Saturday, May 16, 2020

Umangein my first collection

कविता:- बादल को है मैंने गिरते देखा 

                                                                                                                                                                               


बादल को है मैंने गिरते देखा,

वो तो थी बिजली की रेखा

कौन कहे ये बिजली है ?

ये तो चांद की तितली है

बादल को है मैंने गिरते देखा 

वो तो थी बिजली की रेखा

वो तो है गरज के आती 

फिर पानी को साथ में लाती

पहले आती उसकी रोशनी 

फिर आती आवाज 

गङ गङ गङ गङ बादल आता 

फिर आती आवाज 

बादल को है मैंने गिरते देखा 

वो तो थी बिजली की रेखा 

अगर मैंने बिजली को पास से गिरते देखा होता 

तो आज मैं यहां बैठकर कविता ना लिख रहा होता ।


About its creation:- हर इंसान को प्रशंसा की जरूरत होती है और वह अगले किसी व्यक्ति से प्रशंसा तभी पा सकता है जब वह आगे वाले को कुछ अच्छा करके दिखाए प्रशंसा दो प्रकार की होती हैं एक वो जो किसी चापलूस के द्वारा हमारे कानों में पड़ता है जिससे हम बुरे कर्मों को करने के लिए प्रेरित होते हैं और दूसरी प्रशंसा वो होती है जो हमारा काम, हमारा अनुभव हमें देता है जिससे हम किसी व्यक्ति की प्रशंसा की आशा न करके उसे करने को खुद प्रेरित होते हैं या फिर किसी के नाम मात्र प्रशंसा से भी हम उस चीज को करने के लिए उतारू हो जाते हैं। जब इंसान का कर्म उसकी प्रशंसा करने लगे तो उसे किसी और की प्रशंसा की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए उसे कर्म करना चाहिए । यह कक्षा 9 का वाकया है जब हम गांव से बनारस वापस लौट आए थे और  यहीं चांदपुर इंडस्ट्रियल स्टेट में “माँ सरस्वती इंटरमीडिएट कॉलेज” में अपना दाखिला करवा लिए थे उन दिनों मेरे स्कूल में भौतिक विज्ञान के विषय में ध्वनि नाम का एक अभ्यास चल रहा था समझ लें ये खत्म हो चुका था जिसमें मैंने पढ़ा था कि ध्वनी से अधिक चाल प्रकाश में होती है वह बारिश का महीना था मैं डीएलडब्लू क्वार्टर नंबर 616 D के छत की सिढि पर कुछ पढ़ रहा था अचानक वर्षा शुरू हो गई मैं तनिक भी नहीं हिला क्योंकि सिढि छत से ढकी हुई थी । मैं अपना पाठ याद कर रहा था और आसमान की ओर देख रहा था तभी बिजली चमकी मैंने सोचा अब तो बादल भी गरजेगा इसी पर उमंगों के लहर में मैंने कुछ लिखना शुरू किया लिखते हुए मेरे मन में ख्याल आया कि कविता कैसे लिखते हैं ? फिर सोचा जैसा की हम किताबों में पढते हैं कोई तो लिखने वाला इंसान ही होता होगा दो चार पंक्ति लिखने के बाद में रूक गया मैंने सोचा कि कविता कोई ऐसी चीज होती है जिससे किसी को कुछ बताया जाता है शायद ज्ञान की बात  क्योंकि मुझे मेरे गुरु जी द्वारा पढाये गये प्रश्नों के उत्तर याद आ गये कि प्रकाश की चाल ध्वनि से तीव्र होती है मैंने लिखा शायद सभी को बताने के लिए बालपन में ज्ञान लेना और उसे जानना ही बङी बात होती है अगर बालपन में आप ज्ञान देने की कोशिश करें तो आपकी प्रसन्नता की एवं प्रशंसा की तो कहने ही क्या  ?  मैंने अपने पड़ोसी के बेटे ऋषभ को अपनी कविता सुनाई उसने हल्के मुंह से प्रशंसा की और में आनंदित हो उठा।

 अब मैं किसी से नहीं पूछता हूँ कि आपको मेरी कविताएं कैसी लगी क्योंकि कविता मुझे स्वयं बता देता है कि उसे बनाने में मैं कितना सफल रहा हूँ ।

जब हमारा कर्म हमारी प्रशंसा करने लगे तो हमें दूसरों की प्रशंसा की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए हमें कर्म करना चाहिए क्योंकि किसी की प्रशंसा से अच्छा हमारे कर्म की प्रशंसा होती है।


