Saturday, February 8, 2020

एक प्रश्न खुद से

हैलो !  आप जो भी हैं आपसे मेरी आग्रह है कि आप ध्यान पूर्वक इसे पढ़े और इसकी खूबी जानकर आप लोगों तक इसे भेजें, अगर यह आपके लिए उपयोगी ना हो सके तो मुझे माफ करें मगर कोई है जो इन बातों को जानने के लिए उत्सुक और परेशान है और उसे इसकी सख्त जरूरत है ।

मेरा नाम शुभम कुमार है और मैं बीए प्रथम वर्ष का छात्र हूँ । जब मैं कक्षा दसवीं का छात्र था तब मैं काफी होनहार और कुशल था । मैंने दसवीं की परीक्षा की तैयारी जोरों शोरों से की थी परीक्षा से दो महीने पहले हमने अपना पूरा पाठ खत्म कर लिया था मगर जब हम लोगों की अर्थात मेरी और मेरे सहपाठीयों का परीक्षण हमारे गुरु द्वारा प्रारंभ हुई तो मैंने देखा कि बहुत प्रश्नों का उत्तर हम जाने के बावजूद भी नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि हमारे गुरु जन संभवत वह सुनना चाहते थे जो किताबों में और हमारी कॉपियों में लिखी होती थी और हम उस क्रमबद्धता  से जिस क्रमबद्धता से किताबों और कॉपीयों में लिखा होता था उत्तर देने में असमर्थता महसूस करते थे इस प्रकार की उलझनों से हम काफी निराश थे ।


 मगर इसका अर्थ कतई यह नहीं था कि हम कुछ नहीं जानते थे संभवत हम इतना जानते थे कि उस वक्त उस किताब में भी उतना नहीं दिया गया है क्योंकि हमने पूरे एक साल उन किताबों के अलावा कई गुरुओं से शिक्षा ली थी जिन्होंने उन किताबों के साथ-साथ अपने जीवन से जुड़ी वो बातें भी बताई थी जो उन किताबों में भी नहीं दी हुई थी तो फिर यह उलझन क्यों  थी ?इसलिए क्योंकि सवालें तो बहुत थीं मगर उस तरह से पूछने वाला कोई नहीं था जिस तरह का जवाब हम दे सकते थे इसलिए मैंने फिर खुद से मन ही मन एक एक सवाल करना शुरू किया और मैं निरुत्तर नहीं था मेरे पास सभी सवालों के लिए कुछ न कुछ अच्छा जवाब था दरअसल हमारा मस्तिष्क ज्ञान को रखने वाला एक भंडार है परंतु इसका किसी चीज को कैसे रखना है रखने का एक अपना तरीका है अगर आप किसी चीज को किताबी भाषा और किताबी क्रमबद्धता से रखने और रटने की कोशिश करेंगे तो आप इसे भूल जाएंगे जैसा कि मैं भूल जा रहा था इसलिए मैं अपने गुरु के प्रश्नों के उत्तर देने में असमर्थता महसूस करता था इसलिए आपका फर्ज बनता है कि आप सभी जो किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं अभी से अपने मस्तिष्क को एकाग्र करें और आप खुद से प्रश्न करना शुरू करें आप पाएंगे कि आपको हर प्रश्न का उत्तर मालूम है । धन्यवाद ।

                                                              -शुभम् कुमार 

Saturday, February 1, 2020

 Hidden love(गुमनाम मुहब्बत) 




कोशिशें तुम्हें नाम देने कि मैं नहीं करूंगा
मैंने देखा है रिश्तों को नाम देने से टूटते हुए

क्या फर्क पड़ता है कि मैं तुम्हारे लिए क्या हूँ,
मुझे इतनी खुशी है कि दिल से मैंने अपना माना है तुम्हें

देखता हूँ तुम्हें, जानता हूँ तुम्हें,
तुम भी मुझे जानती हो
मगर बताऊंगा नहीं तुम्हे,
मुझे तुमसे प्यार है जताऊंगा नहीं तुम्हें

पता है तुम्हे तुम खूबसूरत हो
मगर तुमसे भी खूबसूरत मुझे तुम्हारे विचार लगते हैं
जब तुम बिना बात के लङ जाती हो किसी को
अपना दिखाने के लिए मुझे तुम्हारे वो खूबसूरत व्यवहार लगते हैं।

कहीं दिल के किसी कोने में
तुम्ही से तुम्हारी एक तस्वीर छुपाये रखूंगा,
दिल में हैं जसवात मेरे जो तुम्हारे लिए
दर्द में आंसू बनकर आंखों में आने की लाख कोशिशें करेंगी मगर उन्हे पलकों से छुपाये रखूंगा ।
     
