अंधविश्वास(superstition):-
सुबह सुबह अपने पसंदीदा लोगों के चेहरे देखने से दिन अच्छा जाता है और कुछ अच्छा होता है अगर किसी अनचाहे व्यक्ति का चेहरा देख लिया तो हमारा दिन खराब जाता है हमारे साथ कुछ बुरा होता है बगैरा बगैरा ।
वास्तविक परिणाम:-
ऐसा सोचने वाला वास्तव में मूर्ख है इसमें तो कोई संदेह नहीं है मगर उसकी मूर्खता देखो कि वो इस आश में दिनभर खोया रह सकता है कि आज उसके साथ कुछ अच्छा होगा । अगर उसने गलती से किसी अनचाहे व्यक्ति का चेहरा देख लिया तो वो अपना चेहरा ऐसे बिगाड़ लेगा जैसे की उसके जीवन में छन भर के लिए सबसे बड़ा शोक आ गया हो और उसके साथ उस पूरे दिन में कुछ गलत हो गया तो वो उसी व्यक्ति के ऊपर दोष मढ देता है जिसका उसने सुबह चेहरा देखा था ऐसे मूर्ख व्यक्ति अपने यहाँ आये किसी अतिथि का चेहरा भी सुबह देखना पसंद नहीं करता है और अगर गलती से दिख भी जाये तो अपने सोच के अनुरूप असमंजस की स्थिति को उत्पन्न करता है अंधविश्वास कितनी बुरी चीज है आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि जिसे वो "अतिथि देवो भवः" कहकर भगवान बना देता है उसे वो अपने मूर्खतावश शैतान भी बना सकता है।
प्रचलित कहानियाँ:-
इस अंधविश्वास पर एक बहुत ही सुन्दर कहानी प्रचलित है कि अकबर के राज्य के एक गाँव में एक व्यक्ति रहता था जो बहुत ही मनहूस था, जो भी सुबह सबेरे उसका चेहरा देखता था उसका पूरा दिन खराब जाता था और उसके साथ कोई न कोई अनहोनी हो जाती थी इसलिए उस गांव के लोग उसको सुबह सबेरे देखना पसंद नहीं करते थे ये बात राजा अकबर के पास पहुंची मगर उन्हें इन सब बातों पर नाम मात्र भी विश्वास नहीं था तो उन्होंने सोचा की क्यों ना राज्य के लोगों का संशय दूर किया जाए तो उन्होंने उस व्यक्ति को अपने राज महल बुलाने का आदेश दिया यह जांच करने के लिए कि क्या वाकई में ऐसा कुछ होता है वो व्यक्ति राजमहल में लाया गया उसे आदेश दिया गया कि सुबह होते ही उसे राजा के आंख खुलने से पहले उनके कमरे में प्रवेश करना है ताकि राजा सुबह सबेरे उठते ही उसका चेहरा सबसे पहले देख सकें सुबह हुई राजा ने उसका चेहरा देखा और अपने काम में लग गए राजदरबार जाते हुए राजा सीढियों से गिर पड़े उनके पैर में गम्भीर चोट आयीं और राजा का दो दांत भी सीढियों से टकराने के बाद टूट गया राजा बहुत नाराज हुए और क्रोध में आकर उस मनहूस व्यक्ति को तत्काल फांसी की सजा सुना दी और फांसी के लिए शाम का समय तय किया गया, उस व्यक्ति को कैदखाने में बंद कर दिया गया बीरबल अकबर के दरबार के एक विद्वान और चतुर मंत्री थे जब उन्हें इस बात का पता चला तो वो उस व्यक्ति से मिलने कैदखाने में जा पहुंचे वो निर्दोष और मासूम व्यक्ति फफक फफक कर रोने लगा वो मंत्री बीरबल से अपने जान की भीख मांगने लगा और कहने लगा इसमें मेरा क्या दोष है ? राजा बीरबल !, मैं निर्दोष हूँ । मुझे बचाइये, बीरबल ने उसे आश्वासन दिया कि वो उसके लिए कुछ करेंगे ।
शाम ढल गई उस व्यक्ति को फांसी के तख्ते तक लाया गया वहीं पास में राजा, प्रजा और मंत्रीगण उपस्थित थे । बीरबल ने अपनी बात राजा अकबर के समक्ष भरी प्रजा में रखी उन्होंने कहा कि महाराज ! अगर इस व्यक्ति का चेहरा सुबह देख लेने से आपका पूरा दिन खराब हो गया है और आपके साथ कोई अनहोनी हुई है तो वाकई यह व्यक्ति मनहूस है मगर उससे भी बड़े मनहूस आप हैं जिसका चेहरा सुबह देखने के बाद इस व्यक्ति को पूरे दिन कैदखाने में बिताना पङा और कुछ देर में उसे फांसी भी मिलने वाली है, राजा अकबर को अपनी गलती का अहसास हुआ और प्रजा को भी यह बात सुनकर अपनी मूर्खता पर बहुत शर्म महसूस हुआ । उस व्यक्ति की सजा माफ कर दी गई और उसे इज्जत के साथ राजदरबार से उसके गांव भेज दिया गया ।
