Sunday, May 17, 2020

जिंदगी एक कला है

कविता:- जिन्दगी एक कला है 


जिंदगी एक कला है 

जिसे जीना ना आए उसके लिए यह बला है 

जिंदगी एक कला है 

मैं भी सोचता था कि जिंदगी एक बला है 

पर जब मुझे जीना आया तो लगा यह एक कला है 

पता नहीं मैं यह क्यों सोचता था कि जिंदगी एक बला है 

अब समझ आया मेरे जिंदगी एक कला है 

जब भी मुझे कोई डांटता लगता यह तो बला है 

अब समझ आया मुझे जिंदगी एक कला है 

झूठ मुठ की गंदी शक्ल बनाकर सीखा मैंने कि जिंदगी एक कला है 

अगर मैंने झूठ मुठ की गंदी शक्ल बनाकर रोया ना होता 

तो मां कसम यार गुरु जी ने मुझे बहुत ही दिया होता 

फिर भी अगर तुम पूछते हो जिंदगी एक कला है 

तो मैं यही कहूंगा जिसे कला ना आये 

उसके लिए यह बला है जिंदगी एक कला है ।।



About it’s creation:-  मैं बचपन से ही काफी गंभीर किस्म का बच्चा था वहीं मेरे दोस्त किसी भी गंभीरता से कोसों दूर रहते थे मेरी गंभीरता कहीं तक मानो मेरी दुश्मन सी थी जहां कुछ बच्चे अपना पाठ याद न करने की वजह से किसी बहाने को बताकर स्कूल के शिक्षकों से मार खाने से बच जाते थे वही मैं अपना पाठ याद न करने की वजह से अक्सर शिक्षकों के आगे अपना हाथ बढ़ा देता था पर हर बार मेरा ऐसा करना आज मुझे गलत लगता है क्योंकि जब मैं बैठकर सोचता हूं की हमसे तो अच्छे वो हमारे दोस्त थे जिन्हें मार नहीं खाना पड़ता था वो काफी खुश भी रहते थे मगर मैं हमेशा अपने गुरु जनों से डरा सहमा रहता था यही वजह है कि आज मैं आगे तक पढ़ लिख पाया हूँ पर सोचता हूं की वह मेरे दोस्त भी तो आज तक पढ़ पाए हैं बात रही उनके और मेरे पढाई के विभिन्नता की तो आज मैं एक कवि हूँ देखना है मेरे दोस्त क्या होंगे  रही बात होने न होने की तो खुशी तो अक्सर इन्हीं बचपन की शैतानियों में छुपी होती हैं जिनकी यादें बड़े होकर सुखदायक आनन्द देते हैं ।



