सत्य पर असत्य का ये जो विजय है तनिक है क्षणिक है
पूर्णतः असत्य में ये सत्य का जो घालमेल तनिक है क्षणिक है
कब तलक पाखंडी कोई, अत्याचारी ! धार्मिक कहलायेगा
धर्म का जो शाॅल ओढ़े अत्याचारी शकुणिक है क्षणिक है
राम राम कितने राम ?, मेरे राम, तेरे राम, सबके राम !
राम को जो राम माने, वेशक उनपे राम की कृपा बने
मगर एक राम उनका जो कायर कोई शुंग है क्षणिक है
शांति प्रिय बृहद्रथ को मारकर जो राम बना शुंग है क्षणिक है
कौन है जो अनभिज्ञ है मौर्यों के तेज से, त्याग से, तप से,
कौन है जो अनभिज्ञ है बुद्ध के इतिहास से, साकेत से
मैं बता दूं तुम्हें एक अयोध्या कोई बुद्ध का, साकेत है मगर
इतिहास में, साकेत में अयोध्या-बाबरी का घालमेल क्षणिक है
अभी तो विराम देता हूं मैं अपनी वाणी को मगर
ये याद रखा जाये कि सत्य सत्य है और झूठ झूठ है
राम को भी मानने वाले रहेंगें-रहेंगें जानने वाले बुद्ध को
मगर राम नाम की ये जो तुच्छ राजनीति है तनिक है क्षणिक है






