Wednesday, June 10, 2020

जिन पैरों में जख्म दियें हैं तुमने !



जिन पैरों में जख्म दिए हैं तूने 
वो पैर और अब न चल पाएंगे,
करना अपने गंदे नालों को साफ 
चमकाने तेरे शहर को लौट कर हम न आएंगे

जिस गांव मेरा घर है हम उसी घर को अपना स्वर्ग बनाएंगे 
तुम खाना हवा प्रदूषित 
हम प्रकृति के सुंदर पौधों से अपने गांव को सजाएंगे 

ये वहम था मेरा सुंदर शहर है तेरा 
गांव में आकर कुछ जुमलों ने बताया था
साफ-सुथरे कपड़े थे उनके 
मगर मन देख ना सका जो काला था 
गांव के लोगों को गवार 
वो खुद को शिक्षित बताने वाला था 
बड़े-बड़े सपने बनेगा तू भी बड़ा 
अगर मेरी तरह तू भी शहर की ओर बढ़ा 
यही कहा था उसने आ गया मैं उसके झांसे में 
सुखों को छोड़कर सुखों की चाह में 
मैं आ गया तेरे शहर में 

मैं धूप, धूल, गंदगी में खटता रहा 
कहीं बन किसी द्वार का प्रहरी 
लोग सोते रहे, मैं अंधेरों में भी भटकता रहा 

जिन पैरों ने खिदमत में तेरी 
रातें टहल कर बिताई थी 
उन पैरों को बहुत जख्म दिए हैं तूने 
वो पैर और ना अब चल पाएंगे,
भय से नीन्द न आये तुम्हे 
तुम कर लेना खुद की रखवाली 
बचाने लौटकर हम न तुम्हे आयेंगे । ।

Wednesday, June 3, 2020

सच्ची खुशी ही जीवन का उद्देश्य है।



हमारा सच्चा घर अतीत में नहीं है । हमारा सच्चा घर भविष्य में भी नहीं है । हमारा सच्चा घर यहीं है और वर्तमान में है । जीवन सिर्फ यहीं और वर्तमान में उपलब्ध है और यही हमारा सच्चा घर है हमारी चेतना ही वह ऊर्जा है, जो उस प्रसन्नता को पहचान सकती है जो पहले से ही हमारे जीवन में मौजूद है इस प्रसन्नता का अनुभव करने के लिए आपको दस साल प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं है । यह आपके रोजमर्रा के प्रत्येक क्षण में उपस्थित है। हममें से बहुत लोग ऐसे हैं, जिन्हें खुद के जीवित होने का एहसास नहीं है जबकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सांस लेते ही खुद के जीवित होने का अनुभव करते हैं और जीवित होने के आश्चर्य से भर जाते हैं । इसी कारण चेतना को प्रसन्नता और आनंद का स्रोत कहा जाता है । 

ज्यादातर लोग भुलक्कड़ होते हैं । इस तरह के लोग समय के अभाव से जूझते हैं । उनका दिमाग उनके दुख, उनके उनके क्रोध और उनके पश्चाताप में ही व्यस्त रहता है । वे जीवन का आनंद, जो हमारे आसपास प्रत्येक कण और हर क्षण में मौजूद है, उठा नहीं सकते । उन्हें जीवन के इस आनंद का कोई ज्ञान ही नहीं है ।
 बल्कि उन्हें तो इसका एहसास ही नहीं है कि वे जीवित है और इसी पृथ्वी में है । इसका क्या कारण है ? दरअसल हम या तो अपने अतीत में व्यस्त रहते हैं या फिर अपने भविष्य में । हमें अपने वर्तमान की, मौजूदा क्षण की कोई चिंता ही नहीं है ।जिसमें गहरे डूबकर हम अपने जीवन का आनंद ले सकें । इसी को भुलक्कङपना कहते हैं । हम भूल गए हैं कि हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है । भुलक्कङपन के विपरीत है हमारे मस्तिष्क का सक्रिय और सचेतन होना । ऐसी स्थिति में हम वर्तमान में जीते हैं, उसके प्रत्येक पल का आनंद उठाते हैं, हमारा शरीर और मस्तिष्क वर्तमान में रहता है यही तो चेतना है । हम बेहद कुशलता से सांस लेते और छोड़ते हैं, अपने मस्तिष्क को शरीर के साथ ले आते हैं, नतीजतन हम यहीं वर्तमान में, इसी क्षण में होते हैं । जब हमारा मस्तिष्क हमारे शरीर के साथ होता है, तब हमारा वर्तमान में होना अवश्यंभावी है । सिर्फ वैसी परिस्थिति में ही हम प्रसन्नता की उन शर्तों को पहचान सकते हैं, जो हमेशा हमारे आस-पास ही रहते हैं । प्रसन्नता या खुशी दरअसल प्राकृतिक रूप से आती है। यह स्वभाविक है । चेतना का अभ्यास प्रयास से या श्रम करने से नहीं आता, बल्कि स्वाभाविक रूप से आता है और उसका अनुभव आह्लादित  करने वाला होता है । क्या सांस लेने में आपको श्रम करना  पड़ता है ? चेतना का अभ्यास भी वैसा ही है । मान लीजिए कि कुछ दोस्तों के साथ आप कहीं सूर्यास्त का मनोहर दृश्य देखने के लिए गए हैं ।