Thought:-

जिंदगी में अगर किसी इंसान को खुशी चाहिए  

तो उसे किसी भी गंभीरता से दूर रहना चाहिए ।

वो उमंगें न कभी लौटकर आयी ।

कविता:- वो उमंगें फिर ना कभी लौट कर आयी  



वह उमंगें फिर ना कभी लौट कर आयी, 

आज मैंने कविता लिखने की कसम थी खायी  


मैं कवि हूँ ! यह सोचकर कागज कलम उठा लिया था 

लिखूंगा कैसे अंधेरे में बत्तियां भी जला लिया था 


चला कुछ दूर अकेले बड़ा हर्ष उत्साहित था 

लिखूंगा आज कुछ बड़ा यही मन में निहित था 

लिखते हुये क्या मैंने यूँ ही छोड़ दी कलम 

लिखा नहीं कुछ भी तो खो गई वो उमंग  


अगर हो तुझमे लिखने की उमंगें तो उसे टाल मत देना, 

हो अगर दो-चार ही लाइने तो कागज के माथे पर ढाल तुम देना 

कुछ लोग बड़ा लिखने के चक्कर में छोटे को भूल जाते हैं 

अगर उनकी रचनाएं बोरिंग लगे तो उन्हें लोग भूल जाते हैं 

वो कविता आज मुझे देर से याद आयी 

कैसे लिखूं वो उमंगे ना कभी लौट कर आयी



About its creation:- आज(30/09/2017) दशहरा का मेला था और डीरेका के खेल मैदान में रावण का पुतला फूंका जाने वाला था और इन दिनों में कविता लिखने के लय में था मैंने तैयार होने के साथ ही अपने पॉकेट में एक कलम और पेज रख लिया मैंने यह सोचकर कलम और पेज पॉकेट में रख लिया ताकि यदि मेरे मन में बाहर की ताजी हवा खाने के बाद कुछ नया शब्द पनपा तो मैं उसे लिख लूंगा पर बाहर निकला तो इतना भीड़ था कि मैंने अपने पेज और कलम को निकालने की भी कोशिश नहीं की। इस कविता को लिखने के बाद मैं सोचने पर मजबूर था कि मैं एक कवि हूँ ! क्योंकि इस कविता ने मुझे पूरी तरह से कवि के उपाधि से सुसज्जित कर दिया था इसे लिखने के बाद मैंने कई बार मंथन किया और निष्कर्ष पर पहुंचा कि एक अच्छा लेखक कवि बन सकता है क्योंकि जब मैं इस कविता को लिखने के लिए बैठा था तो यह महज एक शब्द नहीं था जिसे मैं कविता का रूप देना चाहता था बल्कि ये वह चीज था जिसे कोई लेखक आधार बनाकर कई पेजों में लिखने के बाद भी नहीं रुकता है वह अधिक से अधिक लिखता ही जाता है जब तक कि वह अपने विचारों से वंचित नहीं हो जाता है इसी तरह मैं लेखक के रूप में लिखने बैठा था पर उस समय मेरे जेहन में इतने विचार थे कि वो बस उमङ रहे थे और मैं चाहकर भी कुछ लिख नहीं पा रहा था । 

कुछ देर तक मैं शान्त रहा और तभी परेशान होकर मैंने एक वाक्य लिखा “वो उमंगें फिर न कभी लौटकर आयी” क्योंकि वो थोड़े ही देर में शान्त रहते ही खोता जा रहा था जो कुछ ही क्षणों पहले अपार था फिर मैं इस वाक्य से जुड़े कुछ तुकांत शब्द को खोजने लगा और फिर जब मुझे एक तुकांत शब्द मिला तो मैंने इसे पूरी कविता का शक्ल देना चाहा और मैं सफल रहा, कितनी ही हड़बड़ा हट क्यों न हो कितने ही विचार मस्तिष्क में क्यों न उमङ रहे हों हमें अपने दिमाग में हमेशा याद रखना है कि हमें करना क्या है लिखना क्या है उस बात, उस विचार पर केन्द्रित रहें और उसकी व्याख्या के लिए तुकान्त शब्द ढूंढते रहें तब आप एक अच्छी कविता लिख पायेंगे । 



Thought:- ऐसे तो उनके चार पंक्ति की शायरी को ही सबसे अच्छी कविता कही जा सकती है जो कथा को कविता का रूप देना चाहते हैं इसलिए उमंगों की छोटी-छोटी बूंद भी किसी उपन्यास से बड़ी हो सकती है ।





Some of My inspirational thoughts.



  •  अगर आप कर सकते हैं तो you can do it में से can को हटा दें ।

  • When your effort is well than success does not keep importance but if you lose your victory from one stair mistake you will be feel sorry in yourself more than an effortless person so if you want to do any effort you must do but for your success not for any failure. 

मेरे कुछ अनमोल विचार

मेरे कुछ विचार ( My some thoughts)

  • हर दिन किए गए कर्मों का आत्म मंथन कीजिए खुद से पूछिए कि आज आपने क्या अच्छा और क्या बुरा किया अच्छे कर्मों से प्रेरणा लेकर बुरे कर्मों में सुधार कीजिए ।


  • इस संसार में आपका सबसे विश्वसनीय स्वयं आप हैं अन्य कोई नहीं आपको स्वयं पर विश्वास रखना ही होगा ।

Saturday, May 16, 2020

Umangein my first collection

कविता:- बादल को है मैंने गिरते देखा 

                                                                                                                                                                               


बादल को है मैंने गिरते देखा,

वो तो थी बिजली की रेखा

कौन कहे ये बिजली है ?

