हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा
मुझे लगता है बोलने के लिए काफी नहीं है यह नारा-
हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा
अंग्रेजों ने सौ वर्ष तक हिंदुस्तानियों को मारा,
अंग्रेजी तो हिंदी को है बरसों से मारता आ रहा।
भाषा को मारा, भूसा को मारा, मारा पूरे समाज को,
अब तो सम्भल जाओ हिंदुस्तानियों यह मार रहा है तुम्हारे पहचान को।
कबतक यूँ झूठी शान में दिस दैट और दिज दोज कहोगे,
अपना लो दिल से हिंदी को यह वह और ये वो हर रोज कहोगे ।
ये जान लो तुम्हें दुनियाँ का नहीं दुनियाँ तुम्हारा होना चाहिए,
हिंदी तुम्हारी है और हिंदुस्तान तुम्हारा होना चाहिए।
अगर हिंदी ही नहीं रही तो कैसे कहोगे-
हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।
बस बोलने के लिए काफी नहीं है यह नारा-
हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।
How it create- मेरा इस कविता को लिखने का तात्पर्य कदापि यह नहीं है कि मैं किसी भाषा को हेय दृष्टि से देखता हूँ या हमें किसी भी भाषा को हेय दृष्टि से देखना चाहिए वो तो ये नारा मुझे ट्रेन में कविता की मुख्य पंक्ति समझ में आ गई तो मैंने सोचा कुछ शब्दों से खेल लूं।
यद्यपि मेरी है कविता अंग्रेजी के खिलाफ है पर सच कहूं तो कभी मुझे भी अंग्रेजी से प्यार था। यह एक भाषा है और शायद में कवि होने के नाते इससे हमेशा जुड़ाव महसूस करूंगा इसका प्रभाव अगर वाणी तक रहती तो कोई दिक्कत नहीं थी पर इसने अपने साथ अपने बेशर्म पश्चिमी सभ्यता को भी साथ लाया है जो हमारी संस्कृति और सभ्यता को धीरे-धीरे करके निगल रही है आप भी क्या सोचेंगे कि ये मूर्ख कवि क्या कहे जा रहा है। संस्कृति ! सभ्यता ! ये सब तो पुरानी बातें हैं। हाँ पुरानी बातें हैं !पर जरा सोचिए जब हमारे पास पश्चिमी सभ्यता जैसी किसी सभ्यता की जानकारी नहीं थी तो हम कितने खुश और समृद्ध थे शायद इसीलिए हमारे देश को कभी सोने की चिड़ियां की संज्ञा दी गई होगी भाषा न केवल हमारी संस्कृति और सभ्यता को प्रभावित कर रही है बल्कि यह हमारी योग्यता को भी हमसे छीन रही है अगर आप यह सोच रहे हैं कि अंग्रेजी ने हमें कितना कुछ दिया और हम इसे कैसे छोड़ सकते हैं तो आप जान लीजिए कि मैं इसे छोड़ने और पकड़ने की बात नहीं कर रहा हूँ मैं यह कह रहा हूं कि आपने इसे जहाँ तक पकड़ा वहीं तक ठीक है अब इसे पकड़ने और छोड़ने की बात नहीं है पर हमारे हाथ अभी तक बंधे हैं जब तक हमारी सरकार इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती है कि हमें अब किसी वाणी को सीखने की जरूरत नहीं है तब तक हम मजबूर हैं पर सोचने वाली बात यह है की अगर आज चीन जैसे देश इंग्लिश और हिंदी के चक्कर में पङेंगें और बैठकर ये सोचेंगे कि हमारे अविष्कार को कोई मित्र राष्ट्र या यूनाइटेड स्टेट जैसे देश हमारे टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाने आयेगा तो उसका दुनिया पर राज करने का सपना सपना ही रह जाएगा और जो आज भारत विश्व गुरु बनने की बात करता है वो यूँ ही भाषाओं में सिमट कर रह जाएगा । आपने कभी ये सुना है कि अमेरिका ने भारत के टैक्नोलॉजी की नकल की हो या कुछ ऐसी टैक्नोलॉजी खरीदी हों जिसकी उसे जरूरत पड़ी हो। चीन ,जापान और अमेरिका जैसे देशों को विश्व में नए अविष्कार टेक्नोलॉजी देने वाला घर कहेें तो गलत नहीं होगा। क्या आपने किसी चीनी को अंग्रेजी, जापानी को चीनी ,अमेरिकी को हिंदी सीखते हुए देखा है जिस उम्र में इन जैसे देशों के युवा अविष्कार और शोध में लग जाते हैं उस उम्र में हमारे देश के युवा अंग्रेजी के कुछ शब्दों को रट लेने की कोशिश करते पाए जाते हैं क्या हम दुनियााँ को एक अच्छा आविष्कार एक अच्छी खोज से रूबरू नहीं करवा सकते हैं बस यूं कहे कि सब हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था का ही देन है कि हम यूूँ कहीं नौकरी की तलाश में और अंग्रेजी के चंद शब्दों को रटनेे में पिछे रह जाते हैं। वैसे अच्छा है जहां अन्य देश के युवा जीवन को और सुविधाजनक बनाने के लिए नए-नए आविष्कार कर रहे हैं वहीं हमारे देश के युवा वाणी को सुदृढ़ बनाने के लिए अंग्रेजी के कुछ शब्दों को सीख रहे हैं । जब जीवन में अच्छी वाणी ही नहीं होगी तो जीवन अच्छा कैसे होगा ?
चलो ठीक है ! हमारे देश के युवा कुछ नहीं तो सही अंग्रेजी के कुछ शब्द की खोज तो कर रहे हैं जहां वो तुमको you कहेंगें आपको you कहेंगें तो निःसंदेह अपने बाप को भी वो you ही कहेंगे ।
कौवा चला हंस की चाल अपनी चाल भी भूल गया,
शैख को देखो अंग्रेजी छोड़ हिंदी मीडियम स्कूल गया।

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