 क्या वह दृश्य देखने में आपको श्रम करना पड़ता है ? नहीं, आपको को कोई श्रम नहीं करना पड़ता । आप सिर्फ इसका आनंद उठाते हैं । सांस लेने के साथ भी यही सच है । आपको सिर्फ इतना भर करना होगा कि सांस आराम से ली और छोड़ी जा सके । आपको इस से अवगत होना पड़ेगा और इसका आनंद उठाना पड़ेगा । लेकिन इसमें अतिरिक्त समय न लगाएं । ध्यान रखें कि आनंद ही जीवन का उद्देश्य है,और जीवन का हर कार्य आनंद उठाते हुए बहुत ही सहजता के साथ किया जा सकता है । हमारे चलने और टहलने का आनंद प्राप्त करना होना चाहिए । हमारे जीवन का हर कदम आनंदपूर्ण हो सकता है । आपको जीवन के आश्चर्य से परिचित कराता हुआ चलता है । हर कदम में शांति है । प्रत्येक कदम में आनंद है । यह संभव है ।

कट्टरपन धर्म नहीं, न ही अंधभक्ति श्रद्धा है


First president of India


हमारा देश अन्य देशों के मुकाबले कई बातों में विशेषता रखता है हिंदू समाज न मालूम कितने हजार बरसों से समय के थपेड़े  खाता रहा है इसने कितनी उत्तल पुथल देखी है इसका शासन कितने ही देसी विदेशी शासकों के हाथों में समय-समय पर आता रहा है कितने ही लुटेरों व्यापारियों और ठगों ने यहां की समृद्धि को लालच भरी आंखों से देखा है और दबाकर जोर जबरदस्ती से बहला-फुसलाकर अथवा धोखा देकर उस संपत्ति को भोग लेते रहे हैं इस देश ने आज तक किसी भी दूसरे देश पर सैनिक आक्रमण नहीं किया है हिंदू दर्शन अपना मूल वेदों में खोजते हैं जैन और बौद्ध दर्शन भी इनसे प्रभावित हुए थे इसमें संदेह नहीं कि जिस रूप में आज हम भारतीय दर्शन को पाते हैं इसकी प्रेरणा वेदों से प्राप्त हुई थी दर्शन का आधार वास्तव में प्रकृति के निरीक्षण और पर्यावलोचन से निश्चित किए हुए नियम ही होते हैं प्रकृति विषयक परखे हुए और श्रृंखलाबद्ध ज्ञान को ही हम विज्ञान कहते हैं । उस ज्ञान के आधार पर ही तत्वों के विषयों में हम जो अनुमान और कल्पना करते हैं वही दर्शन है । 
सभी धर्म वालों के साथ समभाव रखना ही हमारे देश में जो आग लगी हुई है उसका शमन कर सकता है पर हम तो धर्म के नाम पर स्वार्थ की पूजा करते हैं दूसरों को दबाने का प्रयत्न करते हैं और न मालूम कितने प्रकार के और पाप किया करते हैं यही कारण है कि आज हिंदुओं और मुसलमानों के बीच में दंगे फसाद मारकाट लूटपाट हो रहे हैं । कौन धर्म है, जो इनकी निंदा नहीं करता और किस धर्म में ऐसे लोग नहीं हैं,  जो इसकी निंदा नहीं करते ? चरित्र गठन में धार्मिक भावना बहुत महत्त्व  रखती है धार्मिक भावना से अर्थ कट्टरपन नहीं और श्रद्धा अंधभक्ति नहीं है; पर यह ऐसी चीज है, जो परोक्ष रिति से मनुष्य के जीवन पर प्रत्येक क्षण बहुत असर डालती रहती है और मनुष्य माने या ना माने, उसका नैतिक चरित्र उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता । चरित्र के संबंध में एक ऐसी धारणा हो गई है कि इसके लिए हमें कुछ करना नहीं पड़ता चरित्र की ओर ध्यान न देने का फल होता है कि कुछ लोग तो अच्छे वातावरण और सच्चे संपर्क से जो उनको अनायास मिल जाता है बहुत अच्छे हो जाते हैं और कुछ लोग इसके विपरीत होने से बिगड़ जाते हैं चरित्र सुधारने के लिए हमारे शिक्षालयों में कोई प्रबंध किया जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं कि इसका परिणाम बहुत अच्छा होगा । केवल शिक्षकों और जातीय  नेताओं के भाषणों से अच्छे युवक एवं युवतियां तैयार नहीं हो सकेंगे उनका अपना 'चरित्र और व्यवहार' हर तरह से ऐसा होना चाहिए कि उनके काम एवं कथन में कोई भी अंतर ना हो। देश का सुंदर भविष्य तभी बनेगा जब यह आदर्श सामने रहेगा। पंडित वही है, जिसके संपूर्ण कार्य कामना एवं संकल्प से रहित हैं, जिसका धर्म कामना लिप्त नहीं है, जिसने ज्ञानरूपी अग्नि द्वारा अपने कर्मों को कामना और संकल्प रहित बना दिया है ।
किसी नैतिक शिक्षण से मेरा अर्थ किसी धर्म विशेष का शिक्षण है किंतु यह आवश्यक है कि विधार्थीयों को सभी धर्मों के मूल सिद्धांतों की जानकारी हो और सर्व धर्म समभाव का आदर्श उनके सामने उपस्थित किया जाए । विभिन्न देशों के महापुरुषों का जीवन और उनके आध्यात्मिक विचारों का अध्ययन आवश्यक अंग माना जाना चाहिए । बिना नैतिक शिक्षण के कोई भी शिक्षा पद्धति पूर्ण नहीं कही जा सकती ।

नज़्म:- मेरी अभिलाषा

ये जो डर सा लगा रहता है  खुद को खो देने का, ये जो मैं हूं  वो कौन है ? जो मैं हूं !  मैं एक शायर हूं । एक लेखक हूं । एक गायक हूं मगर  मैं रह...