Tuesday, January 14, 2020

सपने हमारे जीवन में विचार मात्र है जो हमें अपने जीवन में भिन्न-भिन्न प्रयोग करने के लिए प्रेरित करता है

              सपने और सच के बीच का फर्क



सपने और सच के बीच में फर्क बस इतना है कि जब कोई नींद में होता है तो वह सपनों में होता है और जब उसकी आंखें खुलती है तो उसे सच का आभास होता है लोग नींद में सपनों को देखने को महत्व नहीं देते हैं जितना कि वह जागते हुए देखे सपनों को महत्त्व देते हैं इसलिए कलाम ने कहा है कि "अगर सपना देखना ही है तो बंद आंखों से नहीं खुली आंखों से देखो" खुली आंखों से तात्पर्य है पूर्ण चेतना में आकर किसी सपने को देखना सपने तो सभी देखते हैं पर उसे पूरा करने का साहस कुछ लोग ही कर पाते हैं और कुछ लोग तो बस सपने देखते हैं और बस देखते हैं अगर आप महान लोगों को पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि वह हमें यही सिखाते हैं कि जरूरी नहीं है आपका हर सपना सच हो जाए, मगर जिस  सपने को आपने देखा है उसे एक बार पूरा करने की कोशिश तो अवश्य करें और उसको अपने जीवन में महसूस करें तभी आपके द्वारा देखे गए सपनों का महत्व है ।

आपको क्या लगता है बल्ब का आविष्कार करने वाला थॉमस अल्वा एडिसन अपनी बुद्धिमता के बदौलत बल्ब का

आविष्कार किया होगा उसने इसे बनाने के लिए हजारों प्रयोग किए थे तब जाकर बल्ब बन सका था अगर उसने बुद्धिमता की बदौलत बनाने की कोशिश की होती है तो वह कभी बल्ब को बना नहीं पता या फिर उसने एक ही प्रयोग में इसे बना लिया होता मगर नहीं उसने ऐसा कुछ नहीं किया बस उसने एक सपना देखा कि उसे पूरी दुनिया को रोशनी से भरा हुआ देखना था और उसी सपने को पूरा करने के लिए वह पूरी निष्ठा से जुट गया जिस दौरान वह प्रयोग कर रहा था उसके हजारों असफल प्रयोग उसे कुछ न कुछ नया सीख दे रहे थे उसी प्रकार हमारे सपने हैं जो हमें किसी चीज को करने का विचार देते हैं और अगर हम उस विचार पर अमल करते हैं और उस सपने को पूरा करने की कोशिश करते हैं तो संभवत कभी कभार हमें असफलता का सामना करना पड़ता है पर हमारा हर सपना और उन सपनों को पूरा करने की कोशिश हमें कुछ ना कुछ नया सीख देता है इसलिए हमें सपनों को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए ।

दोस्तों ये आलेख आपको कैसा लगा अपना विचार अवश्य दें 

Sunday, January 12, 2020

'कवि की व्यथा' सरोज द्वारा लिखी एक सुप्रसिद्ध गीत ।

                          कवि की व्यथा-1

ओ लेखनी ! विश्राम कर
अब और यात्राएं नहीं ।

मंगल कलश पर
काव्य के अब शब्द
के स्वस्तिक न रच
अक्षम समीक्षाएं
परख सकती न
कवि का झूठ-सच ।

लिख मत गुलाबी पंक्तियां
गिन छंद, मात्राएं नहीं ।

बंदी अंधेरे
कक्ष में अनुभूति की
शिल्पा छुअन
वादों-विवादों में
घिरा साहित्य का
शिक्षा सदन

अनगिन प्रवक्ता है यहां
बस, छात्र-छात्राएं नहीं।

                         कवि की व्यथा-2 

इस गीत-कवि को क्या हुआ?
अब गुनगुनाता तक नहीं।

इसने रचे जो गीत जग ने
पत्रिकाओं में पढे।
मुखरित हुए तो भजन-जैसे
अनगिनत होठों चढ़े।

होठों चढ़े, वे मन-बिंधे
अब गीत गाता तक नहीं।

अनुराग, राग विराग पर
सौ व्यंग-शर इसने सहे।
जब जब हुए गीले नयन
तब-तब लगाए कहकहे।

वह अट्टहासों का धनी
अब मुस्कुराता तक नहीं।

मेलों  तमाशा में लिए
इसको फिरी आवारगी।
कुछ ढूंढती दृष्टि में
हर शाम मधुशाला जगी।

अभी भीड़ दिखती है जिधर
उस ओर जाता तक नहीं।



नज़्म:- मेरी अभिलाषा

ये जो डर सा लगा रहता है  खुद को खो देने का, ये जो मैं हूं  वो कौन है ? जो मैं हूं !  मैं एक शायर हूं । एक लेखक हूं । एक गायक हूं मगर  मैं रह...