कोइ सुन रहा है क्या इन्हे ?
कोई सुन रहा है क्या इन्हें
कुछ कह रहे हैं ये हमें
क्या झूठ था हमारा वो हंगामा
क्या भूल गए हैं हम पुलवामा
कैसे हम यूँ जल उठे थे
जलने पर उन वीरों के
आज हमारे जलने में क्यों नहीं है लपटों का शोर
क्या हम चाहते हैं हो फिर पुलवामा सा हमला एक और
किन से छुपा हुआ है ये कि गद्दार नहीं है कोई और
फिर क्यों चुप हैं हम पकड़ झूठ के धागे का छोर
चीख-चीख कर कहती हैं उन वीरों की लाशें
रोक दो यह हमारी झूठी सहादत
जब जाती ही नहीं है उन भेड़ियों की
हमें पत्थर मारने की आदत
जिन्हें बचाने के लिए खाते हैं हम दुश्मनों की गोलियां
कब तक सहेंगे उनकी हम नफरतों वाली बोलियाँ
कोई सुन रहा है क्या इन्हें
कुछ कह रहे हैं ये हमें
खौलता है खून उनका जिस्म फड़ फड़ाता है
दे दो इन्हें इजाजत अब गद्दारों का जुल्म सहा न जाता है
कांधों पर जब वीर ये अपने भाइयों को लाते हैं
घाटी में छुपे गद्दार भेड़िए जोर-जोर खीखीआते हैं
मर गया जो आतंकवादी कोई ये उनके काफिले सजाते हैं
कौन कहता है ये गद्दार भी कभी हमारे देश के काम आते हैं कोई सुन रहा है क्या इन्हें
कुछ कह रहे हैं ये हमें ।
क्या झूठ था हमारा वो हंगामा
क्या भूल गए हैं हम पुलवामा
कैसे हम यूँ जल उठे थे
जलने पर उन वीरों के
आज हमारे जलने में क्यों नहीं है लपटों का शोर
क्या हम चाहते हैं हो फिर पुलवामा सा हमला एक और
किन से छुपा हुआ है ये कि गद्दार नहीं है कोई और
फिर क्यों चुप हैं हम पकड़ झूठ के धागे का छोर
चीख-चीख कर कहती हैं उन वीरों की लाशें
रोक दो यह हमारी झूठी सहादत
जब जाती ही नहीं है उन भेड़ियों की
हमें पत्थर मारने की आदत
जिन्हें बचाने के लिए खाते हैं हम दुश्मनों की गोलियां
कब तक सहेंगे उनकी हम नफरतों वाली बोलियाँ
कोई सुन रहा है क्या इन्हें
कुछ कह रहे हैं ये हमें
खौलता है खून उनका जिस्म फड़ फड़ाता है
दे दो इन्हें इजाजत अब गद्दारों का जुल्म सहा न जाता है
कांधों पर जब वीर ये अपने भाइयों को लाते हैं
घाटी में छुपे गद्दार भेड़िए जोर-जोर खीखीआते हैं
मर गया जो आतंकवादी कोई ये उनके काफिले सजाते हैं
कौन कहता है ये गद्दार भी कभी हमारे देश के काम आते हैं कोई सुन रहा है क्या इन्हें
कुछ कह रहे हैं ये हमें ।

No comments:
Post a Comment