                                 -शुभम् कुमार (Poetic Baatein)



Tuesday, January 14, 2020

सपने हमारे जीवन में विचार मात्र है जो हमें अपने जीवन में भिन्न-भिन्न प्रयोग करने के लिए प्रेरित करता है

              सपने और सच के बीच का फर्क



सपने और सच के बीच में फर्क बस इतना है कि जब कोई नींद में होता है तो वह सपनों में होता है और जब उसकी आंखें खुलती है तो उसे सच का आभास होता है लोग नींद में सपनों को देखने को महत्व नहीं देते हैं जितना कि वह जागते हुए देखे सपनों को महत्त्व देते हैं इसलिए कलाम ने कहा है कि "अगर सपना देखना ही है तो बंद आंखों से नहीं खुली आंखों से देखो" खुली आंखों से तात्पर्य है पूर्ण चेतना में आकर किसी सपने को देखना सपने तो सभी देखते हैं पर उसे पूरा करने का साहस कुछ लोग ही कर पाते हैं और कुछ लोग तो बस सपने देखते हैं और बस देखते हैं अगर आप महान लोगों को पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि वह हमें यही सिखाते हैं कि जरूरी नहीं है आपका हर सपना सच हो जाए, मगर जिस  सपने को आपने देखा है उसे एक बार पूरा करने की कोशिश तो अवश्य करें और उसको अपने जीवन में महसूस करें तभी आपके द्वारा देखे गए सपनों का महत्व है ।

आपको क्या लगता है बल्ब का आविष्कार करने वाला थॉमस अल्वा एडिसन अपनी बुद्धिमता के बदौलत बल्ब का

आविष्कार किया होगा उसने इसे बनाने के लिए हजारों प्रयोग किए थे तब जाकर बल्ब बन सका था अगर उसने बुद्धिमता की बदौलत बनाने की कोशिश की होती है तो वह कभी बल्ब को बना नहीं पता या फिर उसने एक ही प्रयोग में इसे बना लिया होता मगर नहीं उसने ऐसा कुछ नहीं किया बस उसने एक सपना देखा कि उसे पूरी दुनिया को रोशनी से भरा हुआ देखना था और उसी सपने को पूरा करने के लिए वह पूरी निष्ठा से जुट गया जिस दौरान वह प्रयोग कर रहा था उसके हजारों असफल प्रयोग उसे कुछ न कुछ नया सीख दे रहे थे उसी प्रकार हमारे सपने हैं जो हमें किसी चीज को करने का विचार देते हैं और अगर हम उस विचार पर अमल करते हैं और उस सपने को पूरा करने की कोशिश करते हैं तो संभवत कभी कभार हमें असफलता का सामना करना पड़ता है पर हमारा हर सपना और उन सपनों को पूरा करने की कोशिश हमें कुछ ना कुछ नया सीख देता है इसलिए हमें सपनों को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए ।

दोस्तों ये आलेख आपको कैसा लगा अपना विचार अवश्य दें 

Sunday, January 12, 2020

'कवि की व्यथा' सरोज द्वारा लिखी एक सुप्रसिद्ध गीत ।

                          कवि की व्यथा-1

ओ लेखनी ! विश्राम कर
अब और यात्राएं नहीं ।

मंगल कलश पर
काव्य के अब शब्द
के स्वस्तिक न रच
अक्षम समीक्षाएं
परख सकती न
कवि का झूठ-सच ।

लिख मत गुलाबी पंक्तियां
गिन छंद, मात्राएं नहीं ।

बंदी अंधेरे
कक्ष में अनुभूति की
शिल्पा छुअन
वादों-विवादों में
घिरा साहित्य का
शिक्षा सदन

अनगिन प्रवक्ता है यहां
बस, छात्र-छात्राएं नहीं।

                         कवि की व्यथा-2 

इस गीत-कवि को क्या हुआ?
अब गुनगुनाता तक नहीं।

इसने रचे जो गीत जग ने
पत्रिकाओं में पढे।
मुखरित हुए तो भजन-जैसे
अनगिनत होठों चढ़े।