ये तो चांद की तितली है

बादल को है मैंने गिरते देखा 

वो तो थी बिजली की रेखा

वो तो है गरज के आती 

फिर पानी को साथ में लाती

पहले आती उसकी रोशनी 

फिर आती आवाज 

गङ गङ गङ गङ बादल आता 

फिर आती आवाज 

बादल को है मैंने गिरते देखा 

वो तो थी बिजली की रेखा 

अगर मैंने बिजली को पास से गिरते देखा होता 

तो आज मैं यहां बैठकर कविता ना लिख रहा होता ।


About its creation:- हर इंसान को प्रशंसा की जरूरत होती है और वह अगले किसी व्यक्ति से प्रशंसा तभी पा सकता है जब वह आगे वाले को कुछ अच्छा करके दिखाए प्रशंसा दो प्रकार की होती हैं एक वो जो किसी चापलूस के द्वारा हमारे कानों में पड़ता है जिससे हम बुरे कर्मों को करने के लिए प्रेरित होते हैं और दूसरी प्रशंसा वो होती है जो हमारा काम, हमारा अनुभव हमें देता है जिससे हम किसी व्यक्ति की प्रशंसा की आशा न करके उसे करने को खुद प्रेरित होते हैं या फिर किसी के नाम मात्र प्रशंसा से भी हम उस चीज को करने के लिए उतारू हो जाते हैं। जब इंसान का कर्म उसकी प्रशंसा करने लगे तो उसे किसी और की प्रशंसा की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए उसे कर्म करना चाहिए । यह कक्षा 9 का वाकया है जब हम गांव से बनारस वापस लौट आए थे और  यहीं चांदपुर इंडस्ट्रियल स्टेट में “माँ सरस्वती इंटरमीडिएट कॉलेज” में अपना दाखिला करवा लिए थे उन दिनों मेरे स्कूल में भौतिक विज्ञान के विषय में ध्वनि नाम का एक अभ्यास चल रहा था समझ लें ये खत्म हो चुका था जिसमें मैंने पढ़ा था कि ध्वनी से अधिक चाल प्रकाश में होती है वह बारिश का महीना था मैं डीएलडब्लू क्वार्टर नंबर 616 D के छत की सिढि पर कुछ पढ़ रहा था अचानक वर्षा शुरू हो गई मैं तनिक भी नहीं हिला क्योंकि सिढि छत से ढकी हुई थी । मैं अपना पाठ याद कर रहा था और आसमान की ओर देख रहा था तभी बिजली चमकी मैंने सोचा अब तो बादल भी गरजेगा इसी पर उमंगों के लहर में मैंने कुछ लिखना शुरू किया लिखते हुए मेरे मन में ख्याल आया कि कविता कैसे लिखते हैं ? फिर सोचा जैसा की हम किताबों में पढते हैं कोई तो लिखने वाला इंसान ही होता होगा दो चार पंक्ति लिखने के बाद में रूक गया मैंने सोचा कि कविता कोई ऐसी चीज होती है जिससे किसी को कुछ बताया जाता है शायद ज्ञान की बात  क्योंकि मुझे मेरे गुरु जी द्वारा पढाये गये प्रश्नों के उत्तर याद आ गये कि प्रकाश की चाल ध्वनि से तीव्र होती है मैंने लिखा शायद सभी को बताने के लिए बालपन में ज्ञान लेना और उसे जानना ही बङी बात होती है अगर बालपन में आप ज्ञान देने की कोशिश करें तो आपकी प्रसन्नता की एवं प्रशंसा की तो कहने ही क्या  ?  मैंने अपने पड़ोसी के बेटे ऋषभ को अपनी कविता सुनाई उसने हल्के मुंह से प्रशंसा की और में आनंदित हो उठा।

 अब मैं किसी से नहीं पूछता हूँ कि आपको मेरी कविताएं कैसी लगी क्योंकि कविता मुझे स्वयं बता देता है कि उसे बनाने में मैं कितना सफल रहा हूँ ।

जब हमारा कर्म हमारी प्रशंसा करने लगे तो हमें दूसरों की प्रशंसा की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए हमें कर्म करना चाहिए क्योंकि किसी की प्रशंसा से अच्छा हमारे कर्म की प्रशंसा होती है।


