मैं देखने लगा था तुम्हें खुद की जगह
तुम्हारी कुछ बातों को समझने लगा था
कोशिश तो थी समझ लेने की हर बात मगर
कहां हर बात अपनी भी समझ आती है हमें
सो छोड़ देता था तुम्हारी उन बातों को
जो मेरे समझ से परे थे
कुछ नज़र करके कुछ नज़र अंदाज़ करके
खुद की तरह मैं तुम्हें अपनाने लगा था
मुझे तुमसे प्यार कुछ ऐसे हुआ था
मैं तुम्हें अपना गीत समझकर गाने लगा था
तुमसे प्यार और जुदाई की दो वजहें वही दो बातें हैं
जो मेरे नज़र में गई और जो मेरे नज़र से गई
एक तुमको मैं और दूसरा तुमको तुम बनाती थी
मुझे पसंद आया हमेशा तुम्हारा मैं होना
यही वजह तुमसे प्यार का कारण बनी
रही बात जुदाई की तो सच कहूंगा
अपनी जिन बातों को मैं पसंद नहीं करता
उन बातों को नहीं देखना चाहता था मैं तुझमें भी
वो बातें तुम्हारी जो बेतूकी सी लगती थी
वो बातें जो मेरी बेतूकी सी लगती हैं
उसे मैं ना कभी अपना सका हूं ना कभी अपना सकूंगा
फिर तुमको मैं कैसे अपना लेता
बात खुद की होती तो खुद को समझा भी लेता
बात तुम्हारी थी सो समझा ना सका
मैंने देखा है रिश्तों में बातों का ना बनना
रिश्तों का टूटना टूट के जुड़ना जुड़ के
रिश्तों के बंधन में गांठ का पड़ना
ऐसे में नहीं चाहता था मैं कि
हमारे रिश्ते के बंधन में भी गांठ पड़े
और हमें रहना पड़े साथ गांठों के इस पार उस पार
दो विचारों के साथ जिसका एक होना मुमकिन ना हो
तुम भी भला मेरे लिए खुद को कितना बदलती
तुम्हारा मुझमें बदलना मुमकिन ना था
मेरी चाहत तो थी मैं तुमको मैं बना दूं
मगर ना तुम मैं बन सकी ना मैं तुमसा बना
इसलिए हमारा बिछड़ना जरूरी हुआ।