होठों चढ़े, वे मन-बिंधे
अब गीत गाता तक नहीं।

अनुराग, राग विराग पर
सौ व्यंग-शर इसने सहे।
जब जब हुए गीले नयन
तब-तब लगाए कहकहे।

वह अट्टहासों का धनी
अब मुस्कुराता तक नहीं।

मेलों  तमाशा में लिए
इसको फिरी आवारगी।
कुछ ढूंढती दृष्टि में
हर शाम मधुशाला जगी।

अभी भीड़ दिखती है जिधर
उस ओर जाता तक नहीं।



Sunday, December 15, 2019

मशहूर अदाकारा

         
                              मशहूर अदाकारा



जिस पर कोई भी मर सकता था
उन पर मरना मेरा कोई खास नहीं है,
क्यों नहीं समझ में आता है लोगों को
क्यों लोगों को उन पर विश्वास नहीं है

वो हमसे अच्छी हैं
हमसे ही क्यों हमारे जैसे कितनों से
अगर वो चाहें तो ये बता सकतीं हैं
हक उनका भी है वो जता सकती हैं
मगर किन चीज़ों पर ?
जिसे लोग देखना नहीं चाहते हैं
या फिर उन चीजों पर
जिसे लोग देख कर भी गौर नहीं कर पाते हैं
कि उनमें आखिर ये है तो क्यों है और क्या है

वो नूर हैं, वो हीर हैं,
वो कल का चमकता हुआ सितारा हैं
मेरी नजरों में वो कल की आनेवाली
एक मशहूर अदाकारा हैं

उनके आंखों की वो सरारत
उनके होठों की वो नज़ाकत
आपको तालियाँ बजाने पर मजबूर कर सकती हैं,
अगर वो जरा सी भावूक हो जायें
तो आपके आंखों में आशूओं को भरपूर कर सकती हैं।



About its creation:- 

एक लड़की है कलाकार बड़ी उसकी नज़ाकत के किसे आम है पर वो चर्चित नही, जरूरी है ? हर वो शख्स जो कलाकार हो,चर्चित हो । चर्चा का विषय होने के लिए लोगों तक कलाओं का प्रसार होना आवश्यक है पर मेरी अभिनेत्री के पास उसके कलाओं के अलावा न किसी का हाथ है उसे बनाने में और ना ही उसके कलाओं के प्रसार के लिए किसी के पास वक्त । यहाँ  कहीं कला तो खूब है पर कहीं चर्चा नहीं और जहाँ कला नहीं उनकी चर्चा यूँ हो रही हो मानों उनसा कलाकार पूरी दुनियाँ में नहीं हो जैसे आज का ताजा खबर ही ले लें रानू मंडल एक ऐसी कलाकार हैं जिन्हें वास्तव में कलाकार कहना कलाकारों की तौहिन है जिस औरत के मुंह से ठीक से आवाज नहीं निकलता हो वो मुश्किल से  अपने जवङे को हिलाकर कुछ गुनगुना दे और उसके प्रंशसा में मूर्ख लोग बहुत बड़े संगीत के ज्ञानी बन बैठे और चारों तरफ से उनके मुँह से प्रंशसा की एक लहर दौड़ पङे तो लगता है यहाँ मौजूद हर शख्स जो गाने में थोड़ी ही क्यों ना रूचि रखता हो, को सोशल मीडिया की इस अंधि भीङ में कलाकार बनाया जा सकता है तो उनके मन में भी जो टूटी-फूटी कुछ अंतरा गा लेते हैं कलाकार बनने का भूत सवार हो जाता है एक वाक्या है मैं बनारस से एक दिन घर वापस लौट रहा था देर रात को मेरी ट्रेन थी उस दिन मैं अपने साथ अपना गिटार लिये हुए स्टेशन पर बैठा था अचानक एक बुजुर्ग मेरे बगल में आकर बैठ गया बात करने लगा बातों ही बातों में कुछ देर बाद उसने मुझसे पूछा कि बेटा देखा कैसे एक बूढी औरत रातो रात प्रसिद्ध हो गई ? मैंने बोला हाँ देखा वो उस कलाकार की किस्मत की प्रशंसा कर रहा था



संभवतः वह रानू मंडल की बात कर रहा था फिर उसने बोला कि बेटा हम कुछ गाना गाते हैं तो जरा बताओ कि ये विडियो वायरल कैसे होता है तो मैंने बताया कि यह लंबा विधि है लोगों द्वारा इसे फैलाया जाता है मैं हैरान था उनके सवालों से
की जिसे सबकुछ त्याग कर तीर्थ यात्रा पर होना चाहिए था वो मुझसे मशहूर होने का सूत्र जानने की कोशिश कर रहा है और जिनको वाकई में मशहूर होने के लिए जद्दोजहद की आवश्यकता थी वो सबकुछ छोड़ कर किसी के मदद की आश में अपने कलाओं से तौबा इस प्रकार कर चुकी हो जैसे उसकी कला उसे कुछ देता ही ना हो और जहाँ तक हो बस लेता हो उससे उसका वक्त और खुद को सिद्ध करने का इम्तिहान ।
किसी ने कहा था कि हर कलाकार का जन्म घूटना टेक कर होता है उन्हें खुद अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ता है । अगर आपको एक अच्छा कलाकार बनना है तो बनने के लिए मशक्कत तो करनी ही पङेंगीं ।