Thought:- 

कर्म आपका का सबसे अच्छा प्रशंसक है कर्म कीजिये और कर्म की प्रशंसा सुनिये।



कविता:- वो उमंगें फिर ना कभी लौट कर आयी




वह उमंगें फिर ना कभी लौट कर आयी, 


आज मैंने कविता लिखने की कसम थी खायी  



मैं कवि हूँ ! यह सोचकर कागज कलम उठा लिया था 


लिखूंगा कैसे अंधेरे में बत्तियां भी जला लिया था 



चला कुछ दूर अकेले बड़ा हर्ष उत्साहित था 


लिखूंगा आज कुछ बड़ा यही मन में निहित था 


लिखते हुये क्या मैंने यूँ ही छोड़ दी कलम 


लिखा नहीं कुछ भी तो खो गई वो उमंग  



अगर हो तुझमे लिखने की उमंगें तो उसे टाल मत देना, 


हो अगर दो-चार ही लाइने तो कागज के माथे पर ढाल तुम देना 


कुछ लोग बड़ा लिखने के चक्कर में छोटे को भूल जाते हैं 


अगर उनकी रचनाएं बोरिंग लगे तो उन्हें लोग भूल जाते हैं 


वो कविता आज मुझे देर से याद आयी 


कैसे लिखूं वो उमंगे ना कभी लौट कर आयी




About its creation:- आज(30/09/2017) दशहरा का मेला था और डीरेका के खेल मैदान में रावण का पुतला फूंका जाने वाला था और इन दिनों में कविता लिखने के लय में था मैंने तैयार होने के साथ ही अपने पॉकेट में एक कलम और पेज रख लिया मैंने यह सोचकर कलम और पेज पॉकेट में रख लिया ताकि यदि मेरे मन में बाहर की ताजी हवा खाने के बाद कुछ नया शब्द पनपा तो मैं उसे लिख लूंगा पर बाहर निकला तो इतना भीड़ था कि मैंने अपने पेज और कलम को निकालने की भी कोशिश नहीं की। इस कविता को लिखने के बाद मैं सोचने पर मजबूर था कि मैं एक कवि हूँ ! क्योंकि इस कविता ने मुझे पूरी तरह से कवि के उपाधि से सुसज्जित कर दिया था इसे लिखने के बाद मैंने कई बार मंथन किया और निष्कर्ष पर पहुंचा कि एक अच्छा लेखक कवि बन सकता है क्योंकि जब मैं इस कविता को लिखने के लिए बैठा था तो यह महज एक शब्द नहीं था जिसे मैं कविता का रूप देना चाहता था बल्कि ये वह चीज था जिसे कोई लेखक आधार बनाकर कई पेजों में लिखने के बाद भी नहीं रुकता है वह अधिक से अधिक लिखता ही जाता है जब तक कि वह अपने विचारों से वंचित नहीं हो जाता है इसी तरह मैं लेखक के रूप में लिखने बैठा था पर उस समय मेरे जेहन में इतने विचार थे कि वो बस उमङ रहे थे और मैं चाहकर भी कुछ लिख नहीं पा रहा था । 


कुछ देर तक मैं शान्त रहा और तभी परेशान होकर मैंने एक वाक्य लिखा “वो उमंगें फिर न कभी लौटकर आयी” क्योंकि वो थोड़े ही देर में शान्त रहते ही खोता जा रहा था जो कुछ ही क्षणों पहले अपार था फिर मैं इस वाक्य से जुड़े कुछ तुकांत शब्द को खोजने लगा और फिर जब मुझे एक तुकांत शब्द मिला तो मैंने इसे पूरी कविता का शक्ल देना चाहा और मैं सफल रहा, कितनी ही हड़बड़ा हट क्यों न हो कितने ही विचार मस्तिष्क में क्यों न उमङ रहे हों हमें अपने दिमाग में हमेशा याद रखना है कि हमें करना क्या है लिखना क्या है उस बात, उस विचार पर केन्द्रित रहें और उसकी व्याख्या के लिए तुकान्त शब्द ढूंढते रहें तब आप एक अच्छी कविता लिख पायेंगे । 




Thought:- ऐसे तो उनके चार पंक्ति की शायरी को ही सबसे अच्छी कविता कही जा सकती है जो कथा को कविता का रूप देना चाहते हैं इसलिए उमंगों की छोटी-छोटी बूंद

 भी किसी उपन्यास से बड़ी हो सकती है ।





Sunday, May 10, 2020

कविता:- माँ तुम अकेले इतना सब कैसे कर लेती हो ?

माँ तुम अकेले इतना सब कैसे कर लेती हो
हमारे लिए खाना बनाना
पिता जी के कपड़े धुलना
बिना किसी के मदद के
अकेले पूरे घर का ख्याल कैसे रख लेती हो
माँ तुम अकेले इतना सब कैसे कर लेती हो

मुझे याद है जब मैं छोटा था
तुम पिता जी से झगड़ जाती थी
जग देखता था जग के उसूलों को
मैंने देखा था तेरे चेहरे पर थकावट
का एक भाव झलक जाता था

कल तक लङ रही थी तु जग के उसूलों से
आज लङ रहा हूँ मैं उन्ही जग के उसूलों से
किसी के बङपपन को सम्भाले
छोटा होने का फर्ज अदा कर रहा हूँ
बड़े हमीं से बङा होकर बैठ गए
मैं छोटा था तो कर रहा था
मैं छोटा हूँ और कर रहा हूँ
बड़े बङा होकर भूल गये अपने फर्ज को
मैं छोटा होने का फर्ज अदा कर रहा हूँ

शायद तुम्हीं ने सीखाया है ना माँ
बङो का कहना मानना
तो फिर बड़ो को क्यों नहीं सिखाया
छोटों का ख्याल रखना

 
तुम औरत होकर अपने नाजुक कलाईयों से
घर का सारा काम करती हो
मर्द होने का तमगा पिता जी लिये घूमते फिरते हैं
अगर ख्याल होता पापा को वक्त के तुम्हारे
तो हाथ वो भी बटाते काम में तुम्हारे
वेशक इसमें पिता जी की गलती नहीं

गलती इस पुरे समाज की है 
कोई सास अपनी बेटी को महरानी
किसी के बेटी को नौकरानी समझती है
इसलिए माँ तुम्हे इतना काम करना पङता है

