातों से, उनसे परिचित हो जाओ तो शौक से उन्हें अपना बनाओ पर किसी को चुनने से पहले अपने मन के आईने को इतना साफ कर लेना कि उस समय जिस-समय तुम किसी को चुनो तुम्हारा मन सच्चाई को अच्छे से देख सके क्योंकि मन बहुत चंचल होता है, जब हम किसी को देखते हैं तो दिल में बहुत हलचल होता है। इस हलचल में अक्सर हमारा मन वह भी देख लेता है जो बिल्कुल नहीं होता है।
                     
                               - शुभम् कुमार

Monday, July 1, 2019

सुनों राही



जिस रास्ते से ओ रही है तू जा रहा,
उस रास्ते से मैं हूँ कब का गुजर चुका।

उस रास्ते पर चलना ओ राही संभल-संभल कर जरा,
जिस रास्ते पर मैं था पहले गिरा।

जिस बात को हूं मैं आज तुमसे कह रहा,
उस बात पर अम्ल तुम करना जरा।

यह बात है नहीं किसी उपन्यास की,
यह बात है नहीं किसी हास्य की,
यह बात है तो सिर्फ उस रास्ते के राज की,
जिस रास्ते पर मैं था पहले फंसा।

मैं हूँ ओ राही इस राह का पहला मुसाफिर
दूसरा तू तीसरा कोई अन्य होगा,
बता दूँ राज मैं तुम्हे तुम किसी और को
तब वह भी इस रास्ते पर चलकर सफल और धन्य होगा।

जब ज्ञात होगी रास्ते की हर मुश्किलें
चलना उसका आसान होगा,
पा लेगा वो भी अपनी मंजिल
उसका एक पहचान होगा ।


How it create- मैं आज से नहीं चल रहा हूं। मैं हर रोज सफर पर तब तक चलता हूं जब तक कि मैं थक नहीं जाता और थोड़ा विश्राम करने के बाद जब मैं सुबह उठता हूं फिर चलना प्रारंभ करता हूं पता नहीं मेरे चलने पर भी मेरी मंजिल मुझसे दूर होती जाती है या कि नजदीक आती है इसका पता ही नहीं चलता है आखिर मैं अपनी मंजिल की ओर चलते हुए गलती क्या कर रहा हूं संभवतः मैं चलने की व्यस्तता में उस रास्ते पर चले मुसाफिरों के कदमों के निशान नहीं देख पाता हूं।और चलते हुए मैं गलत पथ पर चला जाता हूं और लौट के वापस में जहां से चला था वहीं आना पड़ता है मुझे।
चलने से पहले इससे अच्छा होगा कि मैं जहाँ जाना चाहता हूँ ।उस रास्ते पर चले मुसाफिर के पैरों के निशान ढूंढ लूँ । मंजिल का रास्ता ढूंढ लूं ।
जो सिर्फ लिखना जानते हैं उन्हें लिखने से पहले पढ़ना जानना चाहिए था,चलने से पहले रास्ते का पता जानना चाहिए था।

                                                              - शुभम् कुमार

Saturday, June 29, 2019

किसी को देता है तू क्यों अपना पता ?


डर के साए में हूं मैं पला बड़ा
अब मेरा पता है मुझसे लापता
किसी को नहीं दूंगा अपना पता
अपना समझ कर देने पर लूट लेते हैं सारा सपना
उनको तू देता है क्यों अपना पता
कुकर्म में है जब वह पला बड़ा
अगर देगा उनको तू अपना पता
अपना बना कर देंगे वो तुमको दगा
दोस्त कहता है जिसे तू मान कर भला
वक्त आने पर लूट लेंगे वो तेरा कला
पहचान कर भी ना पहचानेंगे वो तुम्हें
दुख पड़ने पर छोड़ देंगे वो तुम्हें
पता नहीं वह पूछता है क्यों पता
पूछने पर देगा वो हमेशा तुम्हें अपना गलत पता
कुकर्म से जिसकी जिंदगी सुकर्म से जिसका न कोई वास्ता कभी ना देना उनको तू अपना पता नहीं तो वो दिखा देंगे तुम्हे गलत रास्ता ।