Thought:- 
यहाँ  हर चर्चित शख्स कलाकार नहीं है,
कलाकार होना केवल चर्चा का विषय नहीं है
कलाकारों में भी बहुत गुमनाम हैं यहाँ
पर इसका अर्थ ये कतई नहीं वो कलाकार नहीं।


Wednesday, October 9, 2019

जवाब तुम्हारी खामोशीयों का

                 आपकी विधियाँ ख 


मौन हूँ मैं तुम्हारी बातों को सुनकर 
कुछ कर रहा हूँ, 
जो कहा है ना तुमने
उन विचारों से लड़ रहा हूँ 

कुछ देर से मिलेगा मेरा जवाब 
तुम्हारी बातों का,  
मुझे अक्सर सोचकर 
कुछ कह देना अच्छा लगता है 

यूं ही शायद कह दिया हो 
तुमने मेरे बारे में  
अच्छा होता तुम मेरे बारे में 
अपने दिलों से पूछकर कहती 
जो भी तुमने मेरे बारे में कहा, 
वो बुरा कहा  
दिलों से पूछ कर कहती 
तो कुछ अच्छा कहती 

मौन हूँ मैं तुम्हारी बातों को सुनकर 
लेकिन उनसे अंजान नहीं, 
कुछ भी कह दूँ 
मैं इतना भी नादान नहीं 

जो तुमने कहा है, 
मैं तुम्हें उसका ही क्यों? 
जो तुम कहते कहते चुप हो जाती हो 
तुम्हे क्या लगता है ये तुम्हारी खामोशियां  
कुछ नहीं कहती हैं मुझे ?
सब्र रख मैं तुझे एक दिन तेरी 
इन ख़ामोशियों का जवाब भी दूंगा ।।
                                             
                                                               

Tuesday, July 23, 2019

कोई सुन रहा है क्या इन्हें ?

                कोइ सुन रहा है क्या इन्हे ?

कोई सुन रहा है क्या इन्हें 
कुछ कह रहे हैं ये हमें
क्या झूठ था हमारा वो हंगामा
क्या भूल गए हैं हम पुलवामा
कैसे हम यूँ जल उठे थे
जलने पर उन वीरों के
आज हमारे जलने में क्यों नहीं है लपटों का शोर
क्या हम चाहते हैं हो फिर पुलवामा सा हमला एक और
किन से छुपा हुआ है ये कि गद्दार नहीं है कोई और
फिर क्यों चुप हैं हम पकड़ झूठ के धागे का छोर
चीख-चीख कर कहती हैं उन वीरों की लाशें
रोक दो यह हमारी झूठी सहादत
जब जाती ही नहीं है उन भेड़ियों की
हमें पत्थर मारने की आदत
जिन्हें बचाने के लिए खाते हैं हम दुश्मनों की गोलियां
कब तक सहेंगे उनकी हम नफरतों वाली बोलियाँ
कोई सुन रहा है क्या इन्हें
कुछ कह रहे हैं ये हमें
खौलता है खून उनका जिस्म फड़ फड़ाता है
दे दो इन्हें इजाजत अब गद्दारों का जुल्म सहा न जाता है
कांधों पर जब वीर ये अपने भाइयों को लाते हैं
घाटी में छुपे गद्दार भेड़िए जोर-जोर खीखीआते हैं
मर गया जो आतंकवादी कोई ये उनके काफिले सजाते हैं
कौन कहता है ये गद्दार भी कभी हमारे देश के काम आते हैं  कोई सुन रहा है क्या इन्हें
कुछ कह रहे हैं ये हमें ।



                 

Wednesday, July 10, 2019

ये रातें भी हमारी दिन का हिस्सा हैं

            ये रातें भी हमारी दिन का हिस्सा हैं 


क्यों इस रात को जाने दूं 
क्यों सुबह का मैं इंतजार करूं 
इस दिन ने मुझे दिया ही क्या है 
क्यों इस दिन को मैं बेकार कहूं 

दिन का उजियारा खत्म हुआ पर रात अभी तो बाकी है,
कहां कहा है मैंने कुछ भी मेरी बात अभी तो बाकी है।