मगर मैं समाज के इन उसूलों पर चल नहीं पाता हूँ
कोई बङा मेरा अपमान करे तो
मैं बङे का मान कर नहीं पाता हूँ

तुम हँसते हुए हर दुखों को माँ कैसे सह लेती हो
माँ तुम अकेले इतना सब कैसे कर लेती हो ।।














Saturday, April 25, 2020

Importance of day for a good dream( दिन का महत्व एक अच्छे स्वप्न के लिए)

                                   प्रस्तावना



दिन में घटित हर चीज हमारे मस्तिष्क में वर्षों तक रहती है या यूं कहें कि प्राथमिकता- कुछ घटना तो पूरी जिंदगी हमें याद रहती है लेकिन जब हम रातों को सोते हैं तब भी हमारे मस्तिष्क में कुछ चलता रहता है हम देखते हैं कि हम हैं कि जब भी किसी काम को करते रहते हैं भले ही उसका परिणाम हमारे लिए महत्व नहीं रखता हो जब हम रातों में स्वपन देखते हैं तो वह कुछ और नहीं हमारे दिन भर के सोचे और किए गए कार्यों कापुनः
चक्रण होता है लेकिन मेरा इतना ही कहना शायद गलत होगा क्योंकि मनुष्य के मस्तिष्क की मस्तिष्क जीवन के बढने के साथ बढती चली जाती है जिसके कारण उसके स्वपन पर न केवल उसके एक दिन का प्रभाव होता है अपितु उसके अतित का प्रभाव भी होता है लेकिन स्वपन जीवन मैं घटित होने वाली घटनाओं में विशेष है। है कि स्वपन में हम किसी किरदार को अपने अनुरूप संशोधित कर पाते हैं लेकिन जीवन में उस परिवर्तन को कठिनाई से ही मसूस कर पाते हैं या नहीं भी इससे भी अधिक विभिनता हमारे मूल जीवन में होने वाली घटनाओं और और स्वप्न में होने वाली घटनाओं में यह है कि मूल जीवन में होने वाली घटनाओं हमारे अतीत बनकर पीछा करती हैं जबकि रात की घटनाएं दिन के नतीजों के साथ होती हैं। होते हैं। विवाई हो जाती है अच्छा वर्तमान अतीत को तो नहीं बदल सकता है लेकिन अतीत को धीरे-धीरे मीठा करते हुए चल सकता है और भविष्य को फल प्रद कर सकता है इसी प्रकार हमा रा वर्तमान में जहां हम जीत रहे हैं उसे दिन कहने वाले बहुत रातें हैं प् स्वप्न को सुंदरबनाने में हमारी मदद करते हैं इस चीज़ को हम इससे समझ सकते हैं कि लोभियों को रातों में भी चैन नहीं मिलता है तो उसे अपने स्वप्न में से कुछ सीखना चाहिए कि वह किस प्रकार जब वह सोता है तब भी धन को पाने की इच्छा में स्वप्न में। । भी भटकता रहता है अपार धन को पाने के बाद जब वह बैठता है तो उसकी आंखें नींद से खुल जाती है और वह देखता है कि जिस धन के लिए वह स्वप्न में भी बेचैन था उसके हाथ कुछ नहीं डाला है तो फिर एल लच का क्या फायदा? ? उसी प्रकार अन्य लोगों के साथ भी ऐसा ही होता है दूसरों का अहित करने वाले को सपने में भी चैन नहीं मिलता है लेकिन इस बात को वह अपने मूल जीवन में कभी नहीं स्वीकार करता है और अपने कर्मों को सुधारने के बजाय वह उस सजा को जो उसे स्वप्न में मिलती है उसे गंभीरता से न लेते हुए स्वप्न कह कर टालता रहता है एक लेखक के तौर पर उसका स्वपन भी उसके लेखन और उसके चिंतन का विषय हो सकता है इसी को सिद्ध करने के लिए मा।अपने जीवन और स्वपन के अच्छे बुरे पहलुओं को बनाए रखें


