मुस्लिमां कभी खुद को हिन्दूओं से श्रेष्ठ बताते हैं
हिन्दू कभी खुद से मुस्लिमों को नीचा दिखाते हैं,
दिखाते हैं वो खुदा के कितने नेक वन्दे, भक्त हैं
मगर अपनी जाहिलियत से खुद खुदा को
सामने सबके किस खुदा के वन्दे हैं नीचा दिखाते हैं
एक अंधभक्त की भीड़ है जो दीप जलाने
के उपलक्ष में गोलियाँ चला दीपावली मनाता है,
एक धर्मांधों की भीड़ है जो जमातियों को
कर इक्कठा मरकज सजाता है
देश भक्ति की बात छोड़ो शुभम् ये उस खुदा
और ईश्वर के वन्दे हैं जो इंसानियत को भुल जातें हैं
डर रहा हर इंसान यहाँ वो हाथ मदद को
बढाने से खुद को रोकता है,
देगा वही जख्म जिसके जख्मों को
पोछने जा रहा ये दिल अब उसका टोकता है
कहीं हमारे आरक्षकों पर कोई पत्थर वर्षाता है
उठते हैं मदद को हाथ तो जाहिलें हमारे धरती
के भगवन से बदसलूकी पर उतर आते हैं,
पूछो इनसे मर रहे वेमौत जो उन्हें क्या
इनके ईश्वर और खुदा बचाने आते हैं ?
भूल गये हैं कुछ लोग अंधभक्ति में
यही हैं वो धरती के खुदा जो रोज खुद के जान पर खेल कोरोना जैसे एक अदृश्य दुश्मन से हमारी जान बचाते हैं ।
-शुभम् कुमार (कवि और लेखक)

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