हाथों में कलम ले ली है मैंने बैठा हूं सैया पर,
अब किन रिश्तो पर किसको विश्वास रहा, 
बस मेरी मां का रिश्ता मुझसे खास रहा,
कुछ लिख देता हूं मैया पर।

मां मेरी नादान है वो मुझे नादान कहती है,
मेरे आगे किसी को नहीं देखती बस मुझसे प्यार करती है।

कहती है तू खा ले बेटा और वो खुद को भूखा रखती है,
फ़िर क्यों भूल जाता है इक बेटा माँ में पेट काटकर हमें रखती है।
मेरी मां अभी भी किसी के घर का चूल्हा मुझे खिलाने के लिए फूकती है, 
मैं भूखा रह ना जाऊं कहीं वो थकने पर भी नहीं रुकती है।

मां के कोमल हृदय में मुझ जैसे पत्थर दिल का भी बास है,
इसलिए तो इस संसार में यारों माँ से रिश्ता हमारा खास है।

लिखता हूं, लिख देता हूँ  
यह दिन क्यों जाए बेकार मेरा,
कुछ तो किया नहीं दिन दिन भर 
एक कविता लिख कर दिखा दूं माँ को प्यार मेरा।


About its creation- लोग अपने कार्य को निरंतर जारी रखने के लिए जाने कितनी बार टाइम पर टेबल बनाते रहते हैं पर हर बार उनका वह दृढ़ निश्चय कि हमें इस समय पर इस कार्य को करना है, खंडित होता रहता है। कुछ लोग अपने द्वारा बनाए गए समय सूची पर काम तो करते हैं पर कुछ लोग इसका ज्यादा दिनों तक अनुसरण नहीं कर पाते हैं ऐसा क्यों होता है क्यों हम अपने दृढ़ निश्चय पर अटल नहीं रह पाते हैं ?क्यों हम अपने आप को अपने विचारों द्वारा बनाई गई किसी समय सारणी में नहीं ढाल सकते ? 

                           दक्षिण अफ्रीका का गांधी कहे जाने वाले नेल्सन मंडेला अपने एक विचार में कहते हैं कि किसी कार्य को करने के लिए समय सही या गलत नहीं होता है हमें जिस समय जो उपयुक्त लगे उसी को करना चाहिए इससे हमारे हर समय का सदुपयोग होता है तो फिर हम क्यों किसी कार्य को करने के लिए उसे समय में बांटने की कोशिश करते हैं ? मेरे लिखने के उमंग के केस में भी यही होता है मुझे लिखने से पहले यह ज्ञात नहीं होता है कि अगले पल में क्या लिखने वाला हूँ क्योंकि मेरा लिखना मेरे विचारों पर निर्भर होता है और किसी उत्कृष्ट विचारों का मन में आने का कोई विशेष समय नहीं होता है। उसी प्रकार हमारे मन को किसी कार्य को कब करने का मन करेगा इसे हमें समय पर छोड़ देना चाहिए । इससे हमारा विकास भले ही  छिछला हो पर वह प्राकृतिक या यूं कहें कि हमने अपने कर्म के साथ-साथ अपने भाग्य को भी महत्व दे दिया है। आप चाहे तो केवल अपने कर्म को महत्व दे सकते हैं या फिर कर्म और भाग्य दोनों को पर इतना समझ लीजिए कि जो कर्म और भाग्य दोनों पर भरोसा करते हैं वह भी समय सारणी बनाते हैं और  रोज उसका अनुसरण करते हैं पर यकीन मानिए वो लोग जो अपने भाग्य और कर्म दोनों पर विश्वास करते हैं वह कभी अपने समय सारणी के अनुरूप कर्म न कर पाने का  पछतावा भी नहीं करते हैं क्योंकि वह हर समय को खुशी से और अच्छा उपयोग कर पाते हैं ।


Thought- हम जिद्द करके अपने भाग्य से बहस कर सकते हैं पर उससे लङ नहीं सकते हैं अगर हम लड़ने की कोशिश करेंगे तो हम अपने उन विचारों से वंचित रह जायेंगे जो हमारे अंदर स्वतः आने वाली होंगी ।

Sunday, July 7, 2019

तेरा देश अब भी गुलाम है ।

                तेरा देश अब भी गुलाम है।

। बाराबंकी के रामअवध दास जी आज के गांधी ।

क्या सुबूत चाहिए तुझे कि-
                                  तेरा अब भी देश गुलाम है?
सुबूत दे रहा है तुझे 
 ये आज का गांधी कि तेरा अब भी देश गुलाम है,