                                       भूमिका

सड़क बनने के कारण मेरा गाँव एक बाजार के रूप में तब्ल्दी  हो गया है ऐसा नहीं है कि यहां पहले बाजार नहीं था यहां के प्राचीन दुकानों और घरों के दिवारों पर संस्कृत से उकेरे उपदेशों को रखा गया है। को देखकर आपको एहसास होगा की ये प्राचीन बाजार बहुत बार कभी विकसित हुआ था हाँ ये कह सकते हैं कि सड़क बनने के कारण लोग शहर के चार्ट को ही भविष्यवाणी देने लगे हैं क्या इस बाज़ार का रौनक थोड़ा कम हुआ है और इसका एक कारण यहाँ पर हैक्रमन है अतिक्रमण से आमतौर पर यही समझा जाता है कि ट्रले और फुटपाथ पर बेचने वालों के कारण होता है लेकिन नहीं नहीं किसी गरीब के ठेले लगाने से ज्यादा और बड़ा अतीरामन तो वह होता है जो किसी के धनी के घर का द्वार - अतिरिक्त जमीन पर बड़ा सा तख्ता और छत के आगे का हिस्सा हवा में लहराकर बनाया जाता है और यही हाल मेरे गाँव के बाजार का भी है सभी ने अपना तख्ता आगे की ओर बढा दिया है इससे बाजार सिकुड़ सा गया है।
वर्तमान में मैं बनारस में अपने भैया के साथ रहता हूं जिनके चार बच्चे हैं और अब उनकी जनसंख्या के आधार पर लगता है कि भाभी के घर से मेरा पता कटने वाला है मैं बीए प्रथम वर्ष का छात्र हूं और यहां कुछ दिनों का मेहमान हूं, इसी तरह तरह तो मैं बनारस शहर से बहुत प्यार करता हूँ यहाँ मुझे गंगा तट के अस्सी घाट पर 'हूँ-ऐ-बनारस' के शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम पर जाना बहुत अच्छा लगता है और शाम को शहर में घना है।जश्न अच्छा लगता है सपने तो मेरे बहुत बड़े बड़े हैं लेकिन उनके पूरे ना होने का डर भी बहुत बड़ा है एक कवि हूं लिखता हूं लेकिन अपनी चंचलता से डर लगता है कि कहीं अपने व्यक्तित्व और विचारों को खो ना दूं इससे अधिक परिचय मेरे जैसे छोटे लेखक और छोटे कवि का देते छोटे मुँह बड़ी बात हो जाएगी इसलिए कलम को विराम देते हुए उसने कहूँग कि इतना परिचय इसलिए जरूरी था ताकि आप मुझे पढ़ रहे हों तो खुद को मुझसे और मेर। कहानी से जोड़ देंगे।


 नित्य कर्मों को करने के बाद मैं रोज की तरह सुबह छत पर किताब और पेंसिल लेेकर पढ़ने के लिए चल पड़ता हूँ चुकि शहर में और पूरे देश में अभी तक लाॅकडन की स्थिति चल रही है इसलिए अभी तो सुबह उठकर सीधे छत का ही रास्ता देखता है, लेकिन जब लाॅकडन नहीं था तो संशय रहता था कि छत पर चलूं या फिर अस्सी घाट क्योंकि पढना भी जरूरी है मेरे लिए और संगीत से खुद को जोड़े रखना भी इसलिए पहले मैं संगीत सुनने घाट चला जाता था इससे मेरे दो काम हो जाते हैं पहला तो ये कि जब मैं साईकिल चलाकर घाट जाता हूँ तो सुबह का व्यायाम हो जाता है दूसरा संगीत सुन लेता हूँ तो मन को शांति मिलती है और साथ ही साथ सुनकर कुछ गा लेता हूँ तो गले का रियाज भी बना रहता है, घाट से लौटते हुए मुझे सात बज जाते हैं उसके बाद एक से डेढ़ घंटा पढ लेता हूँ। 
एक ही समय में जब आप दो कार्य को एक साथ लेकर चलते हैं तो असमंजस की स्थिति बन जाती है, लेकिन हमें इससे घबराना नहीं चाहिए अगर दोनों काम जरूरी हैं तो हम समय का बंटवारा दोनों कामों के बीच कर सकते हैं - ध्यान रहे? समय का बंटवारा करें न कि अपने ध्यान का, जब आप एक समय जिस काम को कर रहे हों तो आपको अपना ध्यान उसी काम पर लगाये रखना है उस समय दूूूसरे काम के बारे में नहीं सोचना है, नहीं तो भी काम बिगड़ सकता है जिसे आप उस समय कर रहे हैं। खैर आज की बात करें तो आज 