How it create-  मौका पाकर प्यार में, दोस्ती के अहंकार में कुछ लोग दोस्तों और अपने मुहब्बत से इतनी आशाएँ कर लेते हैं कि उनकी इच्छाओं को पूरा करने से ज्यादा लोगों को उनका दिल तोड़ना आसान लगता है जब यह परिस्थिति किसी रिश्ते में पनपती है तो लोग आसान काम यथा शीघ्र करते हैं ।तब एक आदमी जो अपने दोस्त और प्यार से आशा करता है ।उसका दिल टूट जाता है पर वह यह कभी नहीं सोचता है कि मेरा दिल किस वजह से टूटा है बस इतना कहता है कि उसने मेरा दिल तोड़ा है।
इसमें एक गहरा राज छुपा है कि किसी का दिल कैसे टूट जाता है ?
दरअसल जब कोई इंसान किसी से प्यार या दोस्ती करता है तो वह अपने यार और दोस्त को इंप्रेस करने के लिए एक किमती चीज भेंट  स्वरूप प्रदान करता है  आखिर वह चीज है क्या जानना चाहेंगे तो पढ़िए असल में वह चिज उसका दिल ही होता है जिसकी कीमत हमारे और आपके बाजार में क्या कोई लगाएगा पर मूर्ख इंसान का क्या है देना है तो देना है जैसे उसका दिल कोई तोहफा या खिलौना हो। यह नहीं समझ पाएगा कि जिस दिल को इतना संभालकर रखा था उसका ख्याल आगे वाला रख पायेगा कि नहीं और आवेश में आकर दे दिया।
अब सिलसिला शुरू होता है बात करने का बातों बातों मैं घर का पता पूछने का। जब दिल का पता दिया है तो घर का पता क्या है ? फलां फलां जिला में हमारा घर है और फलां-फलां  कॉलोनी में हम रहते हैं इसके बाद तो लोगों का आना-जाना ऐसा होता है कि लगता ही नहीं है कि हम दोनों दोस्त हैं भाई से भी बढ़कर है। तू मेरा सोना है। इतने अपनेपन के बाद किसी से कुछ मांगना तो लाजिमी है पर अगर आप अपने रिश्ते को यूँ ही बरकरार रखना चाहते हैं तो आपको यह समझना पड़ेगा कि न तो आप उनसे ज्यादा लेने की उम्मीद रखेंगे और न कुछ ज्यादा देने की। देने से समबन्ध है कि अगर आप ज्यादा कुछ देते हैं तब भी रिश्ते में दरार बनने का खतरा बना रहता है यह मानव प्रकृति है कि जब उसका नुकसान होता है तो वह रोता है, जब कुछ मिलता है तो वहहंसता है, आप यकीन मानिये आप कहेंगे कि रिश्तों में कहाँ ऐसा होता है मगर यह होता है ।

Monday, June 24, 2019

तेरी आँखें मुझे कुछ और कहतीं हैं

   

      

तेरी आंखों की खता से वाकिफ हूं मैं,
तेरी हर अदा से वाकिफ हूं मैं,

वाकिफ है तेरा दिल तू मुझे चाहती है,
फिर भी तेरी आंखें मुझे कुछ और-और
तेरी जुबा मुझे कुछ और कहती है।

तू क्यों नहीं कहती कि मुझे तुमसे प्यार है,
ये सुनने के लिए मेरा दिल जाने कब से बेकरार है।

मुझे तुमसे प्यार है-मुझे तुमसे प्यार है,
ये कह दे प्लीज मुझे तुमसे प्यार है।


                                                      - शुभम् कुमार 

Sunday, June 23, 2019

पिता की आंखों ने कहा-

पिता की आंखों ने कहा-

मेरे पिता जी मेरी ओर देखकर कुछ कह रहे हैं,
पर हम उनकी हालात को देखकर भी सह रहे हैं।1।

उनकी आज ऐङियां घिस चुकी हैं,
शरीर की मांसपेशियां सिकुड़ चुकी हैं,
वो हमसे आज कुछ चाहते हैं,
पर हम अभी भी उन्हीं से पैसे मांगते हैं।2।

हमें आज भी अपनी जिम्मेदारियों का एहसास नहीं है,
मेहनत की जिंदगी अभी भी हमें रास नहीं है।3।

मैं पूछता हूं आखिर कब तक-
                                     कब तक वो हमें कमा कर देंगे,
कब हम उन्हें बैठा कर अपने मेहनत से
                              रोटी का दो निवाला खिला देंगे ?।4।
                                                              - शुभम् कुमार


About its creation:- 

एक दिन गांव में जब मैं खाना खा रहा था तब मेरे सामने पिताजी बैठे थे। जब मैंने उनकी ओर नजर उठाकर देखा तो  खाते-खाते मेरा गला रूंध आया आंखें सजल हो गईं वहीं पास में बैठ कर मेरी मां खाना बना रही थी और सब थे पिताजी मां से बातें कर रहे थे और मेरी नजर एकटक उनको देख रही थी और मैं यह सोचने पर मजबूर था की कैसे उन्होंने हम भाइयों को पढ़ाने के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया । ना उन्होंने कभी अपने बारे में सोचा और ना किया जैसे मिला खाया और पहना। उन्होंने कभी अपने फायदे या घर चलाने के लिए हम भाइयों की मदद नहीं ली भले ही हमारा परिवार बड़ा था और दखल देने पर नाराजगी जताई उस समय मैं भले ही छोटा था पर उनकी स्थिति को देखकर में कराह उठता था उनकी मदद करने के लिए मैं भले ही उसी समय काम करने लग जाता पर वो मेरे कमाये  रोटी को कभी स्वीकार नहीं करते जब तक  मैं एक अच्छा अफसर न बन जाता वह नहीं चाहते हैं कि मैं कभी भी उनकी तरह मजदूरी करूं ।
जब मैं उन्हें देख रहा था तब मैंने इस कविता को नहीं लिखा पर मैंने उस छण मन में आए मांगों को शब्द बना कर छोड़ दिया था जिसे मैंने अपने स्कूल उमाशंकर मेमोरियल में जाने के पहले दिन ही एक संकल्प के तौर पर पूरा किया कि मैं आज से अच्छे से पढ़ाई करूंगा मेरा इस कविता को लिखना यह प्रदर्शित करता है कि मैं बेचैन हूं अपने पिता के लिए कुछ करने के लिए और आप ?