अश्वेत होने के कारण तेरे देश का गोरा आज भी 
किसी गांधी के गरिमा को खंडित करता सरेआम है,
सबूत दे रहा है तुझे ये आज का गांधी तेरा अब भी देश गुलाम है।

क्यों नहीं समझता तेरे देश का गोरा 
बापू के ढांचे में भले ना जान है, 
इन्हीं ढांचों पर चलकर मेरा बापू 
बना विश्व में              महान है।

अहिंसा का पाठ पढ़ाता मेरा बापू मेरा बापू ना हिंसाबान है,
सुन लो हिंसक कायरों हिंसा कायरों की ही पहचान है।

भले वह बैठा तुझे मौन प्रतीत हो 
देखोगे उसके अन्दर छुपा कैसा तूफान है ?,
एक लफ्ज़ जो बोल गया वो 
समझ लेना उसके पीछे खड़ा पूरा हिंदुस्तान है




About its creation:- 

यकीन नहीं होता है कि यह वही भारत है जिसे बापू ने अत्यंत कठिनाइयों और दुखों को सहते हुए आजाद करवाया था जब अंग्रेजों ने 1893 ईस्वी में दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर जा रहे बापू को प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद ट्रेन से उतार दिया था क्योंकि वह रंग में सांवले थे तभी बापू ने रंगभेद मिटाने के संकल्प के साथ दक्षिण अफ्रीका में कदम रखा जब अफ्रीकीयों को आजादी मिली तो वहाँ के लोगों ने नेल्सन मंडेला को राष्ट्रपति और राष्ट्र पिता के रूप में चुना जो कि रंग में काले थे आज पूरे विश्व में उन्हें रंग भेद के खिलाफ लङाई जीतने वाले प्रतीक के रूप में हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय अश्वेत दिवस मनाया जाता है। इस रंग भेद की लङाई में हमारे बापू के योगदान को भी स्पष्ट दुनियाँ ने देखा और सुना इसी के साथ यह सिद्ध हो गया था कि दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद खत्म हो गया । तब अंग्रेजों को समझ में आया होगा कि एक अश्वेत व्यक्ति भी अपने दिलों में अपने लिए वही अधिकार व सम्मान रखता है जितना कि कोई गोरा और उसे उतना ही चोट लगने पर कष्ट होता है जितना कि किसी गोरा को वह भी अपने अपमान का बदला उसी प्रकार ले सकता है जिस प्रकार एक गोरा । मगर हमारे देश के गोरों को आज भी यह बात समझ में नहीं आई है तभी तो वह आज भी किसी गांधी के गरिमा को ठेस पहुंचाने से थोड़ा सा भी शर्म महसूस नहीं करता है बेवजह किसी के पहनावे पर तो किसी के चमड़ी के रंग पर सवाल उठाकर टिकट होने के बावजूद भी बड़ी बेशर्मी से ट्रेन से उतार देता है आखिर इन बेशर्म और मूर्खों को कब समझ में आएगा कि इस धरती पर आया हर इंसान एक सा सम्मान का हकदार है यह कविता बाराबंकी के राम अवध दास जी को समर्पित है वह हमारे आज के गांधी हैं कभी-कभी आप अपनी आंखें इस संसार में खुले रखेंगे और जानेंगे कि आपके आसपास क्या हो रही है और आप अपने विचारों 

से क्या लोगों को समझाना चाहेंगे तो आप एक कविता लिख पाएंगे।

Thought:- 

किसी ने कहा है कि अगर आपको कवि बनना है तो आप फकङ बनिये फकङ से मतलब अपने आसपास की चीजों को जानने से है लोगों को जानने से है ।


Saturday, July 6, 2019

ईर्ष्यालु दोस्त के मुंह प्रशंसा के बोल कहाँ ?

       ईर्ष्यालु दोस्त के मुंह प्रशंसा के बोल कहाँ 

ऐसे दोस्त का क्या कहना, 
जिसने कभी हमें दोस्त ही नहीं माना।

हम दोस्त हैं दो हमारी दोस्ती नहीं,
हम दोनों में इतना प्यार है हमें वो पूछता नहीं।

एक जंग के सिपाही हमारे पक्ष नहीं दो, 
हमारी लड़ाई भी ऐसी कि उन्हें जितने ना दो।

खाने नहीं देगा मुझे पीठ पर तलवार,
वो कहता है मुझे सीने पर मार।
वो जंग का सच्चा सिपाही है 
जो मुझे ललकार रहा है,
मेरे तलवार से दुश्मनों के सर कटे ना कम 
इसलिए वो मुझे फटकार रहा है।

