जिस रास्ते से ओ रही है तू जा रहा,
उस रास्ते से मैं हूँ कब का गुजर चुका।
उस रास्ते पर चलना ओ राही संभल-संभल कर जरा,
जिस रास्ते पर मैं था पहले गिरा।
जिस बात को हूं मैं आज तुमसे कह रहा,
उस बात पर अम्ल तुम करना जरा।
यह बात है नहीं किसी उपन्यास की,
यह बात है नहीं किसी हास्य की,
यह बात है तो सिर्फ उस रास्ते के राज की,
जिस रास्ते पर मैं था पहले फंसा।
मैं हूँ ओ राही इस राह का पहला मुसाफिर
दूसरा तू तीसरा कोई अन्य होगा,
बता दूँ राज मैं तुम्हे तुम किसी और को
तब वह भी इस रास्ते पर चलकर सफल और धन्य होगा।
जब ज्ञात होगी रास्ते की हर मुश्किलें
चलना उसका आसान होगा,
पा लेगा वो भी अपनी मंजिल
उसका एक पहचान होगा ।
How it create- मैं आज से नहीं चल रहा हूं। मैं हर रोज सफर पर तब तक चलता हूं जब तक कि मैं थक नहीं जाता और थोड़ा विश्राम करने के बाद जब मैं सुबह उठता हूं फिर चलना प्रारंभ करता हूं पता नहीं मेरे चलने पर भी मेरी मंजिल मुझसे दूर होती जाती है या कि नजदीक आती है इसका पता ही नहीं चलता है आखिर मैं अपनी मंजिल की ओर चलते हुए गलती क्या कर रहा हूं संभवतः मैं चलने की व्यस्तता में उस रास्ते पर चले मुसाफिरों के कदमों के निशान नहीं देख पाता हूं।और चलते हुए मैं गलत पथ पर चला जाता हूं और लौट के वापस में जहां से चला था वहीं आना पड़ता है मुझे।
चलने से पहले इससे अच्छा होगा कि मैं जहाँ जाना चाहता हूँ ।उस रास्ते पर चले मुसाफिर के पैरों के निशान ढूंढ लूँ । मंजिल का रास्ता ढूंढ लूं ।
जो सिर्फ लिखना जानते हैं उन्हें लिखने से पहले पढ़ना जानना चाहिए था,चलने से पहले रास्ते का पता जानना चाहिए था।
- शुभम् कुमार

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