Tuesday, April 21, 2020





समभत: एक लेखक का सपना समाज को अपने नजरिये के अनुसार जितना अच्छा हो सके समाज को बदलने का होता है।  
एक लेखक जहाँ कहीं भी समाज में होती बुराईयों को देखता है वह उसकी कड़ी निन्दा करता है। एक लेखक सही मायने में समाज का भविष्य निर्माता होता है, पुनर्जागरण काल से ही लेखकों ने समाज और विश्व को सही पथ दिखाने के लिए नित नये प्रयोग जारी रखें हैं जिस समय छापेखानों का प्रयोग प्रारम्भ हुआ लेखकों को अपनी बात रखने में आसानी हुई। आदि काल से ही समाज को शिक्षित करने के लिए हमारे पूर्वजों ने  गुरूकुलों का निर्माण किया होगा जब कागज और लिखने वाले अन्य कोई साधन नहीं होते होंगे तब उन्होंने अपनी बात को हम तक पहुँचाने के लिए अपने बच्चों को शिक्षित करना प्रारम्भ किया होगा जो एक पीढी से दूसरी पिढी को शिक्षित करने का कार्य करती थी तभी आज हमारे पास वर्षों पुराने वेद पुराण जैसे ग्रंथ मौजूद हैं।  एक लेखक की वाणी हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण हो सकता है ये साधारण लोग नहीं समझ सकते हैं मगर एक शिक्षित वर्ग इसको भली भांति समझता है और उसे जब भी किसी को पढने का मौका मिलता है वह उसे पढता है और पढकर अपने विचारों और कल्पनाओं को विस्तार देता है, वो लेखक के विचारों से बहस करता है, एक शिक्षित वर्ग एक लेखक को पढकर अपने नजरिये को लेखक द्वारा कहे गये वक्तव्य के समक्ष प्रदर्शित करता है।  पढने की आदत एक पाठक को हाजिर जवाबी बनाता है बोलने के लिए शब्द मुहैया करवाता है एक पाठक अच्छे लेखकों को पढकर एक प्रखर वक्ता हो सकता है खुद अच्छा लेखक हो सकता है वह लेखक के उद्देश्यों को पूरा करने वाला उसका एक कड़ी हो सकता है जो लेखक द्वारा कहे गए अच्छे वक्तव्यों को समाज में लोगों तक पहुँचाने का कार्य कर सकता है। एक पाठक होना हमारे लिए हर तरह से फायदेमंद है क्योंकि जीवन का सबसे अच्छा पहलू पढना लिखना है इसमें हमारा यह सोचना कि पढते हुए हम समय नष्ट कर रहे हैं मूर्खता है बशर्ते कि हम अच्छी पुस्तक को पढ रहे हों । एक अच्छा लेखक एक अच्छा पाठक होता है उसका एक ये भी सपना होता है कि वो लोगों को पढकर अपने तथ्यों को आत्मविश्वास के साथ पूरी सच्चाई को जानकर लोगों के समक्ष रखें ताकि किसी भी प्रकार की भरान्ति उत्पन्न न हो । एक लेखक अत्यन्त निष्ठावान और सच्चा  होता है ।




धन्यवाद ! आप हमें यूट्यूब पर सुन सकते हैं
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                                    -शुभम् कुमार (कवि और लेखक )

धरती के भगवान हमारे डाॅक्टर और रक्षक !



मुस्लिमां कभी खुद को हिन्दूओं से श्रेष्ठ बताते हैं
हिन्दू कभी खुद से मुस्लिमों को नीचा दिखाते हैं,
दिखाते हैं वो खुदा के कितने नेक वन्दे, भक्त हैं
मगर अपनी जाहिलियत से खुद खुदा को
सामने सबके किस खुदा के वन्दे हैं नीचा दिखाते हैं

एक अंधभक्त की भीड़ है जो दीप जलाने
के उपलक्ष में गोलियाँ चला दीपावली मनाता है,
एक धर्मांधों की भीड़ है जो जमातियों को
कर इक्कठा मरकज सजाता है
देश भक्ति की बात छोड़ो शुभम् ये उस खुदा
और ईश्वर के वन्दे हैं जो इंसानियत को भुल जातें हैं

डर रहा हर इंसान यहाँ वो हाथ मदद को
बढाने से खुद को रोकता है,
देगा वही जख्म जिसके जख्मों को
पोछने जा रहा ये दिल अब उसका टोकता है

कहीं हमारे आरक्षकों पर कोई पत्थर वर्षाता है
उठते हैं मदद को हाथ तो जाहिलें हमारे धरती
के भगवन से बदसलूकी पर उतर आते हैं,
पूछो इनसे मर रहे वेमौत जो उन्हें क्या
इनके ईश्वर और खुदा बचाने आते हैं ?