पर मुझे यह नहीं समझ में आता,
क्यों वो मेरी जीत की खुशी में भी नहीं गाता।

वही ना सच्चा और अच्छा योद्धा होता है, 
जो हार को भी स्वीकार कर दिखाता है।

About its creation- ईर्ष्या हर इंसान का स्वाभाविक गुण है हर भाव के अच्छे बुरे दो पहलू होते हैं वैसे ही ईर्ष्या के भी हैं  मैं तो कहता हूं इंसान को हर तरह से अच्छे पहलू का सहारा लेना चाहिए क्योंकि बुरे पहले इंसान का सर्वनाश कर देते हैं किसी के प्रति ईर्ष्या का भाव रखना। अच्छी बात है कि आपमें इतनी जागृति है कि आप अपने आप को दूसरों से बेहतर देखना चाहते हैं पर किसी को देखकर मन ही मन खुद को कोसना अपने आप को नीचा दिखाना यह कहीं भी अच्छा नहीं है।

      यदि हो सकता है तो मैं हर इंसान को यही सलाह दूंगा कि आप जिस इंसान से करते हैं उसे अपना दोस्त बना लें और उन्हें अपने मन की बात खुलकर बताइए और यह भी बताइए कि आप उनसे जलते हैं तो शायद यह ईर्ष्या शब्द आप दोनों के बीच परिहास का विषय बन जाएगा। परिहास ? हां परिहास ! इंसान उसी से तो जलता है जो उसके पकड़ में होता है उसके बाराबर पद और हैसियत का होता है। नहीं तो क्या आपने कभी किसी गरीब को अंबानी से जलते देखा है ? नहीं ना ! नहीं तो यदि आपको लगता है कि आप की ईर्ष्या इतनी बढ़ गई है कि आप कुछ नहीं कर सकते हैं तो आप उस व्यक्ति से दूर होकर रहने की कोशिश कीजिए नहीं तो आपको कष्ट के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।

 आपकी हर उपलब्धि फिकी पङ जाएगी यदि आप किसी से निरंतर ईर्ष्या करते रहेंगे तब। इन्सान को महान बनने की चिंता तब सताने लगती है जब उसका पड़ोसी महान बन जाता है नहीं तो जिन्दगी में महानता शब्द एक सपने जैसा होता है जिसे हम न पाकर भी खुश होते हैं। यह मेरे ऐसे दोस्त से प्रेरित हुआ है एक कविता है जो कहता है कि आप हमारी उपलब्धियों की वाहवाही कीजिए मैं आपके उपलब्धियों में भी आपसे ऐसा ईर्ष्या की भावना ही रखूंगा



Thursday, July 4, 2019

हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा



हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा
मुझे लगता है बोलने के लिए काफी नहीं है यह नारा-
हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा

अंग्रेजों ने सौ वर्ष तक हिंदुस्तानियों को मारा, 
अंग्रेजी तो हिंदी को है बरसों से मारता आ रहा।

भाषा को मारा, भूसा को मारा, मारा पूरे समाज को,
अब तो सम्भल जाओ हिंदुस्तानियों यह मार रहा है तुम्हारे पहचान को।
कबतक यूँ झूठी शान में दिस दैट और दिज दोज कहोगे,
अपना लो दिल से हिंदी को यह वह और ये वो हर रोज कहोगे ।

ये जान लो तुम्हें दुनियाँ का नहीं दुनियाँ तुम्हारा होना चाहिए, 
हिंदी तुम्हारी है और हिंदुस्तान तुम्हारा होना चाहिए।

अगर हिंदी ही नहीं रही तो कैसे कहोगे-
            हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।
बस बोलने के लिए काफी नहीं है यह नारा-
            हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।