Thought:-

अगर आप एक गरीब पिता के बेटे हैं तो अपने पिता के चेहरे पर झुरिया आने से पहले ही आपको कुछ करना होगा कुछ बनना होगा ।



Saturday, June 22, 2019

बड़े भईया

                              बड़े भईया

बड़ा है बड़ा होने की तालीम दे सकता है मुझे,
मैं उसके सामने हो जाऊं बड़ा वह कभी देख नहीं सकता मुझे।
वो मेरा बड़ा भाई है मैं उसका बड़ा नहीं,
मैं उसके सामने बोल दूँ कुछ बड़ा
हाथें रूकती कहां है जबतक दो-चार पड़ा नहीं।2।
वो बड़ा है मैं बड़ा हो नहीं सकता, 
दो-चार पङा तो क्या मैं रो नहीं सकता।3।
अगर होंगे तेरे सपने बड़े ही उटपटांग,
ले जाएगा तेरा बड़ा भाई तुझे अपने ही सिद्धांत।4।
कहे अगर बड़ा कहां तो मान लेना तुम,
अच्छे से दिए हुए निर्देशों को जान लेना तुम।5।
बड़ा भाई तो बाप के समान होता है,
अगर छोटा उसकी बात ना माने तो बड़ों का अपमान होता है



About its creation:-

याद है वो बातें आपको अपने बचपन की जब कभी आपका बड़ा भाई अपने पिता से या किसी अन्य से बात कर रहा हो और वहां जाकर आपने कुछ उटपटांग कह दिया हो और आप बिना भाई से पीटे वापस वहां से चले आए हो नहीं ना। भले ऐसी गलतियां करने के बाद वह आपको आपका पड़ोसी एक बार माफ कर दे, आपके पिता आपको माफ कर दे पर आपका बड़ा भाई कभी नहीं। वह तो अवसर ढूंढता है की कब आप ऐसी गलती ना करें और वो आपको दिखाने के लिए ही सही कब वो आपको थप्पड़ जड़े। कभी कभी शायद उनके इतना हस्तक्षेप से आप परेशान हो जाए पर आप यकीन मानिए वो उनका प्यार ही होता है।
             
                              एक दिन की बात है जब मैं अपने घर से कोचिंग की तरफ जा रहा था गांव की एक गली मैं मैंने देखा कि दो भाई लड़ रहे थे उनमें से बड़े की उम्र पन्द्रह वर्ष की होगी  और छोटे की उम्र 12 वर्ष की होगी बड़ा वाला छोटे को मार रहा था। मैं उनसे अनजान बड़े से पूछा कि-अबे ओय ! इसे क्यों मार रहा है तब उसने एक खूबसूरत सा जवाब दिया यह मेरा भाई है इसके साथ चाहे में जो करूं तू होता कौन है बोलने वाला अमूमन देखा गया है कि आपसी मतभेद में किसी वाह्य  को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए । यह बहुत हद तक सही भी है पर जब को आपस में इस तरह भीड़ जाये कि वहाँ खून की नदियां बहने वाली हो तो वहां इंसानियत को बचाने के लिए हस्तक्षेप करना ही पड़ता है पर मैं इस मुद्दे पर छोटे से बच्चों से बहस नहीं करने वाला था क्योंकि मुझे इसकी संभावना कहीं नहीं मिली कि वहाँ खून की नदियां बहने वाली थी। इस उम्र में बच्चों की लड़ाई जैसे उनके खेल का हिस्सा होता है पल में झगड़ना पल में दोस्त बन जाना वैसे मैंने खेलते वक्त उन दोनों भाइयों का प्यार भी देखा था कभी । जब उसका छोटा भाई किसी के साथ खेल रहा था तो छोटी सी बात पर उनके बीच लड़ाई हो गई और वह वहां नहीं था जब उसे पता चला कि उसके भाई को किसी ने पीटा है तो वो दौड़ते हुए आया और अपने भाई को मारने वाले को इतना पीटा कि क्या कहें जैसे उसके सर पर खून सवार हो गया हो और भावुकता बस वो  यही पुछ रहा था कि तूने मेरे भाई को कैसे मारा तूने मेरे भाई को कैसे मारा ?

Thought- आपका बड़ा भाई बाप के समान आपके सभी जिद्दों को पुरा नहीं कर सकता है, 
अगर आप ज्यादा जिद्द करेंगे तो वो आपको दो -चार लप्पङ दे भी सकता है 
पर आपको बचाने के लिए वो किसी से भी लङ सकता है ।
                                                              शुभम् कुमार 








नज़्म:- मेरी अभिलाषा

ये जो डर सा लगा रहता है  खुद को खो देने का, ये जो मैं हूं  वो कौन है ? जो मैं हूं !  मैं एक शायर हूं । एक लेखक हूं । एक गायक हूं मगर  मैं रह...