भूल गये हैं कुछ लोग अंधभक्ति में
यही हैं वो धरती के खुदा जो रोज खुद के जान पर खेल कोरोना जैसे एक अदृश्य दुश्मन से हमारी जान बचाते हैं ।
       
                               -शुभम् कुमार (कवि और लेखक) 

Saturday, February 8, 2020

एक प्रश्न खुद से

हैलो !  आप जो भी हैं आपसे मेरी आग्रह है कि आप ध्यान पूर्वक इसे पढ़े और इसकी खूबी जानकर आप लोगों तक इसे भेजें, अगर यह आपके लिए उपयोगी ना हो सके तो मुझे माफ करें मगर कोई है जो इन बातों को जानने के लिए उत्सुक और परेशान है और उसे इसकी सख्त जरूरत है ।

मेरा नाम शुभम कुमार है और मैं बीए प्रथम वर्ष का छात्र हूँ । जब मैं कक्षा दसवीं का छात्र था तब मैं काफी होनहार और कुशल था । मैंने दसवीं की परीक्षा की तैयारी जोरों शोरों से की थी परीक्षा से दो महीने पहले हमने अपना पूरा पाठ खत्म कर लिया था मगर जब हम लोगों की अर्थात मेरी और मेरे सहपाठीयों का परीक्षण हमारे गुरु द्वारा प्रारंभ हुई तो मैंने देखा कि बहुत प्रश्नों का उत्तर हम जाने के बावजूद भी नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि हमारे गुरु जन संभवत वह सुनना चाहते थे जो किताबों में और हमारी कॉपियों में लिखी होती थी और हम उस क्रमबद्धता  से जिस क्रमबद्धता से किताबों और कॉपीयों में लिखा होता था उत्तर देने में असमर्थता महसूस करते थे इस प्रकार की उलझनों से हम काफी निराश थे ।


 मगर इसका अर्थ कतई यह नहीं था कि हम कुछ नहीं जानते थे संभवत हम इतना जानते थे कि उस वक्त उस किताब में भी उतना नहीं दिया गया है क्योंकि हमने पूरे एक साल उन किताबों के अलावा कई गुरुओं से शिक्षा ली थी जिन्होंने उन किताबों के साथ-साथ अपने जीवन से जुड़ी वो बातें भी बताई थी जो उन किताबों में भी नहीं दी हुई थी तो फिर यह उलझन क्यों  थी ?इसलिए क्योंकि सवालें तो बहुत थीं मगर उस तरह से पूछने वाला कोई नहीं था जिस तरह का जवाब हम दे सकते थे इसलिए मैंने फिर खुद से मन ही मन एक एक सवाल करना शुरू किया और मैं निरुत्तर नहीं था मेरे पास सभी सवालों के लिए कुछ न कुछ अच्छा जवाब था दरअसल हमारा मस्तिष्क ज्ञान को रखने वाला एक भंडार है परंतु इसका किसी चीज को कैसे रखना है रखने का एक अपना तरीका है अगर आप किसी चीज को किताबी भाषा और किताबी क्रमबद्धता से रखने और रटने की कोशिश करेंगे तो आप इसे भूल जाएंगे जैसा कि मैं भूल जा रहा था इसलिए मैं अपने गुरु के प्रश्नों के उत्तर देने में असमर्थता महसूस करता था इसलिए आपका फर्ज बनता है कि आप सभी जो किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं अभी से अपने मस्तिष्क को एकाग्र करें और आप खुद से प्रश्न करना शुरू करें आप पाएंगे कि आपको हर प्रश्न का उत्तर मालूम है । धन्यवाद ।

                                                              -शुभम् कुमार 

Saturday, February 1, 2020

 Hidden love(गुमनाम मुहब्बत) 




कोशिशें तुम्हें नाम देने कि मैं नहीं करूंगा
मैंने देखा है रिश्तों को नाम देने से टूटते हुए

क्या फर्क पड़ता है कि मैं तुम्हारे लिए क्या हूँ,
मुझे इतनी खुशी है कि दिल से मैंने अपना माना है तुम्हें

देखता हूँ तुम्हें, जानता हूँ तुम्हें,
तुम भी मुझे जानती हो
मगर बताऊंगा नहीं तुम्हे,
मुझे तुमसे प्यार है जताऊंगा नहीं तुम्हें

पता है तुम्हे तुम खूबसूरत हो
मगर तुमसे भी खूबसूरत मुझे तुम्हारे विचार लगते हैं
जब तुम बिना बात के लङ जाती हो किसी को
अपना दिखाने के लिए मुझे तुम्हारे वो खूबसूरत व्यवहार लगते हैं।

कहीं दिल के किसी कोने में
तुम्ही से तुम्हारी एक तस्वीर छुपाये रखूंगा,
दिल में हैं जसवात मेरे जो तुम्हारे लिए
दर्द में आंसू बनकर आंखों में आने की लाख कोशिशें करेंगी मगर उन्हे पलकों से छुपाये रखूंगा ।
     
                                 -शुभम् कुमार (Poetic Baatein)



नज़्म:- मेरी अभिलाषा

ये जो डर सा लगा रहता है  खुद को खो देने का, ये जो मैं हूं  वो कौन है ? जो मैं हूं !  मैं एक शायर हूं । एक लेखक हूं । एक गायक हूं मगर  मैं रह...