Thought:- 

कर्म आपका का सबसे अच्छा प्रशंसक है कर्म कीजिये और कर्म की प्रशंसा सुनिये।



कविता:- वो उमंगें फिर ना कभी लौट कर आयी




वह उमंगें फिर ना कभी लौट कर आयी, 


आज मैंने कविता लिखने की कसम थी खायी  



मैं कवि हूँ ! यह सोचकर कागज कलम उठा लिया था 


लिखूंगा कैसे अंधेरे में बत्तियां भी जला लिया था 



चला कुछ दूर अकेले बड़ा हर्ष उत्साहित था 


लिखूंगा आज कुछ बड़ा यही मन में निहित था 


लिखते हुये क्या मैंने यूँ ही छोड़ दी कलम 


लिखा नहीं कुछ भी तो खो गई वो उमंग  



अगर हो तुझमे लिखने की उमंगें तो उसे टाल मत देना, 


हो अगर दो-चार ही लाइने तो कागज के माथे पर ढाल तुम देना 


कुछ लोग बड़ा लिखने के चक्कर में छोटे को भूल जाते हैं 


अगर उनकी रचनाएं बोरिंग लगे तो उन्हें लोग भूल जाते हैं 


वो कविता आज मुझे देर से याद आयी 


कैसे लिखूं वो उमंगे ना कभी लौट कर आयी




About its creation:- आज(30/09/2017) दशहरा का मेला था और डीरेका के खेल मैदान में रावण का पुतला फूंका जाने वाला था और इन दिनों में कविता लिखने के लय में था मैंने तैयार होने के साथ ही अपने पॉकेट में एक कलम और पेज रख लिया मैंने यह सोचकर कलम और पेज पॉकेट में रख लिया ताकि यदि मेरे मन में बाहर की ताजी हवा खाने के बाद कुछ नया शब्द पनपा तो मैं उसे लिख लूंगा पर बाहर निकला तो इतना भीड़ था कि मैंने अपने पेज और कलम को निकालने की भी कोशिश नहीं की। इस कविता को लिखने के बाद मैं सोचने पर मजबूर था कि मैं एक कवि हूँ ! क्योंकि इस कविता ने मुझे पूरी तरह से कवि के उपाधि से सुसज्जित कर दिया था इसे लिखने के बाद मैंने कई बार मंथन किया और निष्कर्ष पर पहुंचा कि एक अच्छा लेखक कवि बन सकता है क्योंकि जब मैं इस कविता को लिखने के लिए बैठा था तो यह महज एक शब्द नहीं था जिसे मैं कविता का रूप देना चाहता था बल्कि ये वह चीज था जिसे कोई लेखक आधार बनाकर कई पेजों में लिखने के बाद भी नहीं रुकता है वह अधिक से अधिक लिखता ही जाता है जब तक कि वह अपने विचारों से वंचित नहीं हो जाता है इसी तरह मैं लेखक के रूप में लिखने बैठा था पर उस समय मेरे जेहन में इतने विचार थे कि वो बस उमङ रहे थे और मैं चाहकर भी कुछ लिख नहीं पा रहा था । 


कुछ देर तक मैं शान्त रहा और तभी परेशान होकर मैंने एक वाक्य लिखा “वो उमंगें फिर न कभी लौटकर आयी” क्योंकि वो थोड़े ही देर में शान्त रहते ही खोता जा रहा था जो कुछ ही क्षणों पहले अपार था फिर मैं इस वाक्य से जुड़े कुछ तुकांत शब्द को खोजने लगा और फिर जब मुझे एक तुकांत शब्द मिला तो मैंने इसे पूरी कविता का शक्ल देना चाहा और मैं सफल रहा, कितनी ही हड़बड़ा हट क्यों न हो कितने ही विचार मस्तिष्क में क्यों न उमङ रहे हों हमें अपने दिमाग में हमेशा याद रखना है कि हमें करना क्या है लिखना क्या है उस बात, उस विचार पर केन्द्रित रहें और उसकी व्याख्या के लिए तुकान्त शब्द ढूंढते रहें तब आप एक अच्छी कविता लिख पायेंगे । 




Thought:- ऐसे तो उनके चार पंक्ति की शायरी को ही सबसे अच्छी कविता कही जा सकती है जो कथा को कविता का रूप देना चाहते हैं इसलिए उमंगों की छोटी-छोटी बूंद

 भी किसी उपन्यास से बड़ी हो सकती है ।





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