ये रातें भी हमारी दिन का हिस्सा हैं
क्यों सुबह का मैं इंतजार करूं
इस दिन ने मुझे दिया ही क्या है
क्यों इस दिन को मैं बेकार कहूं
दिन का उजियारा खत्म हुआ पर रात अभी तो बाकी है,
कहां कहा है मैंने कुछ भी मेरी बात अभी तो बाकी है।
हाथों में कलम ले ली है मैंने बैठा हूं सैया पर,
अब किन रिश्तो पर किसको विश्वास रहा,
बस मेरी मां का रिश्ता मुझसे खास रहा,
कुछ लिख देता हूं मैया पर।
मां मेरी नादान है वो मुझे नादान कहती है,
मेरे आगे किसी को नहीं देखती बस मुझसे प्यार करती है।
कहती है तू खा ले बेटा और वो खुद को भूखा रखती है,
फ़िर क्यों भूल जाता है इक बेटा माँ में पेट काटकर हमें रखती है।
मेरी मां अभी भी किसी के घर का चूल्हा मुझे खिलाने के लिए फूकती है,
मैं भूखा रह ना जाऊं कहीं वो थकने पर भी नहीं रुकती है।
मां के कोमल हृदय में मुझ जैसे पत्थर दिल का भी बास है,
इसलिए तो इस संसार में यारों माँ से रिश्ता हमारा खास है।
लिखता हूं, लिख देता हूँ
यह दिन क्यों जाए बेकार मेरा,
कुछ तो किया नहीं दिन दिन भर
एक कविता लिख कर दिखा दूं माँ को प्यार मेरा।
About its creation- लोग अपने कार्य को निरंतर जारी रखने के लिए जाने कितनी बार टाइम पर टेबल बनाते रहते हैं पर हर बार उनका वह दृढ़ निश्चय कि हमें इस समय पर इस कार्य को करना है, खंडित होता रहता है। कुछ लोग अपने द्वारा बनाए गए समय सूची पर काम तो करते हैं पर कुछ लोग इसका ज्यादा दिनों तक अनुसरण नहीं कर पाते हैं ऐसा क्यों होता है क्यों हम अपने दृढ़ निश्चय पर अटल नहीं रह पाते हैं ?क्यों हम अपने आप को अपने विचारों द्वारा बनाई गई किसी समय सारणी में नहीं ढाल सकते ?
दक्षिण अफ्रीका का गांधी कहे जाने वाले नेल्सन मंडेला अपने एक विचार में कहते हैं कि किसी कार्य को करने के लिए समय सही या गलत नहीं होता है हमें जिस समय जो उपयुक्त लगे उसी को करना चाहिए इससे हमारे हर समय का सदुपयोग होता है तो फिर हम क्यों किसी कार्य को करने के लिए उसे समय में बांटने की कोशिश करते हैं ? मेरे लिखने के उमंग के केस में भी यही होता है मुझे लिखने से पहले यह ज्ञात नहीं होता है कि अगले पल में क्या लिखने वाला हूँ क्योंकि मेरा लिखना मेरे विचारों पर निर्भर होता है और किसी उत्कृष्ट विचारों का मन में आने का कोई विशेष समय नहीं होता है। उसी प्रकार हमारे मन को किसी कार्य को कब करने का मन करेगा इसे हमें समय पर छोड़ देना चाहिए । इससे हमारा विकास भले ही छिछला हो पर वह प्राकृतिक या यूं कहें कि हमने अपने कर्म के साथ-साथ अपने भाग्य को भी महत्व दे दिया है। आप चाहे तो केवल अपने कर्म को महत्व दे सकते हैं या फिर कर्म और भाग्य दोनों को पर इतना समझ लीजिए कि जो कर्म और भाग्य दोनों पर भरोसा करते हैं वह भी समय सारणी बनाते हैं और रोज उसका अनुसरण करते हैं पर यकीन मानिए वो लोग जो अपने भाग्य और कर्म दोनों पर विश्वास करते हैं वह कभी अपने समय सारणी के अनुरूप कर्म न कर पाने का पछतावा भी नहीं करते हैं क्योंकि वह हर समय को खुशी से और अच्छा उपयोग कर पाते हैं ।
Thought- हम जिद्द करके अपने भाग्य से बहस कर सकते हैं पर उससे लङ नहीं सकते हैं अगर हम लड़ने की कोशिश करेंगे तो हम अपने उन विचारों से वंचित रह जायेंगे जो हमारे अंदर स्वतः आने वाली होंगी ।

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