How it create- मेरा इस कविता को लिखने का तात्पर्य कदापि यह नहीं है कि मैं किसी भाषा को हेय दृष्टि से देखता हूँ  या हमें किसी भी भाषा को हेय दृष्टि से देखना चाहिए वो तो ये  नारा मुझे ट्रेन में कविता की मुख्य पंक्ति समझ में आ गई तो मैंने सोचा कुछ शब्दों से खेल लूं।
    यद्यपि मेरी है कविता अंग्रेजी के खिलाफ है पर सच कहूं तो कभी मुझे भी अंग्रेजी से प्यार था। यह एक भाषा है और शायद में कवि होने के नाते इससे हमेशा जुड़ाव महसूस करूंगा इसका प्रभाव अगर वाणी तक रहती तो कोई दिक्कत नहीं थी पर इसने अपने साथ अपने बेशर्म पश्चिमी सभ्यता को भी साथ लाया है जो हमारी संस्कृति और सभ्यता को धीरे-धीरे करके निगल रही है आप भी क्या सोचेंगे कि ये मूर्ख कवि क्या कहे जा रहा है। संस्कृति ! सभ्यता ! ये सब तो पुरानी बातें हैं। हाँ पुरानी बातें हैं !पर जरा सोचिए जब हमारे पास पश्चिमी सभ्यता जैसी किसी सभ्यता की जानकारी नहीं थी तो हम कितने खुश और समृद्ध थे शायद इसीलिए हमारे देश को कभी सोने की चिड़ियां की संज्ञा दी गई होगी भाषा न केवल हमारी संस्कृति और सभ्यता को प्रभावित कर रही है बल्कि यह हमारी योग्यता को भी हमसे छीन रही है अगर आप यह सोच रहे हैं कि अंग्रेजी ने हमें कितना कुछ दिया और हम इसे कैसे छोड़ सकते हैं तो आप जान लीजिए कि मैं इसे छोड़ने और पकड़ने की बात नहीं कर रहा हूँ  मैं यह कह रहा हूं कि आपने इसे जहाँ तक पकड़ा वहीं तक ठीक है अब इसे पकड़ने और छोड़ने की बात नहीं है पर हमारे हाथ अभी तक बंधे हैं जब तक हमारी सरकार इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती है कि हमें  अब किसी वाणी को सीखने की जरूरत नहीं है तब तक हम मजबूर हैं पर सोचने वाली बात यह है की अगर आज चीन जैसे देश इंग्लिश और हिंदी के चक्कर में पङेंगें और बैठकर ये सोचेंगे कि हमारे अविष्कार को कोई मित्र राष्ट्र या यूनाइटेड स्टेट जैसे देश हमारे टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाने आयेगा तो उसका दुनिया पर राज करने का सपना सपना ही रह जाएगा और जो आज भारत विश्व गुरु बनने की बात करता है वो यूँ ही भाषाओं में सिमट कर रह जाएगा । आपने कभी ये सुना है कि अमेरिका ने भारत के टैक्नोलॉजी की  नकल की  हो या कुछ ऐसी टैक्नोलॉजी खरीदी हों जिसकी उसे जरूरत पड़ी हो। चीन ,जापान और अमेरिका जैसे देशों को विश्व में नए अविष्कार टेक्नोलॉजी देने वाला घर कहेें तो गलत नहीं होगा। क्या आपने किसी चीनी को अंग्रेजी, जापानी को चीनी ,अमेरिकी को हिंदी सीखते हुए देखा है जिस उम्र में इन जैसे देशों के युवा अविष्कार और शोध में लग जाते हैं उस उम्र में हमारे देश के युवा अंग्रेजी के कुछ  शब्दों को रट लेने की कोशिश करते पाए जाते हैं क्या हम दुनियााँ को एक अच्छा आविष्कार एक अच्छी खोज से रूबरू नहीं करवा सकते हैं बस यूं कहे कि सब हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था का ही देन है कि हम यूूँ कहीं नौकरी की तलाश में और अंग्रेजी के  चंद शब्दों को रटनेे में पिछे रह जाते हैं। वैसे अच्छा है जहां अन्य देश के युवा जीवन को और सुविधाजनक बनाने के लिए नए-नए आविष्कार कर रहे हैं वहीं हमारे देश के युवा वाणी को सुदृढ़ बनाने के लिए अंग्रेजी के कुछ शब्दों को सीख रहे हैं । जब जीवन में अच्छी वाणी ही नहीं होगी तो जीवन अच्छा कैसे होगा ?
 चलो ठीक है ! हमारे देश के युवा कुछ नहीं तो सही अंग्रेजी के कुछ शब्द की खोज तो कर रहे हैं जहां वो तुमको  you कहेंगें आपको you कहेंगें तो निःसंदेह अपने बाप को भी वो  you ही  कहेंगे ।

कौवा चला हंस की चाल अपनी चाल भी भूल गया,
शैख को देखो अंग्रेजी छोड़ हिंदी मीडियम स्कूल गया।

नज़्म:- मेरी अभिलाषा

ये जो डर सा लगा रहता है  खुद को खो देने का, ये जो मैं हूं  वो कौन है ? जो मैं हूं !  मैं एक शायर हूं । एक लेखक हूं । एक गायक हूं मगर  मैं रह...